जस्टिस हिदायतुल्लाः कुरान हाफ़िज़ के घर पैदा होने से लेकर मुख्य न्यायाधीश और भारत के कार्यवाहक राष्ट्रपति तक

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द लीडर. तालीम ऐसी कमान है, जिसके तीर से बड़े निशाने भी साधे जा सकते हैं. फिर आप चाहें धार्मिक पृष्ठभूमि से क्यों न आते हों. मुहम्मद हिदायतुल्ला इसकी यादगार मिसाल हैं. पिता खान बहादुर मुहम्मद विलायतुल्ला कुरान हाफ़िज़ थे. इसके बावजूद हिदायतुल्ला उपराष्ट्रपति बने और बतौर कार्यवाहक राष्ट्रपति की कुर्सी पर भी सुशोभित हुए. उनका भारत का मुख्य न्यायाधीश बनना भी बड़ी उपलब्धि रहा. नामुममकिन से लगने वाले ये काम दीन के साथ आला तालीम हासिल करने से मुमकिन हुए.


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जस्टिस हिदायतुल्ला को उनके यौम-ए-वफ़ात (इंतक़ाल के दिन) पर दरगाह आला हज़रत के मदरसा मंजर-ए- इस्लाम की ई-पाठशाला कार्यक्रम के तहत वेबिनार के ज़रिये ख़िराजे अक़ीदत पेश की गई. वरिष्ठ शिक्षक मुफ्ती मुहम्मद सलीम नूरी ने कहा कि वही समाज कामयाब है, जिसने उच्च शिक्षा प्राप्त की. शिक्षा वह हथियार है जिससे आप हर जंग कामयाबी के साथ जीत सकते हैं. उदाहरण सामने है. मुहम्मद हिदायतुल्ला ने अपनी शिक्षा और काबलियत के बल पर भारत से इंग्लैंड तक अपने समाज, धर्म, देश और परिवार का नाम रौशन किया.


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एक कुरान हाफ़िज़ के घर पैदा हुए और अपनी काबलियत से भारत के मुख्य न्यायाधीश बनाए गए. दो अवसरों पर भारत के कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में भी कार्यभार संभाला. एक पूरे कार्यकाल के लिए भारत के छठे उपराष्ट्रपति भी रहे. नया रायपुर स्थित राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय का नाम उन्हीं के नाम पर हिदायतुल्ला रखा गया. 17 दिसंबर 1905 को पूर्व उपराष्ट्रपति मुहम्मद हिदायतुल्ला का जन्म ब्रिटिश आधीन लखनऊ के प्रसिद्ध खान बहादुर हाफ़िज़ मुहम्मद विलायतुल्लाह के परिवार में हुआ था.


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इनके पिता उर्दू भाषा के एक प्रख्यात कवि थे. दादा मुंशी कुदरतुल्ला बनारस में वकील थे. पिता ख़ान बहादुर हाफ़िज़ विलायतुल्ला आईएसओ मजिस्ट्रेट मुख्यालय में तैनात थे. मां मुहम्मदी बेगम का ताल्लुक मध्य प्रदेश के एक सुन्नी धार्मिक परिवार से था, जो हंदिया में निवास करता था. 1922 में रायपुर के गवर्नमेंट हाई स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद नागपुर के मोरिस कॉलेज में दाखिला लिया. जहां 1926 में उन्हें फिलिप छात्रवृत्ति के लिए नामित किया गया. वर्ष 1927 में कानून की पढ़ाई करने के लिए कैंम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज गए। उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया.


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ट्रिनिटी से पढ़ाई पूरी कर भारत लौटने के बाद मुहम्मद हिदायतुल्ला मध्य प्रांत के उच्च न्यायालय और बरार, नागपुर के एडवोकेट जनरल नियुक्त हुए. बरार और मध्य प्रांत का विलय होने के बाद जब मध्य प्रदेश का निर्माण किया गया, तब उच्च न्यायालय के एडवोकेट जनरल बनाए गए. उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश बन जाने तक वह इस पद पर रहे. 1946 में नागपुर उच्च न्यायालय में न्यायाधीश और बाद में वह नागपुर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनाए गए. नवंबर 1956 में वह मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश भी बने. 1958 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनाए गए. दस वर्ष तक इस पद पर रहे. 18 सितंबर 1992 को मुहम्मद हिदायतुल्लाह का निधन हो गया.


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अपने समय में वह भारत के उच्चतम न्यायालय के सबसे कम उम्र के न्यायाधीश थे. वह भारत के पहले मुस्लिम मुख्य न्यायाधीश भी थे। जस्टिस हिदायतुल्लाह एकमात्र व्यक्ति हैं, जो भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश सभी तीन शीर्ष पदों पर रहे. वेबिनार के आखिर में नौजवानों से उच्च शिक्षा प्राप्त कर समाज में खुद को स्थापित करने का आह्वान किया गया. वेबिनार दरगाह आला हज़रत के सज्जादानशीन मुफ्ती मुहम्मद अहसन रज़ा क़ादरी की सदारत और दरगाह प्रमुख मौलाना सुब्हान रज़ा खां सुब्हानी मियां सरपरस्ती में आयोजित किया गया.

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