भीमा कोरेगांव केस की आरोपी संस्कृतिकर्मी ज्योति 40 महिला कैदियों समेत कोविड पॉजिटिव

0
254
रिजवान रहमान

 

मिले मंसूर को सूली, ज़हर सुकरात के हिस्से,

रहेगा जुर्म सच कहना के जब तक रात बाक़ी है

कबीर कला मंच के गीत ‘मशालें लेकर चलना के जब तक रात बाकी है’ को यूट्यूब में सर्च करेंगे तो इस गीत के वीडियो में आपको ज्योति जगताप और रमेश गायचौरे भी दिखेंगे. इन गीतों के लिए ही सरकार ने तीनों को भीमा कोरे गांव मामले में ‘भारत सरकार के खिलाफ युद्घ छेड़ने’ के आरोप में जेल में बंद कर रखा है.

अब इस महामारी में मुंबई के भाइखला जेल में बंद सांस्कृतिकर्मी ज्योति जगताप 40 महिला क़ैदियों के साथ कोविड पॉजिटिव हो गई हैं. कबीर कला मंच से जुड़ी ज्योति, हिंदुत्व, जातिवाद, असमानता के खिलाफ गाती थीं. सितंबर में इस निडर लोक कलाकार को गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर भी एलगार परिषद के दूसरे 15 राजनैतिक कैदियों की तरह राजद्रोह और भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने का आरोप है.

यह भी पढ़ें: वो कवि और संत, जिन्हें सरकार खतरा मानती है

ज्योति से पहले सागर गोरखे और रमेश गायचौरे गिरफ्तार कर लिए गए थे. उसी समय एनआईए ने एक बयान जारी करते हुए कबीर कला मंच को भाकपा (माओवादी) का फ्रंटल संगठन बताया था. ठीक इसी तरह का जिक्र पुणे पुलिस ने इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीपुल्स लॉयर्स के लिए करते हुए सुरेंद्र गाडलिंग, सुधा भारद्वाज और अरुण फरेरा को गिरफ्तार किया था. जबकि एक्सपर्ट का मानना है कि कानून में कोई प्रावधान नहीं है कि किसी संगठन को फ्रंटल संगठन घोषित किया जाए.

भीमा कोरे गांव में एलगार परिषद कार्यक्रम पर एनआईए ने यह भी कहा कि कबीर कला मंच के तीनों सदस्य नक्सल गतिविधियों, माओवादी विचारधारा का प्रसार और हिंसा में षड्यंत्रकारी थे. 9 अक्तूबर, 2020 को एनआईए ने 10,000 पन्नों की चार्जशीट दाखिल करते हुए ज्योति और उसके साथियों पर भड़काऊ प्रस्तुतियां और भाषण देकर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया. चार्जशीट में यह भी जोड़ा गया कि वे सीपीआई(माओवादी) से जुड़े हैं और ‘जंगल में ट्रेंड’ हैं.

ज्योति जगताप की वकील सुजैन अब्राहम के अनुसार जगताप की भूमिका इतनी ही बताई गई है कि वह एल्गार परिषद में एक प्रस्तुति का हिस्सा थीं. 1 जनवरी, 2018 के कार्यक्रम से एक दिन पहले कबीर कला मंच ने पुणे के शनिवार वाड़ा में गीत गाया था. तब दो सेवानिवृत्त न्यायाधीशों पीबी सावंत और बीजी कोलसे पाटिल के आह्वान पर 35,000 लोग जमा हुए थे.

कार्यक्रम में विरोध में हिंदुत्ववादी संगठनों ने हिंसा की जिसपर आठ दिन बाद पुणे पुलिस की दर्ज एफआईआर में कहा गया कि इसमें सीपीआई(माओवादी) की सांगठनिक भूमिका थी. और यह सब दमित वर्गों में माओवादी विचारधारा फैलाने और उन्हें हिंसक गतिविधियों की तरफ मोड़ने के लिए किया गया. यही वह एफआईआर है जिसके आधार पर जून 2018 से 16 बुद्धिजीवियों, वकीलों और कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की गई है. उन सब पर राजद्रोह, भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने, षड्यंत्र रचने और यूएपीए की धाराएं लगाई गई हैं.

यह भी पढ़ें: भीमा कोरेगांव युद्ध, जिसकी यादगार में जश्न पर भड़क उठी थी हिंसा

कार्यक्रम से पहले एक मराठी समाचार चैनल के दिये इंटरव्यू में जगताप ने एल्गार परिषद के पीछे का कारण बताते हुए कहा था,“मुख्य रूप से पिछले तीन-चार सालों में स्थिति भयावह हो गई है. जब से बीजेपी सत्ता में आई है, मनुवादी सोच एक बार फिर से मजबूत है. जातीय और धार्मिक फसाद बड़े पैमाने पर बढ़ रहा है. इसलिए महाराष्ट्र में सक्रिय लगभग 200-250 संगठनों ने महसूस किया कि उन्हें एक बैनर तले आना चाहिए और संगठित तरीके से अपना प्रतिरोध दर्ज करना चाहिए. यह संगठन ‘भीमा कोरेगांव शौर्य दिन प्रेरणा अभियान’ मोर्चे के तहत एक साथ आए हैं और शनिवार वाड़ा में एल्गार परिषद करेंगे.”

ज्योति जगताप और उसके दो साथी, कबीर कला मंच नाम के जिस संगठन से है उसे 2002 के गुजरात जनसंहार के बाद पुणे में कुछ युवाओं ने खड़ा किया था. वे बस्तियों में जाकर हिंदुत्व, जातिवाद, असमानता, गरीबी और राजसत्ता के अत्याचारों के खिलाफ गीत गाते थे. आगे चलकर आनंद पटवर्धन की डॉक्यूमेंट्री फिल्म की वजह से इसे लोकप्रियता तो मिली लेकिन वे पुलिस की नजर में आ गए.

2011 में मंच के सदस्य दीपक ढेंगले और सिद्धार्थ भोसले को पुलिस ने गिरफ्तार भी किया जिसके चलते बाकी सदस्यों को अंडरग्राउंड होने के लिए मजबूर होना पड़ा. लेकिन 2011 में शुरू हुई पुलिस निगरानी फिर कभी सुस्त नहीं पड़ी. और पिछ्ले साल करीब 6 महीने पहले इसके तीन अहम सदस्य ज्योति जगताप, सागर गोरखे और रमेश गायचौरे आतंकवादी धाराओं में क़ैदखाने में डाल दिए गए.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

(आप हमें फ़ेसबुकट्विटरइंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here