माल-ए-मुफ्त, दिल-ए बेरहम: बनाओ, संवारो और बेच दो!

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    विजयशंकर सिंह-

कुशीनगर का हवाई अड्डा देश को प्रधानमंत्री ने समर्पित कर दिया। इस अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा के भी अगले साल तक निजी क्षेत्र को सौंपे जाने की योजना है। यह हवाई अड्डा अगले ही साल राष्ट्रीय मोनेटाइजेशन कार्यक्रम में निजी पूंजीपतियों को सौंपे जाने की सूची में सरकार द्वारा रखा गया है। देश के छह बड़े एयरपोर्ट 50 सालों के लिए पहले ही अडानी ग्रुप को सौंपे जा चुके हैं और 25 अन्य हवाईअड्डों को भी बेचने की योजना है। इसमें फिलहाल कोई संशय नहीं है कि यह सब हवाई अड्डे अडानी ग्रुप को ही मिलेंगे। बस प्रक्रिया और अन्य औपचारिकताओं की देर है। (Make Decorate And Sell)

भारतीय हवाईअड्डा प्राधिकरण के बोर्ड ने 13 हवाईअड्डों के निजीकरण को मंजूरी दे दी है। यह मंजूरी, राष्ट्रीय मुद्रीकरण योजना के अंतर्गत दी गई है। मोनेटाइजेशन की यह योजना, निजीकरण का एक खूबसूरत नाम है, जो सरकारी संपदा को बेच देने का एक उपक्रम है। सरकार का लक्ष्य वित्त वर्ष 2024 तक हवाईअड्डों में 3660 करोड़ रुपए का निजी निवेश करना है। यानी इतनी कीमत तक के हवाईअड्डों को निजी क्षेत्रों को बेच देना है।

बिजनेस स्टैंडर्ड की एक खबर के अनुसार, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया, एएआई बोर्ड ने देश के छह प्रमुख हवाई अड्डों, भुवनेश्वर, वाराणसी, अमृतसर, त्रिची, इंदौर, रायपुर और सात छोटे हवाई अड्डों, झारसुगुडा, गया, कुशीनगर, कांगड़ा, तिरुपति, जबलपुर और जलगांव हवाईअड्डों के निजीकरण को मंजूरी दे दी है। इन छोटे हवाईअड्डों को बड़े हवाईअड्डों के साथ जोड़कर, एक खरीदो-एक पाओ योजना की नकल पर मोनेटाइज किया जाएगा। ऐसा निवेशकों को बड़े पैमाने और आकार के साथ लुभाने के लिए किया जाएगा। (Make Decorate And Sell)

एएआई नीलामी के लिए बोली लगाने को दस्तावेज तैयार करने के लिए एक सलाहकार की नियुक्त करेगा, जो इन हवाई अड्डों की रियायत अवधि और आरक्षित मूल्य तय करेगा। नीलामी के लिए बोलियां 2022 की शुरुआत तक बुलाए जाने की संभावना है।

यह भी पहली बार ही है, जब बड़े हवाईअड्डों को छोटे हवाईअड्डों से जोड़कर निजी क्षेत्रों को सौंपा जाएगा। सरकार का उद्देश्य सभी हवाई अड्डों को निजी क्षेत्रों को सौंप देना है। पर छोटे शहरों के हवाई अड्डे कम और सीमित उड़ान के कारण उतने लाभकारी नहीं होते हैं और उन्हें अपने नियंत्रण में लेने के लिए पूंजीपति उतने उत्साह से आगे नहीं आते हैं, इसलिए मार्केटिंग के सूत्र, बाय वन गेट वन के अनुसार नीति आयोग ने योजना बनाई है।

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नीति आयोग द्वारा तैयार राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन दस्तावेज के अनुसार, निजी क्षेत्र के निवेश और भागीदारी की मदद से लाभकारी हवाईअड्डों के साथ-साथ गैर-लाभकारी हवाईअड्डों के विकास को सुनिश्चित करने के लिए छह बड़े हवाई अड्डों में से प्रत्येक के साथ छोटे हवाई अड्डों की जोड़ी पैकेज के रूप में पट्टे पर देने का पता लगाया जा रहा है। इसी दस्तावेज में दिए गए दिशानिर्देशों के अनुसार, सरकार इन हवाई अड्डों को मोनेटाइज कर के धन एकत्र करेगी।

