बहुजन आंदोलन और मजदूर आंदोलन को जोड़ने की कोशिशें कई सिरे से दिखाई देती हैं, लेकिन साहित्य के क्षेत्र में दोनों की आंदोलनों के बीच गहरी खाई है। इस खाई को पाटने के लिए मिट्टी डालने की शुरुआत की है वरिष्ठ मार्क्सवादी-आम्बेडकरवादी चिंतक, आलोचक व कवि आरडी आनंद की कविताओं ने। उनका यह कविता संग्रह ”नीला कोट लाल टाई” नाम से प्रकाशित हुआ है, जिसका 25 जुलाई को अयोध्या के जनमोर्चा सभागार में वरिष्ठ कवियों ने विमोचन किया। कविता संग्रह की कुछ चुनिंदा कविताएं ‘द लीडर’ ने आंबेडकर जयंती पर प्रकाशित की थीं। कविताओं के इस सफर में पाठक सामाजिक रूप से दलित वर्ग की पीड़ा, मेहनतकश जिंदगी की तकलीफें और उनकी मुक्ति के रास्ते दिखाई देते हैं।
नीला कोट लाल टाई कविता संग्रह का विमोचन प्रगतिशील लेखक संघ की अयोध्या इकाई की बैठक में हुआ, जिसमें नवनिर्वाचित इकाई अध्यक्ष वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव और वयोवृद्ध सदस्य कॉमरेड अयोध्या प्रसाद तिवारी की मौजूदगी अहम रही।
कविता-संग्रह पर वरिष्ठ कवि आशाराम जागरण ने कहा कि आरडी आनंद की इन कविताओं में चुभते सवालों के उत्तर तलाशने की स्पष्ट राह दिखाई देती है। पहली कविता ही डॉ. आंबेडकर पर है। कोई भी व्यक्ति, चाहे वह साहित्यिक हो या राजनीतिक, इस कविता के आधार पर यदि डॉ. आंबेडकर का मूल्यांकन लिखने बैठ जाए तो निश्चित ही एक बहुत मोटा ग्रंथ तैयार हो जाएगा। पंचशील, अष्टांगिक मार्ग, लोकतंत्र, संसदीय लोकतंत्र और समाजवाद के विचारों को सहजता से पिरोकर खूबसूरती पाठकों के सामने रखा गया है।
कविताएं किसी वैचारिक आस्थाओं से बंधकर अंतर्विरोधों से आंखें नहीं मूंदती दिखाई देतीं, बल्कि गलतियों की ओर इशारा और सही रास्ते के सुझाव भी हैं। कहीं-कहीं पर कविताएं डॉ. आंबेडकर का मानकीकरण करके उन्हीं के द्वारा जनमानस को संबोधित करती दिखती हैं। संग्रह की लंबी कविता ‘हे हेलो’ में कहीं पर भी किसी बात की पुनरावृति न होना हैरान करता है, नए तथ्य और समस्याओं के हल हर पंक्ति की जान हैं।
इस कविता में में पूंजीपति वर्ग का मानकीकरण कर उसके द्वारा ही उसकी महत्वाकांक्षा और मजदूर वर्ग के शोषण की विधियों को गिनाना खासा रोचक है। इस कविता में न सिर्फ मजदूर वर्ग बल्कि दलित वर्ग के बहुआयामी अंतरद्वंद्व को रेखांकित करते हुए पूंजीपतियों की साजिशों को बताने की कोशिश की गई है। हिंदी साहित्य में समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र को समझाने का यह अनूठा प्रयोग है।
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विनीता कुशवाहा ने लिखित संदेश में कहा, ‘आंबेडकर’, ‘नीली मूर्ति’, ‘लाल टाई’, ‘मैं आंबेडकर बोल रहा हूं’, ‘भोले का नाग’, ‘डेविल जीतेगा नहीं’, ‘आंबेडकरवाद’, ‘बाबा की झोपड़ी’, ‘हे हेलो’, ‘बूझो वे कौन हैं’, ‘नंगा देख लेना अपराध है’, ‘सहो मत कुछ कहो’, ‘उनकी न मानो’, ‘उनकी न सुनो’, ‘फुलप्रूफ’ कविताओं को पढ़ते समय ऐसा लगता है कि डॉ. आंबेडकर से होते हुए भारतीय क्रांति के सोपानों से होकर गुजर रहे हैं। इसी क्रम एक कविता ‘कल्पनालोक’ है जिसमें मौजूदा व्यवस्था को परास्त कर जिस नई व्यवस्था की सिफारिश की गई है, उसकी नीति-नैतिकता, उसके तौर तरीके और उसके संविधान की भी चर्चा है।
