सऊदी अरब में घरेलू महिला श्रमिकों के दर्द की अंतहीन दास्तां

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बांग्लादेशी गांव नमोरिकारी के बाशिंदों को अक्सर मौसमी अकाल का सामना करना पड़ता है। यहां की रहने वाली 29 वर्षीय शिरीना भी इन हालातों से जूझी हैं। उन्हें अपने दो बच्चों और बीमार पति को खाना खिलाने के बाद अपनी भूख शांत करने को चावल का माड़ खाकर गुजारा करना पड़ा।

खेती की जमीन भी नहीं, जो कुछ आसरा हो। फूस की झोपड़ी में जीना खासा मुश्किल हो रहा था कि एक दिन उन्होंने सुना कि पड़ोसन घरेलू काम की नौकरी करने सऊदी अरब जा रही है।

“मुझे बताया गया कि वह एक महीने में लगभग 20,000 टका कमाएगी और सऊदी अरब जाने के लिए सिर्फ 40,000 टके खर्च करने की ज़रूरत है,” शिरीना ने बताया।

“मैंने एक स्थानीय साहूकार से पैसे उधार लेकर काम करने को सऊदी अरब जाने का फैसला किया,” उसने कहा।

परिवार को घर पर छोड़कर जाने की पीड़ा लेकर में सफर के लिए रवाना हुई थी। एजेंट ने केवल इतना बताया था कि अल-खर्ज शहर में चार सदस्यों वाले परिवार का खाना बनाना होगा।

वहां पहुंचकर पता चला कि परिवार में छह सदस्य हैं और खाना बनाने के अलावा सफाई, धुलाई और घर के दूसरे काम भी शामिल हैं।

“बीस हजार रुपये महीने में इतना काम करना बहुत मुश्किल था। कम से कम 14-15 घंटे काम करना पड़ता था। मेरे लिए उनकी भाषा [अरबी] को समझना भी कठिन था। उनके जायके के हिसाब से खाना पकाना भी संभव नहीं था। मेरे लिए वहां जाना मुसीबत हो गया। मेरे पास फोन भी नहीं था कि परिवार वालों से बात करके घर वापसी का बंदोबस्त कराती ”, उसने बताया।

“उन्होंने मुझे कई बार छड़ी से भी पीटा।”


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शिरीना ने बताया कि जिस परिवार के लिए काम करती थी, उनके सबसे बड़े बेटे ने अस्मत पर हाथ डाल दिया, जिसके बाद वहां ठहरना मुनासिब नहीं था।

“मैं रसोई में सो रही थी। अचानक मुझे महसूस हुआ कि कोई मेरे ऊपर आने की कोशिश कर रहा है। मैं जोर से चिल्लाई, लेकिन उसने हाथाें से मेरा मुंह बंद कर दिया। फिर उसने मुझसे छेड़छाड़ की। इसी दौरान मैंने अपनी पूरी ताकत से उसकी खास जगह को पंजों से जकड़ लिया तो वह छोड़ने को मजबूर हो गया,” उसने बताया।

अगले दिन हिम्मत जुटाकर नजदीकी पुलिस स्टेशन में भाग गई। जरूरी दस्तावेज नहीं थे इसलिए लगभग चार सप्ताह जेल में बिताने पड़े, जब तक कि सऊदी अरब में बांग्लादेशी दूतावास की मदद से अक्टूबर के अंत में 20 अन्य लोगों के साथ बांग्लादेश लौटने की बारी नहीं आई।

“मुझसे जेल के अंदर जानवर की तरह बर्ताव किया गया,” उसने कहा।

“मुझे सिर्फ चार में दो महीने का वेतन मिला। अब मैं कर्ज के बोझ दब गई हूं।

बेगम उन लगभग 50000 महिलाओं में शामिल हैं, जो सितंबर 2019 के अंत तक काम के लिए खाड़ी देश गई थीं।


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Getty Image

सऊदी अरब में काम करने वाली एक अन्य प्रवासी कामगार अख्तर की कहानी हाथ-पैर टूटने के दर्दनाक दौर से गुजरी।

