कौन हैं खुदा बख्श, जिनकी लाइब्रेरी तोड़ने के फैसले से खफा पूर्व आइपीएस अमिताभ कुमार ने राष्ट्रपति पदक लौटाया

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Former IPS Amitabh Kumar Returns Presidents Medal Khuda Bakhsh Library
खुदा बख्श पुस्तकालय

अतीक खान


 

कुदरत ने खुदा बख्श के रूप में बिहार को बड़ा ही नायाब तोहफा दिया. जिन्होंने एक पुस्तकालय तामीर करने के ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए अपनी जिंदगी की सारी कमाई लुटा दी. पटना की जिस-खुदा बख्श लाइब्रेरी का कुछ हिस्सा तोड़ने के, नितीश सरकार के फैसले की देशभर में आलोचना हो रही है. ये वही खुदा बख्श लाइब्रेरी है, जो उनके पिता मौलवी मुहम्मद बख्श का एक ख्वाब था. इस लाइब्रेरी के एक हिस्से को तोड़ने के फैसले के खिलाफ बिहार डटकर खड़ा हो गया है.

बुद्धिजीवी, छात्र और आमजन में रोष है. बिहार के आइपीएस अफसर रहे अमिताभ कुमार दास ने ”हर शख्स-खुदा बख्श” अभियान चला रखा है. और इसी विरोध में अमिताभ कुमार ने सोमवार को अपना पुलिस पदक राष्ट्रपति को लौटा दिया है.

2 अप्रैल 1842 को बिहार के छपरा में जन्में खुदा बख्श ने पटना और कोलकाता से शिक्षा हासिल की. कोलकाता में पेशकार रहे. 1880 में पटना में सरकारी वकील बने. बाद में 1885 में हैदराबाद के निजाम में तीन साल तक चीफ जस्टिस रहे.

1876 में जब मौलवी खुदा बख्श अपनी जिंदगी के अंतिम क्षणें में थे. तब उन्होंने अपने बेटे खुदा बख्श से एक वचन लिया कि वो एक पब्लिक लाइब्रेरी बनवाएंगे. और कुछ समय बाद मौलवी की मौत हो गई.


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इसके बाद खुदा बख्श पुस्तकालय बनवाने का, पिता से किया वादा निभाने में जुट गए. अपनी सारी जमा-पूंजी करीब 80,000 खर्च करके पटना में दो मंजिला भवन बनवाया. और इस तरह 29 अक्टूबर 1891 में खुदा बख्श लाइब्रेरी आम पाठकों के लिए शुरू हो गई. उस वक्त इसमें अरबी, फारसी, तुर्किश भाषा की करीब 4,000 पांडुलिपियां थीं, जिसमें 1400 पांडुलिपियां उनके पिता मौलवी खुदा बख्श की भी थीं.

ये पुस्तकालय खुदा बख्श की पूरी जिंदगी की कमाई दौलत है, जिसे उन्होंने समाज के हवाले कर दिया. 3 अगस्त 1908 को जब खुदा बख्श की मौत हुई. उन दिनों तक वह कर्जदार हो चुके थे. बंगाल सरकार ने उन्हें कर्ज चुकाने के लिए आठ हजार रुपये दिए थे. इस तरह वजूद में आई खुदा बख्श लाइब्रेरी, जो आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है.


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दरंभगा के रहने वाले पूर्व आइपीएस अफसर अमिताभ कुमार दास ने ”द लीडर” से बातचीत में कहा कि मैं अपने पढ़ाई के दिनों से इस पुस्तकालय में जाता रहा हूं. जब आइपीएस बन गया. तब भी लाइब्रेरी गया. ये लाइब्रेरी न केवल हमारी ऐतिहासिक धरोहर है-बल्कि बिहार में शिक्षा का पुराना केंद्र भी है, जिसके संरक्षण के लिए आवाज उठाना, हम अपनी जिम्मेदारी समझते हैं.

