एशिया पैसिफिक में आठ दिन गूंजेगी ‘असुरों की आकाशवाणी’

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प्रकृति में रचे-बचे और वजूद के लिए जूझ रहे असुर आदिवासियों की आवाज अगले आठ दिन एशिया पैसिफिक की ध्वनि तरंगों में सुनाई देगी। ऐसा होगा वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ कम्युनिटी रेडियो ब्रॉडकास्टर्स की वजह से। झारखंडी अखड़ा द्वारा संचालित ‘असुर आदिवासी मोबाइल रेडियो’, नेतरहाट को वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ कम्युनिटी रेडियो ब्रॉडकास्टर्स (एएमएआरसी) के एशिया पैसिफिक क्षेत्रीय संगठन ने अपने अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में आमंत्रित किया है। (Akashvani Of Asuras Asia)

एएमएआरसी ने असुर रेडियो को इस अंतरराष्ट्रीय कम्युनिटी रेडियो नेटवर्क में भारत का प्रतिनिधित्व करने का भी प्रस्ताव दिया है। ये दोनों प्रस्ताव एशिया पैसिफिक क्षेत्रीय संगठन (एएमएआरसी) के निदेशक सुमन बासनेट ने ईमेल द्वारा झारखंडी अखड़ा की महासचिव और असुर रेडियो की कोऑर्डिनेटर वंदना टेटे को भेजा है।

वंदना टेटे ने बताया कि उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है और 30 सितंबर से 8 अक्टूबर तक चलने वाले 9 दिवसीय वेबिनार में वे भारतीय प्रतिनिधि के बतौर जरूर शामिल होंगी। उन्होंने बताया कि वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ कम्युनिटी रेडियो ब्रॉडकास्टर्स (एएमएआरसी) के पहले दो दिन, 30 सितंबर और 1 अक्टूबर को लुप्तप्राय असुर आदिवासी ज्ञान परंपरा और भाषा को बचाए रखने की अनूठी मुहिम असुर मोबाइल रेडियो के बारे में अपना वक्तव्य और अनुभव साझा करेंगी। (Akashvani Of Asuras Asia)

झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा के प्रवक्ता केएम सिंह मुंडा ने बताया कि इस अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में असुर रेडियो के अलावा भारत से भास्कर ज्योति भुइयां को भी आमंत्रित किया गया है जो असम के डिब्रूगढ़ में ब्रह्मपुत्र कम्युनिटी रेडियो चलाते हैं।

वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ कम्युनिटी रेडियो ब्रॉडकास्टर्स (एएमएआरसी) के एशिया पैसिफिक क्षेत्रीय संगठन द्वारा आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में फिलहाल भारत, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान आदि देशों के कम्युनिटी रेडियो ब्रॉडकास्टर भाग ले रहे हैं।

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असुर आदिवासियों का कहना है कि यूनेस्को की खतरे में पड़ी विश्व भाषाओं के एटलस के हिसाब से असुर आदिवासी भाषा खतरे की सूची में है। (Akashvani Of Asuras Asia)

उनका आरोप है कि कारपोरेट कंपनियों ने हमारा जीवन तबाह कर हाशिये पर पहुंचा दिया है। वहीं, हिंदू कथा-पुराण हमें राक्षस कहते हैं और हमारे रावण, महिषासुर आदि पुरखों की हत्याओं का विजयोत्सव मनाते हैं। इन हालातों के बीच हम असुर आदिवासियों ने अस्तित्व बचाने और भाषा-संस्कृति के संरक्षण को नेतरहाट के जोभीपाट गांव में ‘असुर आदिवासी विजडम अखड़ा’ केन्द्र की स्थापना की है।


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