एएआई के अनुसार, झारसुगुडा हवाईअड्डे को भुवनेश्वर, कुशीनगर और गया हवाईअड्डों के साथ जोड़ा जाएगा, जबकि वाराणसी, कांगड़ा, अमृतसर, जलगांव और त्रिची हवाईअड्डों को क्रमश: रायपुर, जबलपुर, इंदौर और तिरुपति हवाईअड्डों के साथ जोड़ा जाएगा।

संभावित निवेशक और सलाहकार जिनसे बिजनेस स्टैंडर्ड ने बात की थी, ने कहा है कि बड़े निवेशकों के ज्यादा दिलचस्पी दिखाने की संभावना नहीं है क्योंकि ये सीमित आकार और छोटे हवाई अड्डे हैं। हालांकि, उन्होंने बताया कि गया और कुशीनगर के हवाईअड्डों के साथ वाराणसी का हवाई अड्डा निवेशकों और पूंजीपतियों को आकर्षित करेगा, क्योंकि तीनों हवाई अड्डे बौद्ध सर्किट पर आते हैं और इन पर अंतरराष्ट्रीय यात्रियों को आकर्षित करने की क्षमता भी है। (Make Decorate And Sell)

बौद्ध सर्किट बौद्ध पर्यटन क्षेत्रों को साथ जोड़कर बनाया गया एक मार्ग है, जो नेपाल में गौतम बुद्ध के जन्मस्थान लुंबिनी, उनके निर्वाण स्थल कुशीनगर, श्रावस्ती, जहां पर, बुद्ध ने अपने चौबीस वर्षावास बिताए हैं, वाराणसी, सारनाथ जहां बुद्ध ने धर्मचक्र प्रवर्तन किया है, बोधगया, जहां उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था और राजगीर, जो मगध की राजधानी थी, को साथ साथ जोड़ कर चलता है। इसे ही पर्यटन की भाषा में बौद्ध सर्किट कहा जाता है।

यह महत्वाकांक्षी योजना यदि अपनी योजना के अनुसार लागू हो जाय तो पूर्वांचल और बिहार के जिलों की सूरत बदल कर रख सकती है। भारत में चीन, जापान, दक्षिण पूर्व के एशियाई देशों और श्रीलंका से बहुत से पर्यटक इन बौद्ध तीर्थो के भ्रमण के लिए आते हैं।

बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार, एक इंफ्रास्ट्रक्चर फर्म के एक एग्जिक्यूटिव ने कहा, जीएमआर या अडानी ग्रुप जैसे ऑपरेटरों के बजाय हम अन्य छोटे समूहों के प्रवेश को भी इस सौदे में देख सकते हैं। यदि उन शहरों का स्थानीय इंफ्रास्ट्रक्चर भी सुव्यवस्थित हो, जहां यह हवाईअड्डे स्थित हैं। (Make Decorate And Sell)

अडानी समूह ने देश के उन सभी छह हवाई अड्डों- अहमदाबाद, जयपुर, लखनऊ, तिरुवनंतपुरम, मंगलुरु और गुवाहाटी को जीतने के लिए आक्रामक बोली लगाई थी, जो सरकार के मोनेटाइजेशन कार्यक्रम में शामिल थे। इन हवाई अड्डों को अडानी ग्रुप को सौंपने की कार्यवाही भी सरकार ने शुरू कर दी है। मुंबई, लखनऊ और जयपुर के हवाईअड्डे सौंपे भी जा चुके हैं। अडानी ग्रुप की बोली भी सबसे अधिक थी।

कुछ मामलों में अडानी ग्रुप द्वारा लगाई गई बोली की राशि अन्य के द्वारा लगाई गई दूसरी सबसे ऊंची बोली से भी दोगुनी थी। रेटिंग एजेंसी आईसीआरए के अनुसार, आक्रामक बोली लगाने से एएआई को अप्रत्याशित लाभ होगा, जो अडानी समूह से रियायत शुल्क के रूप में प्रति वर्ष 600 करोड़ रुपए से अधिक कमा सकता है।