फ्लाइओवर के तोड़ा जाएगा लाइब्रेरी का कुछ भाग

पटना के कारगिल चौक से एनआइटी तक फ्लाइओवर बनना है. पुस्तकालय का कुछ हिस्सा फ्लाइओवर निर्माण में आड़े आ रहा है, जिसे नितीश सरकार ने तोड़ने का फैसला किया है. इसका बिहार के अलावा दूसरे हिस्सों में भी विरोध हो रहा है.


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वर्तमान में खुदा बख्श लाइब्रेरी में करीब पांच लाख पुस्तकें और पांडुलिपियां हैं. 1925 में महात्मा गांधी ने भी इस पुस्तकालय का दौरा किया था. जहां विजिटर पंजिका में उनके हस्ताक्षर दर्ज हैं.

अमिताभ कुमार दास ने राष्ट्रपति को संबोधित पत्र में लिखा है. ” बिहार के मुख्यमंत्री ने भ्रष्ठ ठेकेदार-माफिया के आदेश पर पटना की ऐतिहासिक खुदा बख्श-लाइब्रेरी के कुछ हिस्से को जमींदोज करना का फैसला किया है. ये लाइब्रेरी इंसानियत की विरासत है. हिंदुस्तान की गंगा जमुनी तहजीब की निशानी है. पूरा बिहार इस पर फख्र करता है.

एक पुस्तक प्रेमी होने के नाते मुझे सरकार के फैसले से गहरा सदमा लगा है. मैंने बरसों तक एक आइपीएस अधिकारी के रूप में देश को अपनी सेवाएं दी हैं. नीतीश सरकार द्वारा पटना की खुदा बख्श लाइब्रेरी को जमींदोज करने के फैसले के खिलाफ, मैं भारत सरकार द्वारा प्रदत्त पुलिस पदक आपको लौटा रहा हूं. ”


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‘द लीडर’ से बात करते हुए अमिताभ कुमार दास उम्मीद जताते हैं कि कई और अधिकारी, कलाकार, साहित्यकार अपने पदक लौटाएंगे. वे कहते हैं कि बिहार विप्लवी परिषद के नेतृत्व में समाज का बड़ा हिस्सा लाइब्रेरी के पक्ष में खड़ा है. राज्य का हर मर्द-औरत खुदा बख्श है. लोग तेजी से इस मुहिम से जुड़ रहे हैं.

बिहार विधानसभा पुस्तकालय समिति के अध्यक्ष और सीपीआइएमएल के विधायक सुदामा प्रसाद ने मंगलवार-13 अप्रैल को एक नागरिक समुदाय की बैठक बुलाई है. जिसमें लाइब्रेरी के सरंक्षण को लेकर चर्चा होगी. सीपीआइएमएल की केंद्रीय समिति के सदस्य अभ्युदय ने ”द लीडर” को बताया कि पुस्तकालय के कुछ हिस्से को तोड़ने के फैसले से बिहार के आम नागरिक और अकादमिक क्षेत्र से जुड़े लोगों में नाराजगी है.

देश-दुनियां में भी इसका विरोध हो रहा है. इसलिए हम लोगों ने एक आमराय जानने के लिए ये नागरिक बैठक बुलाई है. जिसमें चर्चा करेंगे कि किस तरह सरकार के इस फैसले के खिलाफ अपनी अहसमति दर्ज कराई जाए. इस चर्चा को एक मंच देकर पुस्तकालय के संरक्षण की कोशिश करेंगे.

दिलचस्प बात ये है कि खुदा बख्श लाइब्रेरी भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन है, जिसका रख-रखाव बिहार गर्वनर की ओर से गठित बोर्ड के माध्यम से हो रहा है. भारतीय संसद ने 1969 में खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी एक्ट बनाया. जिसमें इसे राष्ट्रीय महत्व का दर्जा दिया गया. आज इस पुस्तकालय में संरक्षित पांडुलिपियां दुनिभर के अकादमिक क्षेत्र को आकर्षित कर रही हैं.

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