भीमा कोरेगांव युद्ध, जिसकी यादगार में जश्न पर भड़क उठी थी हिंसा

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महाराष्ट्र में 31 दिसंबर 2017 को 200 वर्ष पहले हुए युद्ध को याद किया जा रहा था कि हिंसा भड़क उठी। हिंसा में एक शख़्स की जान गई और कई वाहन भी फूंक दिए गए। भीमा नदी के किनारे स्थित मेमोरियल के पास दिन के 12 बजे जब लोग अपने नायकों को श्रद्धांजलि देने इकट्ठा होने लगे तभी हिंसा भड़की। पत्थरबाज़ी हुई और भीड़ ने खुले में खड़ी गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया। आरोप है कि पुणे के शनिवारवाडा में एल्गार परिषद कॉन्क्लेव में आपत्तिजनक भाषण दिए गए थे, जिससे हिंसा भड़की।

पुलिस इसके लिए एल्गार परिषद से जुड़े मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के भाषण जिम्मेदार मानती है। गिरफ्तार लोगों को ‘अर्बन नक्सल’ बताकर उन पर प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश का आरोप भी लगाया गया। देशभर में विभिन्न जगहों पर पुणे पुलिस ने ताबड़तोड़ छापेमारी की।

बताया जाता है कि साल पहले 1 जनवरी 1818 में ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा साम्राज्य के पेशवा गुट के बीच कोरेगांव भीमा में जंग लड़ी गई थी। इस लड़ाई में अंग्रेजों और 800 महारों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय के 28 हज़ार सैनिकों को पराजित कर दिया था।

महार सैनिक यानी दलित, ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से लड़े थे और कहा जाता है कि इसी युद्ध के बाद पेशवा राज का अंत हो गया। महार जिन्हें महाराष्ट्र में दलित कहा जाता है। उस दौर में देश ऊंच-नीच और छुआछूत जैसी कुरीतियों से घिरा हुआ था। अगड़ी जातियां दलितों को अछूत मानती थीं। महाराष्ट्र में मराठा अगड़ी जाति मानी जाती है।

भीमा कोरेगांव युद्ध में शहीद हुए महार सैनिकों का स्मृति स्तंभ है। यहां शौर्य दिवस हर साल मनाया जाता है और करीब 15 से 20 हजार दलित यहां इकट्ठा होते हैं। शौर्य दिवस की शुरुआत 1927 में बाबा साहेब आंबेडकर ने की थी। एक जनवरी 2018 में 200वीं बरसी पर यहां करीब साढ़े तीन लाख दलित और मानवाधिकार कार्यकर्ता जमा हुए। उसी दौरान गैर दलित समुदाय की ओर से हिंसा भड़की। आरोप है की हिंसा हिंदूवादी संगठनों ने भड़काई।

फिलहाल, एल्गार परिषद मामले की सुनवाई कर रही पुणे की कोर्ट ने मुकदमा मुंबई की विशेष एनआईए अदालत को ट्रांसफर कर दिया है। सभी आरोपी जेल में हैं। देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान 14 अप्रैल 2020 को आंबेडकर जयंती के दिन इस मामले में डॉ.आंबेडकर के परिजन डॉ.आनंद तेलतुंबड़े को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

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