सऊदी अरब के शहर मदीना में बीते 50 साल से बिना नागा हर दिन नमाज पढ़ते रहे शेख मोहिद्दीन का 107 साल की उम्र में इंतकाल हो गया। उन्हें जन्नतुल बकी में दफनाया गया, जो मदीना का पहला और सबसे पुराना इस्लामी कब्रिस्तान है।
शेख मोहिद्दीन ने पूरी जिंदगी एक छोटे से कमरे में गुजार दी और हमेशा खुशदिली से जीते रहे। बताया जाता है कि उनका घर नबवी मस्जिद से तीन किलोमीटर दूर था, जहां से वे पिछले 50 से हर रोज पैदल आते रहे।
उम्र बढ़ने के साथ ही आने और जाने में काफी वक्त लगता, अक्सर दो घंटे तक। फिर भी वे इतना वक्त लेकर चलते थे कि जोहर की नमाज के वक्त तक मस्जिद तक पहुंच जाएं। फज्र की नमाज के बाद मस्जिद-ए-नबवी पहुंचना ही उनका रोजाना का लक्ष्य बन गया था। शाम को सूरज छिपने के बाद वे पैगंबर मुहम्मद की कब्र के बगल में बैठ जाते थे।
शेख मोहिद्दीन की इसी आस्था के चलते उनको जन्नतुल बकी में जगह मिली। सबसे पुराना यह इस्लामी कब्रिस्तान पैगंबर की मस्जिद के दक्षिण-पूर्व में है, जहां पैगंबर के परिजनों, रिश्तेदारों और उनके खास लोगों की कब्रें हैं।
इसे बकी अल गरकद नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस जगह कभी गरकद के ही पेड़ हुआ करते थे। इन पेड़ों की इस्राइली यहूदियों में बहुत मान्यता है, एक राष्ट्रीय वृक्ष जैसी हैसियत है।
इस्लामी जानकार बताते हैं कि जन्नतुल बकी कब्रिस्तान को 622 में बनाया गया, जब पैगंबर मुहम्मद मक्का से मदीना आए। बद्र की जंग के दौरान पैगंबर मुहम्मद की बेटी रुकय्या बीमार हो गईं और 624 में उनका इंंतकाल हो गया था, वे जन्नत अल बकी में दफन होने वाली पहली शख्सियत थीं। फिर पैगंबर मुहम्मद के साथी उस्मान बिन मजून को भी यहां दफनाया गया।
यह भी बताया जाता है कि वहाबी आंदोलन के वक्त सऊदी नेतृत्व के इशारे पर 1806 और 1925 में इस कब्रिस्तान को ध्वस्त कर दिया गया था।
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