द लीडर : केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों पर बने गतिरोध के बीच सुप्रीमकोर्ट की ओर से गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. इस सीलबंद रिपोर्ट में 85 किसान संगठनों से बातचीत की बात सामने आई है. आगामी 5 अप्रैल को सुप्रीमकोर्ट में इस रिपोर्ट पर सुनवाई की उम्मीद है.
कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 4 महीने से अधिक समय से किसानों का प्रदर्शन जारी है. हजारों किसान दिल्ली के सिंघु, टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलनरत हैं. बीती 12 जनवरी को सुप्रीमकोर्ट ने इस मसले का हल निकालने के लिए चार सदस्यीस समिति गठित की थी. जिसमें कृषि विशेषज्ञ अशोक गुलाटी, डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, अनिल धनवत और भूपेंद्र सिंह मान शामिल थे. हालांकि बाद में भूपेंद्र सिंह ने कमेटी से इस्तीफा दे दिया था.
Farmers – the Anadata!
Can the nation survive without them?Fearless, courageous, fierce and brave men and women farmers are ready to fight the scorching heat if the movement continues
Thousand Farmers, One Demand – REPEAL#काले_क़ानून_वापिस_लो pic.twitter.com/RhPNHaWB3g
— Kisan Ekta Morcha (@kisanektamorcha) March 31, 2021
इस तरह तीन सदस्सीय समिति ने किसान संगठनों से बातचीत कर रिपोर्ट तैयार की है. जिसे बुधवार को सुप्रीमकोर्ट में पेश किया गया है. वहीं, किसान संगठन इस समिति पर अपनी असंतुष्टि जाहिर कर चुके हैं. ये कहते हुए कि कमेटी के सदस्य पहले से ही कृषि कानूनों के पक्षधर हैं.
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दिल्ली समेत देश के विभिन्न हिस्सों में किसानों का आंदोलन चल रहा है. खासकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी में ये ज्यादा प्रभावी है. चूंकि अभी गेहूं कटाई शुरू हो रही है. फसल कटाई के साथ किसान आंदोलन को भी जिंदा रखे हुए हैं. इसके लिए वे अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं.
कृषि कानूनों को लेकर सरकार और किसान संगठनों के बीच जनवरी तक करीब 11 दौर की बातचीत का सिलसिला चला था, जो उसके बाद से ठहरा है. सरकार और किसान संगठन दोबारा से वार्ता की मेज पर बैठेंगेे. फिलहाल अभी इसकी कोई संभावना नजर नहीं आ रही है. इसलिए क्योंकि पांच राज्यों की चुनौवी रैलियों में भी केंद्र सरकार के मंत्री और भाजपा के शीर्ष नेता कृषि सुधार पर अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए कानूनों को सही ठहरा रहे हैं.
चूंकि समिति की रिपोर्ट सुप्रीमकोर्ट के सुपुर्द हो चुकी है. इस रिपोर्ट में किसान संगठनों ने की क्या राय सामने आई है. इसको लेकर किसान संगठन ही नहीं आमजन की नजरें भी रिपोर्ट पर टिकी हैं.
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