डॉ. संदीपा दीक्षित ने लिखित टिप्पणी में कहा, इस कविता संग्रह को पढ़ते हुए महसूस हुआ कि हर कविता में लगभग एक वैचारिक अवस्थिति उभर कर आती है। एक छोटी सी कविता है आंबेडकरवाद। इस कविता में आंबेडकरवाद और ब्राह्मणवाद के अंतर को खूबसूरत ढंग से परिभाषित करती है, लेकिन यह परिभाषा कविता कम दर्शन अधिक लगती है। काव्य-सौंदर्य के रूप में ‘भोले तेरा नाग’, ‘डेविल जीतेगा नहीं’, ‘नीली मूर्ति और लाल टाई’ बेहतरीन हैं। काव्य भाषा तथा काव्य शैली के साथ-साथ बिंबो का बहुत बारीकी से प्रयोग है इनमें। ‘भोले तेरा नाग’ में भोले दलित हैं, नाग दलित विचारधारा है और शेषनाग दलितों की विभिन्न शाखाओं की विचारधाराएं हैं। इस कविता में दलितों के आपसी द्वंद और वैमनस्य को उभारा गया है। कई कविताएं बारीक अध्ययन और मूल्यांकन की मांग करती हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता और भारतीय जीवन बीमा में प्रशासनिक अधिकारी राम सुरेश शास्त्री ने कहा कि कविता “भोले का नाग” प्रथम दृष्टया मुझे बहुत ही रहस्यमयी लगी। इसी उधेड़बुन में बहुत देर तक पड़ा रहा। फिर बिंब समझ में आया। अस्सी के दशक में मान्यवर कांशीराम साहब का दौर आया। शुरू में उन्होंने जाति व्यस्था को खत्म करने का प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली। फिर कमजोरी को उन्होंने हथियार बना लिया। जाति को मजबूत करके सत्ता हासिल किए। नाग के तीसरे मुंह का इशारा बामसेफ की मूलनिवासी परिकल्पना की तरफ है। नाग के चौथे मुंह का इशारा विचारधारा की तरह है कि शायद दलित शुद्ध आंबेडकरवादी और अशुद्ध आंबेडकरवादी के चक्कर में आपस में ही झगड़ रहे हैं। कविता सभी दलितों को एक उद्देश्य के लिए एक एकमत होकर और एकजुट होकर आंदोलन करने को संबोधित करती है।
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बस्ती से आए विनय कुमार करुण ने कहा कविताओं को जनवादी बताकर कहा कि ये कविताएं आंबेडकरवादियों को वर्गीय एकता के लिए प्रगतिशील सवर्णों के साथ मिलकर काम करने को प्रेरित करते हैं। कवि आरडी आनंद के साथ एक विचित्रता जुड़ी हुई है कि उन्हें दलित मार्क्सवादी समझते हैं और मार्क्सवादी आंबेडकरवादी। सवर्ण उन्हें दलित खेमे का मानते हैं तो दलित उन्हें मार्क्सवादी मानते हुए ब्राह्मणवादी खेमे का।
जनमोर्चा दैनिक समाचार पत्र के संपादक कृष्ण प्रताप सिंह ने कहा, आरडी आनंद की कविताएं बहुत सरल और सहज होती हैं। जिस व्यक्ति के लिए लिखते हैं वह व्यक्ति बहुत आसानी से समझ जाता है। यही इन कविताओं की वास्तविक क्षमता है कवि की उपलब्धि है। जब कविताएं सिर्फ प्रबुद्ध लोगों के बीच विमर्श का विषय बनती हैं और उसके अर्थ पर सहमति बहुत कठिनाई से बन पाती है तो वे कविताएं आम आदमी से दूर हो जाती हैं। ऐसी कविताओं का एकेडमिक वजूद हो सकता है लेकिन आम आदमी, आम पाठक, आम छात्र के लिए ऐसी कविताएं निरर्थक होती हैं। ‘नीला कोर्ट लाल टाई’ संग्रह की सभी कविताएं पठनीय हैं। यह व्यक्तित्व प्रशंसा का संग्रह नहीं है, बल्कि विचानों को सहज बनाकर सचेत करने का प्रयास है।
कॉमरेड एसएन बागी ने कहा, यह संग्रह वर्गीय एकता और वर्ग संघर्ष की कविताओं का है। आंबेडकरवाद और मार्क्सवाद के मूल तत्वों को समझकर क्रांति का आह्वान है इन कविताओं में, जिससे जातिवाद और शोषण की व्यवस्था का अंत करके मानवता तरक्की की राह पर बढ़े।
वरिष्ठ साहित्यकार और गीतकार रामानंद सागर ने कहा कि विलक्षण प्रतिभा के धनी आरडी आनंद की कविताएं दलित जीवन की विसंगतियों और सर्वहारा की बदहाली पर केंद्रित हैं। उन्होंने महज 57 साल की उम्र में 67 किताबें लिखकर गंभीर वैचारिक विमर्श को आगे बढ़ाने में अहम योगदान दिया है।
अयोध्या प्रसाद तिवारी ने संग्रह को विचारधारा की कविताएं कहा, जिसमें सपाट बयानी है, जो वैचारिक उलझनों को हल करने में मदद करती हैं।
अयोध्या के वरिष्ठ कवि व कहानीकार स्वप्निल श्रीवास्तव ने कहा, जब तक मैं कोई चीज सोचता हूं, आरडी आनंद उन विषयों को लिख चुके होते हैं, तब मुझे बहुत आश्चर्य होता है। उनकी कविताओं में व्यवस्था का द्वंद्व तथा क्रांतिकारी शक्तियों का अंतर्द्वंद्व बराबर दिखाई पड़ता है, उनकी रचनाओं में हमेशा एक बेहतरीन दुनिया का ख्वाब मौजूद होता है। निश्चय ही उनका साहित्य क्रांतिकारियों को राह दिखाने वाला है।