उत्तर भारत के नागरिक दक्षिण भारत के इतिहास, संस्कृति और साहित्य को कितना जानते हैं. जस्टिस मार्केंडय काटजू ने इस विषय पर एक आलेख लिखा है. जिसमें वह बताते हैं कि उत्तर भारतीय दक्षिण के बारे में अंजान हैं. ये विषय इसलिए जरूरी है, क्योंकि केंद्र सरकार एक भारत-श्रेष्ठ भारत की मुहिम चलाए हुए है. लेकिन जब तक उत्तर भारतीयों में दक्षिण के साहित्य-संस्कृति और इतिहास में दिलचस्पी पैदा नहीं होगी. शायद तब तक इस मुहिम को उतनी प्रभावी सफलता नहीं मिलेगी. पढ़िए जस्टिस मार्केंडय काटजू का लेख.
दक्षिण भारतीयों समेत हर हिंदुस्तानी ने अपने स्कूली दिनों में मौर्य साम्राज्य, गुप्त साम्राज्य, हर्षवर्धन साम्राज्य और मुगल साम्राज्य का इतिहास किताबों में पढ़ रखा है. मगर हम से कितने उत्तर भारतीयों ने विजयनगर साम्राज्य के कृष्णदेव राय-जिनकी प्रतिमा उनकी दो रानियों के साथ तिरुपति मंदिर में स्थापित है-के बारे में पढ़ा है. चोला और पांडा राजाओं के बारे में कितने लोग जानते हैं? अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि बेहद कम लोग ही जानते हैं.
अधिकतर भारतीयों ने रामायण और महाभारत पढ़ी है, जो उत्तर भारत के राजाओं के बारे में महाकाव्य थे. इसी तरह अमूमन हर उत्तर भारतीय ने सूरदास, तुलसीदास, कबीर और मुंशी प्रेमचंद की कविता-रचनाओं को भी पढ़ा है.
लेकिन उनमें से कितने उत्तर भारतीयों ने तमिल महाकाव्य-सिल्पाथाराम या मणिमेक्लई, तमिल ग्रंथ तिरुक्कुरल के बारे में पढ़ा है. जिनको लेकर तमिल कवि सुब्रमण्यम भारती ने लिखा था-तमिलनाडु को तिरुक्कुरल की वजह से दुनिया भर में जाना जाता है. कवि संत अंडाल का तिरुप्पवई जिसे पूरे तमिल क्षेत्र में माघ-जनवरी माह में गाया जाता है. सुब्रमण्य भारती की कविता, जिसमें उन्होंने 1910 के करीब महिलाओं की मुक्ति के लिए बड़े मजबूत छंद लिखे थे. कितने उत्तर भारतीयों को ये जानकारी है?
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उत्तर भारतीय हिंदुस्तानी संगीत जानते हैं. गाते हैं. लेकिन कितने लोग कर्नाटक संगीत, त्यागराज, मुथस्वामी दीक्षित और श्यामा शास्त्री का ज्ञान रखते हैं-शायद कोई नहीं.
कितने भारतीयों ने केरल के बड़े समाज सुधारक नारायण गुरु के बारे में सुना है, जिनका ताल्लुक एक छोटी जाति कहे जाने वाले एझावा समुदाय से था. वे अमानवीय और जाति व्यवस्था की डटकर आलोचना करते थे. इसके खिलाफ एक मुहिम भी छेड़ रखी थी. उन्हें भी नहीं जानते हैं.
सच तो ये है कि एक लंबे समय तक उत्तर भारत के लोगों ने दक्षिण भारतीयों के साथ असभ्य व्यवहार किया. वे विभिन्न क्षेत्रों में उनकी बड़ी उपलब्धियों से अंजान बने रहे. जबकि हकीकत यह है कि रामायण में जिन किषि्कंधा का जिक्र मिलता है-उनका संबंध कर्नाटक से है.
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वर्ष 2004 में जब मैं मद्रास हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बना. तब मैंने दक्षिण भारतीय-खासकार तमिल के इतिहास, संस्कृति और साहित्य का गहराई से अध्ययन किया. उस वक्त मुझे महसूस हुआ कि उत्तर भारतीयों का दक्षिण की संस्कृति, इतिहास और साहित्य के बारे में ज्ञान लगभग शून्य है. ये बड़े दुख की बात है.
दक्षिण भारत के मंदिरों को देख लीजिए. उनमें प्राचीन और मध्यकाल की वास्तुकला के दर्शन मिलते हैं. तंजौर के विशाल बृहदीश्वर मंदिर. इसे देखकर आश्चर्य होगा कि किस तरह इतने बड़े-बड़े पत्थरों का उपयोग किया गया होगा. जो मिस्र के पिरामिड में से एक की याद दिलाते हैं. इससे दक्षिण भारतीयों के ज्ञान, कौशल, आर्किटेक्ट की समझ की झलक दिखाई पड़ती है.
(जस्टिस मार्केंडय काटजू सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन रहे हैं.)