इस्लामिक शास्त्र में डॉक्टरेट अबला अल कहलावी इस्लाम की मूल तासीर को अच्छी तरह से समझती थीं. इसलिए उन्होंने इसके बुनियादी संदेश-मानव कल्याण को न सिर्फ अपनाया, बल्कि पूरी जिंदगी इस अमल में फना कर दी. अपना किरदार इस तरह से गढ़ा, जो पूरी दुनिया की मुस्लिम महिलाओं के लिए एक मिसाल है, जो उन्हें पढ़ने-लिखने, नौकरी करने से लेकर समाज सेवा का हौसला देता रहेगा. पढ़िए खुर्शीद अहमद का आलेख.
मिस्र की राजधानी काहिरा में इसी साल 24 जनवरी 2021 को डॉक्टर अबला अल कहलावी ( Abla al kahlawi)का इंतकाल हो गया था. वह 72 साल की थीं. कोरोना संक्रमण उनकी मौत की वजह बना. डाॅक्टर अबला की गिनती दुनिया के चोटी के विद्वानों में होती थी. अपने काम के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. पर उनके देश मिस्र ने उन्हें जो सम्मान दिया-वो बेमिसाल है. मिस्र की जनता उन्हें मामा ( मां ) अबला कहती थी. (Abla AL Kahlavi Service Humanity Egypt Mother)
मामा अबला का जन्म 15 दिसंबर 1948 को काहिरा में हुआ था. इनके पिता मोहम्मद अल कहलावी मिस्री सिनेमा में काम करते थे. वह एक अच्छे अभिनेता और गायक थे, लेकिन बाद में वह सिनेमा से अलग हो गए.
मामा अबला ग्रेजुएशन कर ही रही थीं. तभी उनकी शादी मिस्री सेना के अफसर यासीन बसयूनी से हो गई. शादी के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी और विश्व प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी जामिया अल अजहर से ग्रैजुएशन किया के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया.
अक्टूबर 1973 में इजरायल-अरब जंग में उनके शौहर यासीन बसयूनी शहीद हो गए. तब अबला की उम्र महज 25 साल थी. और उनकी तीन बेटियां थीं. वह चाहती थीं मिस्री समाज के चलन के मुताबिक दूसरी शादी कर सकती थीं. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, बल्कि अपनी बेटियों की परवरिश को तरजीह दी. पति की शहादत के एक साल बाद 1974 में उनका पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा हुआ. ये उनके मजबूत इरादे को दर्शाता है.
1978 में जामिया अज़हर गर्ल्स कॉलेज से डाॅक्ट्रेट की डिग्री हासिल की. इनका विषय इस्लामी शास्त्र (الفقه المقارن )था. पढ़ाई के बाद उसी कालेज में लेक्चर, प्रोफेसर और फिर डीन भी नियुक्त हुईं.
बाद में सऊदी अरब चली गईं. और रियाद यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बनीं. कुछ साल रियाद में पढ़ाने के बाद वह मक्का की उम्मुल कुरा यूनिवर्सिटी के फिकह डिपार्टमेंट में बतौर डीन रहीं. मक्का में रहते हुए इन्हें हरम शरीफ़ में दरस का मौका मिला. यह मगरिब नमाज़ के बाद औरतों को दरस देती थी. ये इतना बड़ा सम्मान था जिस पर जितना भी गर्व किया जाए, कम है.
इसलिए क्योंकि विश्व के बड़े से बड़े आलिम-फाजिल और विद्वान सिर्फ इसका ख्वाब देखते हैं .1987 से 1989 तक दो वर्षों तक उन्होंने वहां दरस दिया.
1989 के बाद फिर मिस्र आ गईं और मिस्री टीवी पर दीनी तालीम का एक प्रोग्राम ( अल बाकियात अल सालिहात ) शुरू किया. यूं तो वह उच्च शिक्षा प्राप्त थीं, पर प्रोग्राम का अंदाज बिल्कुल सादा और सरल होता था. जिसमें न सिर्फ दीनी तालीम देतीं बल्कि लोगों की परेशानियों का हल भी बताया करती थीं. और गरीब परिवारों की खुद या दूसरों से मदद भी करातीं. प्रोग्राम खूब पसंद किया गया. लोग इसके एपिसोड का इंतजार करते थे.
बाद में उन्होंने इसी अल बाकियात अल सालिहात के नाम से एक संस्था बनाई, जहां गरीबों की मदद की जाती. इस संस्था के अंतर्गत यतीमखाने, वृद्धाश्रम बनाए. स्कूल और अस्पताल तामीर कराए. विशेष रूप से अलझेमर्स के मरीजों के लिए खास सेंटर्स स्थापित किए.
उनकी मेहनत लगन और सेवा भाव के चलते अल बाकियात अल सालिहात मिस्र की सबसे बड़ी संस्था बन गई. संयुक्त राष्ट्र संघ और अरब व अफ्रीका के कई संगठनों ने इन्हें सम्मानित भी किया. अभी 2020 के महिला दिवस के मौके पर अबला को अफ्रीका महाद्वीप की बेस्ट वुमेन का अवार्ड मिला.
लेकिन इन सब अवार्ड्स से बड़ा वह अवार्ड था जो देश की जनता ने उन्हें दिया. सबने उन्हें मां मान लिया. एक डाक्टर और प्रोफेसर नहीं, मामा अबला के नाम से पुकारने लगे.
जनवरी में जब उनका इंतकाल हुआ तो सिर्फ मिस्र ही नहीं पूरे अरब देशों जगत में गम मनाया गया. वह लोकप्रियता के शिखर पर थीं. इंसानियत की राह में जिंदगी कुर्बान करने का उनका जज्बा समाज को प्रेरित करता रहेगा. (Abla AL Kahlavi Service Humanity Egypt Mother)