The Leader. हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ रहमतुल्ला अलैह का क़ुल अजमेर में चंद दिन बाद तब तय होगा, जब रजब माह का चांद आसमान पर नज़र आ जाएगा लेकिन उससे पहले एक ऐसा तनाज़ा खड़ा हुआ, जो ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा. तब भी जब इसे ख़त्म कराने के लिए नबीर-ए-आला हज़रत एवं आल इंडिया इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान अपनी टीम के साथ अजमेर भी हो आए.
दरगाह आला हज़रत की गलियों में बेचैनी का सबब बना दूल्हे का यह डांस
मौलाना तौक़ीर रज़ा ने अजमेर जाकर अजुमन सय्यदगान दरगाह कमेटी के सेक्रेट्री सय्यद सरवर चिश्ती और दूसरे ज़िम्मेदारान से बात की. तब साफ़ हुआ कि आला हज़रत के सलाम और नारों पर रोक ज़ायरीन के बीच कशीदगी पैदा करने वाले हालात को टालने के लिए लगाई गई है. ऐसा सिर्फ़ दरगाह परिसर में है, न कि अजमेर में बाहर कहीं. मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान सहमत हो गए. अजमेर से ही एलान कर दिया ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के उर्स में दरगाह पर वहां का राइज यानी पहले से पढ़ा जाता आ रहा सलाम ही पढ़ा जाएगा.मौलाना के इस फ़ैसले की बहुत से लोग हिमायत और काफ़ी लोग अब भी मुख़ालेफ़त कर रहे हैं. मौलाना इससे ख़ुश और ख़फ़ा दोनों ही हैं.
बहरीन के मुशायरे से वापसी पर प्रोफेसर वसीम बरेलवी हापुड़ में हादसे का शिकार
बरेली के मुहल्ला सौदागरान में स्थित दरगाह आला हज़रत के पास उनके आवास पर फ़ैसले की हिमायत और उनका वेलकम करने वालों का तांता लगा हुआ है. ऐसा करने वालों पर मौलाना मुस्कुराहट लुटा रहे हैं तो अपने ही ख़ानदान के लोगों का बग़ैर नाम लिए नज़रें टेढी किए हुए हैं, उन पर बरस भी रहे हैं. आइएमसी ने उनका एक और वीडियो जारी किया है, जिसमें वो कह रहे हैं कि डरते वो हैं जो अल्लाह से नहीं डरते. किसी में हिम्मत है तो सामने आकर मुख़ालेफ़त करे. वहीं वो यह भी कहते हैं कि अभी तक ख़ानदान के किसी ज़िम्मेदार ने लिखित बयान या ऑडियो जारी करके मेरी फैसले को ग़लत नहीं ठहराया है. इसके मतलब फ़ैसला सही है. बहरहाल जिस तरह से हिमायत और मुख़ालेफ़त का सिलसिला जारी है, उसे देखते हुए ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ का उर्स इस बार बरेलवी मसलक के लोगों के लिए बेहद ख़ास हो गया है. क़ुल के दौरान बरेलवी मुसलमान वहां कौन सा सलाम पढ़ते हैं, यह देखने वाली बात होगी.
यह भी पढ़ें-
भारतीय विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया- पीएम मोदी पर बीबीसी की डाक्यूमेंट्री प्रोपोगंडा पीस