खुर्शीद अहमद
सन 1939 में सऊदी अरब एक गरीब देश हुआ करता था. राजधानी रियाद के एक स्कूल में शिक्षक पढ़ा रहे थे. वह फलस्तीन के रहने वाले थे. क्लास में एक दस साल का बच्चा पढ़ रहा था, जिसका नाम सुलेमान था. और वो पढ़ने में काफी तेज था. शिक्षक ने महसूस किया कि सुलेमान का पढ़ने में दिल नहीं लग रहा. कुछ उदास भी है.
कारण पूछने पर सुलेमान ने शिक्षक को बताया कि स्कूल में पिकनिक का प्रोग्राम है. बच्चों से कहा गया है कि जिन्हें पिकनिक पर जाना हो वो टीचर के पास एक रियाल जमा करा दें. मैंने अपने वालिद (पिता) से एक रियाल मांगा, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया. और कहा कि मेरे पास पैसे नहीं हैं. दूसरे बच्चों को जाने दो और तुम न जाओ.

खजूर का बाग.
शिक्षक से बच्चे की मायूसी देखी न गई. उन्होंने बच्चे को एक रियाल देना चाहा. फिर कुछ सोच कर रुक गए. क्लास के बच्चों से कहा कि मैं एक प्रश्न पूछता हूं जो सही उत्तर देगा. उसे एक रियाल इनाम दूंगा. शिक्षक ने प्रश्न पूछा. सुलेमान ने जवाब दिया और टीचर ने उसे एक रियाल इनाम में दे दिया. सुलेमान की खुशी का ठिकाना न रहा. वह काफ़ी खुश था. साथ ही उसे एहसास था कि शिक्षक ने जानबूझकर ऐसा प्रश्न पूछा है, जिसका जवाब मैं ही दे सकूं. बहरहाल पिकनिक जाने की खुशी में बच्चे ने सब कुछ भुला दिया.
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इस घटना के लगभग 25 वर्ष बाद वह फलस्तीनी शिक्षक रियाद में अपने घर में बैठे थे. रिटायर होने के साथ बूढ़े हो चुके थे. दूसरे देश में एक रिटायर्ड की जो हालत होनी चाहिए थी. वही हालत उनकी थी. वह चाहते थे कि बड़े बेटे को कोई ठीक-ठाक नौकरी मिल जाए तो वह सऊदी अरब छोड़ कर अपने वतन फलस्तीन लौट जाएंगे.
एक दिन उनके घर के बाहर एक लक्जरी कार आ कर रुकी. जिसमें से एक जवान आदमी उतरा. सलाम करने के बाद पूछा सर मुझे पहचानते हैं. टीचर ने कहा कि नहीं. उस आदमी ने कहा कि मैं आप का स्टूडेंट सुलेमान हूं. टीचर को याद आया बातचीत होती रही. जिसमें उन्हें पता चला कि उनका ये छात्र कोई और नहीं बल्कि देश का मशहूर पूंजीपति व अल राजही बैंक का मालिक सुलेमान अल राजही है, जो बड़ी मुश्किल से उन्हें ढूंढता हुआ यहां पहुंचा है.
कुछ देर बाद सुलेमान अल राजही ने कहा कि सर मैं आपको एक रियाल वापस करना चाहता हूं, जो मेरे ऊपर कर्ज है. टीचर ने कहा कि वह कर्ज नहीं तुम्हारा इनाम था. सुलेमान ने कहा कि मुझे पता है आप को वह एक रियाल लेना पड़ेगा. आप मेरे साथ चलिए. टीचर ने कहा कि कहां चलना है. सुलेमान ने कहा कि आइए थोड़ी देर में आप वापस आ जाइएगा.
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सुलेमान अपने उस्ताद को बड़े ही आदर के साथ गाड़ी में बैठाकर चले. कुछ देर बाद गाड़ी एक बड़े बंगले में जा कर रुकी. सुलेमान ने पूछा कि सर बंगला कैसा है. शिक्षक ने कहा कि शानदार. सुलेमान ने कहा कि आज से यह बंगला और ये गाड़ी आपकी हुई. साथ ही घर खर्च के लिए एक रकम हर माह आप को मिलती रहेगी और आपके बड़े बेटे की जाब भी पक्की.
शिक्षक सन्न हो गए. कुछ बोल न सके. थोड़ी देर बाद जब हालत संभली तो कहा कि सुलेमान यह बहुत ज्यादा है. सुलेमान ने कहा कि सर आज मुझे कोई इस तरह के दस बंगले और दस गाडियां दे तो भी वो ख़ुशी नहीं होगी जो उस दिन एक रियाल से हुई थी.
यह सुलेमान अल राजही जिन की पूंजी एक समय 5.9 अरब डॉलर थी और वह विश्व के 168 नंबर के मालदार थे. शून्य से ऊपर उठे और व्यापार जगत पर छा गए.
लेकिन अपनी हकीकत न भूलें. अपनी दो तिहाई दौलत दान कर दी और इस तरह वह विश्व के छठे सबसे बड़े दानवीर बने. सऊदी अरब के कसीम प्रांत में दो लाख खजूर के पेड़ वाला एक बाग हाजियों के लिए वक्फ कर दिया जो दान में दी गई विश्व की सबसे बड़ी संपत्ति है.
हालात की मार से खुद अधिक पढ़ नहीं सके थे लेकिन अपने समाज को एक यूनिवर्सिटी, मेडिकल कॉलेज और कई कालेज दिए. पूरे विश्व में मस्जिदें बनवाईं. जिनमें रियाद और मक्का की मस्जिदें बहुत शानदार हैं. यहां उनकी बाग यूनिवर्सिटी और मस्जिदों की तस्वीर दी जा रही हैं.
(खुर्शीद अहमद, मूलरूप से यूपी के हैं. सऊदी अरब की इमाम यूनिवर्सिटी से अरबी भाषा और साहित्य में परास्नातक किया. फिलहाल अभी कतर में कार्यरत हैं.)