राजधानी ढाका के पास गंदरिया की रहने वाली अख्तर ने बताया कि वह 266 डॉलर प्रति माह के बदले सऊदी अरब के शहर में एक बुजुर्ग महिला की देखभाल करती थी।

कठोर हकीकत सामने आ गई जब वहां पहुंची। लंबे समय तक काम, अपमान और पिटाई हर रोज़ की जिंदगी में शुमार हो गई।

“मुझे बिना ब्रेक के हर दिन सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक काम करना पड़ता था,” उसने कहा।

“मालकिन मुझे छड़ी से पीटती थी जब मैं उसकी भाषा में बताए काम को समझ नहीं पाती थी।

अख्तर कहती हैं कि उस परिवार के लिए काम करने से इनकार करने के बाद मुझे दूसरे परिवार में बेच दिया गया।

सऊदी वर्क वीज़ा सिस्टम के तहत, प्रवासी श्रमिक का निवास परमिट नियोक्ताओं से जुड़ा होता है, कामगार को नियोक्ता बदलने या सामान्य परिस्थितियों में देश छोड़ने के लिए लिखित सहमति की आवश्यकता होती है।

अख्तर के काम करने के हालात नए परिवार में और खराब हो गए। वह कहती हैं कि पुराने के मुकाबले नया परिवार और ज्यादा निर्दयी था।


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लाचारी और जंजाल में फंसे होना महसूस होने लगा। परेशान होकर आखिरकार एक दिन आत्महत्या करने को तीन मंजिला मकान की छत से कूद गई। जान तो नहीं गई, लेकिन कई पसलियां और हाथ-पैर टूट गए। इसके बाद नए मालिकों ने राजधानी रियाद में बांग्लादेशी दूतावास के पास ले जाकर छोड़ दिया।

तीन सप्ताह तक रियाद में बांग्लादेशी दूतावास द्वारा संचालित घर में रहने के बाद अख्तर को बांग्लादेश वापस भेज दिया गया। उनके टूटे पैर लाइलाज हालत में हैं।

“सऊदी अरब जाने से पहले मैं कपड़ा मिल में काम करता थी। अब टूटे पैर के साथ मैं अपने परिवार के लिए बोझ बन गई हूं, ” रुआंसे होकर अख्तर ने कहा।

गौरतलब है, बांग्लादेश टैक्सटाइल सेक्टर में दक्षिण एशियाई देशों में सबसे बड़े निर्यातकों में है, जहां लाखों महिलाओं को रोजगार मिला हुआ है।


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जालसाजी के शिकार गरीब बांग्लादेशी

बेगम और अख़्तर दोनों एक ऐसी जालसाजी के शिकार बने, जिसमें नियोक्ता पासपोर्ट को जब्त कर लेते हैं, वेतन रोक देते हैं और प्रवासियों को उनकी इच्छा के विरुद्ध काम करने के लिए मजबूर कर देते हैं।

ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि जो श्रमिक परमीशन के बिना अपने नियोक्ता को छोड़ देते हैं, उन पर “फरार” होने का आरोप मढ़कर जेल भेज दिया जाता है।

बांग्लादेशी प्रवासी श्रमिकों को रोजगार देने पर सात साल के प्रतिबंध के बाद सऊदी अरब ने 2015 के अंत में द्विपक्षीय समझौते के बाद उन्हें लेना शुरू किया।

बांग्लादेशी प्रवासियों के साथ काम करने वाले एक गैर-सरकारी संगठन बीआरएसी के अनुसार, पिछले साल काम करने की अमानवीय परिस्थितियों के कारण 1353 महिला कर्मचारी सऊदी अरब से बांग्लादेश वापस आईं।

“वापस आने के बाद, उन्होंने मानसिक, शारीरिक और यौन शोषण की घटनाएं बताईं,” संस्था में प्रवास कार्यक्रम के प्रमुख शरीफुल इस्लाम हसन ने कहा।

उन्होंने कहा कि सऊदी अरब में पिछले चार वर्षों में 66 महिला श्रमिकों की मौत में 52 मामले आत्महत्या के रहे।

“मुझे एक भी ऐसा मामला नहीं मिला जहां नियोक्ताओं को दंडित किया गया हो। इसलिए सऊदी नियोक्ताओं को लगता है कि वे बेखौफ इन श्रमिकों के साथ जो चाहे कर सकते हैं। ” हसन ने कहा।


