अतीक खान
पिछले साल अक्टूबर में हैदराबाद में आए सैलाब से भारी तबाही हुई थी. आर्थिक चोट के साथ सैलाब अपने पीछे बीमारियों का बवंडर छोड़ गया. जिसने गरीबों के सामने रोजी-रोटी के साथ इलाज की चुनौती खड़ी कर दी. इससे पार पाने के लिए एक ऐसी पहल का आगाज हुआ, जो दिल को सुकून देने वाली है. हैदराबाद की तीन मस्जिदों ने गरीबों के मुफ्त इलाज के लिए अपने दरवाजे खोल दिए. आज इन मस्जिदों में रोजाना करीब 600 लोगों का उपचार हो रहा है. (Clinics Mosques Hyderabad Free Treatment)
सैलाब के बाद शहर के प्रभावित इलाकों में दिमागी बुखार, डायरिया, कुपोषण आदि बीमारियां फैली थीं. हेल्पिंग हैंड फाउंडेशन, जोकि खासतौर से स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करता है, ने गरीबों के इलाज के लिए हाथ बढ़ाया. कुछ आइटी प्रोफेशनल्स ने साल 2007 में ये एनजीओ बनाया था.
कुवैत का वो मुसलमान डॉक्टर, जिसने अफ्रीका में इंसानियत को जिंदा कर दिया
एनजीओ के प्रबंधक इमरान बताते हैं कि तीन मस्जिदों में हमारे क्लीनिक संचालित हो रहे हैं. पहला क्लीनिक शाहीन नगर की सैफ कॉलोनी स्थित ओमेर अल शिफा मस्जिद में खोला गया. यहां चार कमरे हैं, जिनमें क्लीनिक संचालित हैं. हर रोज औसतन 300 मरीजों का यहां से उपचार हो रहा है.
दूसरा क्लीनिक नवाब साहब कुंटा क्षेत्र की मस्जिद-ए-इशहाक में हैं और तीसरा क्लीनिक राजेंद्र नगर स्थित मस्जिद-ए-मुहम्मद मुस्तफा में चल रहा है. इस तरह तीनों मस्जिदों के क्लीनिक में प्रतिदिन लगभग 600-700 मरीज आते हैं.
मुफ्त इलाज की शर्त पर दे दीं मस्जिदें
इमरान बताते हैं कि जब हम मस्जिद में क्लीनिक खोलने का प्रस्ताव लेकर गए. और ये बताया कि हम लोग फ्री में गरीबों का इलाज करेंगे. मस्जिद के जिम्मेदारान फौरन राजी हो गए. चूंकि हमारे पास क्लीनिक खोलने के लिए जगह की कमी थी. और मस्जिदों के जरिये में अपने काम में सहूलियत हो गई.
पेशेवर चिकित्सकों की टीम कर रही इलाज
मस्जिदों में संचालित क्लीनिकों में पेशेवर डॉक्टरों की टीमें तैनात हैं. जो न सिर्फ मरीजों का उपचार करती हैं, बल्कि वॉलिंटियर्स के माध्यम से उनका फीडबैक भी लेती हैं. इमरान बताते हैं कि गंभीर अवस्था के मरीजों को हमारी टीम सरकारी अस्पताल लेकर जाती हैं. वहां भी हमारी हेल्प डेस्क बनी है. वहां संबंधित मर्ज के डॉक्टर को दिखाने के बाद मरीजों को वापस क्लीनिक लाते हैं.
बच्चों में बुखार के सबसे ज्यादा मामले
सैलाब के बाद बुखार की गंभीर समस्या बनी है. इमरान के मुताबिक कई बार तो ऐसा हुआ कि बच्चों को इतना तेज बुखार था, कि क्लीनिक पहुंचने तक उनकी मौत हो चुकी थी. क्लीनिक के माध्यम से कुपोषित बच्चों को इससे बाहर निकालने आदि रोगों का बाकायदा एक डायट प्लान है, जो मरीजों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए घर में नियमित पकने वाले भोजन के आधार पर भी तैयार किया गया है.
अरब में खजूर के दो लाख पेड़ों वाला बाग हाजियों के लिए वक्फ करने वाले सुलेमान की कहानी आपका दिल छू लेगी