सरकार ने एक अध्ययन किया है, महामारी के कारण यात्री यातायात और हवाई अड्डों के राजस्व में गिरावट के बावजूद हवाई अड्डों में निवेशकों की दिलचस्पी स्थिर बनी हुई है।

आर्थिक मामलों के जानकार गिरीश मालवीय के एक लेख के अनुसार, इन सारे एयरपोर्ट को अडानी के हवाले करने से पहले सरकार इनका ढांचा दुरुस्त करने के नाम पर 14,500 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। देशभर में लगभग 100 से अधिक एयरपोर्ट है, इन पर कुल 25 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई गई थी, लेकिन मोदी सरकार इसमें से आधी से ज्यादा रकम उन्हीं हवाईअड्डों पर खर्च करती रही है, जिन्हें या तो अडानी को सौंपे जा चुका हैं या भविष्य में उसे ही देने की तैयारी है। (Make Decorate And Sell)

उसी लेख के अनुसार, गुवाहाटी हवाईअड्डे पर 1,000 करोड़ रुपये की लागत से एयरपोर्ट टर्मिनल की नई इमारत का निर्माण किया गया है, इंदौर में तो पूरी तरह से नया एयरपोर्ट निर्माण किया गया है, तिरुवनंतपुरम और गुवाहाटी की हवाईपट्टियों के विस्तार में 100 करोड़ रुपये लगाए गए हैं। इस प्रकार 2017 से 2020 के दौरान 2,500 करोड़ रुपए से अधिक राशि खर्च की गयी है।

यानी इन हवाईअड्डों को जनता के टैक्स से सजा संवार कर अडानी ग्रुप को सौंप देने की योजना है। बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार, एयरपोर्ट अथॉरिटी कर्मचारी संघ ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सूचित भी किया था कि मेंगलुरु, लखनऊ और अहमदाबाद एयरपोर्ट पर मौजूद एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया की 1300 करोड़ रुपए की एयरोनॉटिकल और नॉन-एयरोनॉटिकल संपत्तियों को अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड को मात्र 500 करोड़ रुपए में बेच दिया गया, जबकि निजीकरण के लिए सरकार के पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप अप्रेजल कमिटी (पीपीपीएसी) से मंजूरी मांगे जाने के दौरान खुद नागरिक विमानन मंत्रालय ने इन संपत्तियों की कीमत 1300 करोड़ रुपये आंकी थी। (Make Decorate And Sell)

इस पत्र पर क्या कार्रवाई हुई, यह न तो सरकार से कोई पूछ रहा है और न ही सरकार की ओर से कोई जवाब आया है।

बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार, प्राधिकरण के कर्मचारी संगठन ने जून में ही प्रधानमंत्री को लिखे उक्त पत्र में बताया था कि इन हवाईअड्डों के रखरखाव का जिम्मा अडानी समूह को सौंपे जाते समय जारी निर्माण कार्यों का भुगतान निजी कंपनी को करना चाहिए, अनुबंध में इसका उल्लेख है कि निर्माणाधीन कार्यों पर आए खर्च को वहन करने के लिए अडानी समूह उत्तरदायी है।जबकि अडानी समूह ने तीन हवाईअड्डों को सौंपे जाने के बाद 2,000 करोड़ रुपये भी जमा नहीं किए हैं, अगर फौरन इस राशि का भुगतान नहीं किया जाता है तो फिर जमानत जब्त करने के साथ करार भी रद्द करने के सख्त कदम उठाने चाहिए।

बिजनेस स्टैंडर्ड और अन्य अर्थ विशेषज्ञों के लेख के अनुसार, मोनेटाइजेशन स्कीम सारे नियम कायदे कानून तोड़कर या पूंजीपतियों के हित में बदल कर राष्ट्र की संपत्ति निजी हाथों में सौंप देने का एक कार्यक्रम है। निजीकरण से देश की जनता की मूलभूत समस्याओं का समाधान और लोककल्याणकारी राज्य का उद्देश्य, जो संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में प्राविधित है, कैसे प्राप्त किया जा सकता है, इस पर सरकार भी मौन है और सत्तारूढ़ दल भी।

(लेखक रिटायर्ड आईपीएस हैं, यह उनके निजी विचार हैं)


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