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बांग्लादेश के प्रवासी मामलों के मंत्रालय, जिसने पहले सऊदी अरब में महिला श्रमिकों के यौन शोषण के आरोपों से इनकार किया था, अब श्रमिकों के साथ प्रताड़ना को स्वीकार किया है।

एक सरकारी रिपोर्ट में कहा गया है कि कई महिलाएं जो घरेलू काम करने के लिए सऊदी अरब गईं, यौन व अन्य प्रकार के उत्पीड़न के बाद वापस लौट आईं।

रिपोर्ट के अनुसार, सऊदी अरब से 26 अगस्त 2019 को बांग्लादेश लौटने वाली 111 महिलाओं में से 38 का शारीरिक या यौन शोषण किया गया और 48 को उनके वेतन और भत्ते नहीं मिले।

सऊदी अरब में बांग्लादेश के राजदूत गोलाम मोशी ने भी सऊदी नियोक्ताओं के हाथों कुछ महिला प्रवासी कामगारों के साथ बेहद खराब बर्ताव को माना।

“वे अप्रशिक्षित हैं, साथ ही दूसरे देश के रहन सहन और संस्कृति से तालमेल बैठाना भी उनके लिए मुश्किल है,” उन्होंने कहा। ” यह खास वजह है कि उनमें से अधिकांश सऊदी घरों में काम करने के दौरान मानसिक रूप से परेशान होकर भाग जाती हैं।”

लगभग 20 लाख बांग्लादेशी प्रवासियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “हालांकि, महिला कामगार कुल कार्यबल का 10 प्रतिशत से भी कम हिस्सा हैं।”

मोशी ने इस स्थिति के लिए एक हद तक “लालची मैन पावर प्रोवाइडर एजेंटों” को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि वे गरीब महिलाओं को लुभाने के लिए बांग्लादेश के गरीब इलाकों में फैल गए हैं।

प्रवासियों के मंत्रालय के अनुसार, 1,221 पंजीकृत एजेंसियां ​​हैं और उनमें से 80 प्रतिशत से ज्यादा श्रमिकों को सऊदी अरब भेजती हैं।


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बीएस इंटरनेशनल एजेंसी के मैनेजिंग पार्टनर सोहेल अहमद ने कहा कि वे सऊदी अरब में अपनी तय जिम्मेदारी बताने के बाद केवल “इच्छुक” लोगों को ही भेजते हैं।

अहमद ने कहा, “हमें दूर बैठे यह समझना मुश्किल है कि उनके साथ क्या हो रहा होगा। जब भी हमें कोई शिकायत मिलती है तो उन्हें (श्रमिकों को) जल्द से जल्द लाने की कोशिश करते हैं। ”

कॉनकॉर्ड एपेक्स एजेंसी के मालिक अबुल हुसैन ने कहा, “ ज्यादातर खुशी से काम कर रहे हैं और अपने परिवार को कमाई भेज रहे हैं। मैं इस बात से इनकार नहीं करता कि उनमें से कुछ वापस भी आ रहे हैं। लेकिन सफलता की दर विफलता के मुकाबले ज्यादा है। ”

प्रवासियों के मंत्रालय के अहमद मुनीरस सालेहेन ने बताया कि प्रवासियों के उत्पीड़न को लेकर सऊदी सरकार के साथ एक विशेष व्यवस्था है।

“हम उन्हें सऊदी अरब में रियाद, मदीना या जेद्दा में सुरक्षित घरों में रखने की कोशिश करते हैं और बाद में आवश्यक प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद जल्द से जल्द उन्हें वापस लाने की कोशिश करते हैं, कानूनी प्रक्रिया में जांच और अन्य औपचारिकताओं को पूरा करने में लंबा समय लगता है। नतीजतन, ज्यादातर पीड़ित शिकायतें दर्ज करने की जगह घर वापसी करना चाहती हैं। ” उन्होंने कहा।

(साभार: अलजजीरा में प्रकाशित फैसल महमूद की रिपोर्ट, अनुवाद: आशीष आनंद)

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