#Covid-19SecondWave : अगर बापू होते तो शायद ऐसा नहीं होता ?

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इंद्रा यादव

लखनऊ। कोरोना काल में देश को बचाने के लिए सरकार प्रयासरत है. मोदी सरकार और राज्य सरकारें अब तेजी से वैक्सीनेशन करवा रही है और देश को बचाने के लिए लॉकडाउन का सहारा ले रही हैं. लोगों से मास्क पहनने और दो गज की दूरी बनाने की अपील लगातार की जा रही है. लेकिन कल्पना करिए की अगर महात्मा गांधी आज जिंदा होते तो वह कोरोना से देश को बचाने के लिए क्या करते?

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महामारी से देश को बचाते ‘बापू’

अगर इस महामारी के दौर में महात्मा गांधी होते तो वो आगे आकर देश हित में काम करते, पीड़ितों का साथ देते और सरकार से सामंजस्य बना कर जनता को जागरूक करते और अपील करते ही वह कोई भी ऐसा काम न करे जिससे देश खतरे में पड़े.

आज देश में दवाओं और वैक्सीनेशन के मामले में जो लापरवाही सामने आ रही है अगर बापू होते तो शायद ऐसा नहीं होता। क्योंकि बापू दवाओं की कालाबाजारी के खिलाफ आवाज उठाते और देश में सभी को वैक्सीन मिले हर सुविधा लोगों तक पहुंचे इसके लिए काम करते। इसके साथ ही कोरोना काल में होम्योपैथिक और आयुर्वेद पर छिड़ी जंग पर भी वह लोगों को समझाते।

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बापू कोरोना काल में गिरी देश की अर्थव्यवस्था को भी सुधारने का काम करते। इसके साथ ही लोगों से खुद को फिट रखने के लिए योग करने की अपील करते। और कोरोनाकाल में धरने पर बैठे अन्नदाताओं से अपील करते की वह महामारी के समय धरना प्रदर्शन न करे। हालांकि उनकी मांगों पर भी महात्मा गांधी ध्यान देते ।

सरकार की नीतियों में सुधार करते गांधी

कोरोनाकाल में जिस तरह से दवाओं और ऑक्सीजन की कमी हुई. और लोगों को बेड तक नसीब नहीं हुआ अगर बापू होते तो वह सरकार की गलत नीतियों में सुधार करते।

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कोरोना पीड़ितों का दर्द बांटते बापू

कोरोनाकाल में बापू सरकार के खिलाफ बयानबाजी न करते हुए गरीबों के लिए काम करते  और देश के अस्पताल में ऑक्सीजन बेड, वेंटीलेटर, आईसीयू, रेमडेसिविर जुटाते।

‘बापू’ ने अपने जीवनकाल में कई महामारी को देखा

बता दें, पिछली सदी में मोहनदास करमचंद गांधी से अधिक प्रभावित करने वाला दूसरा व्यक्तित्व शायद ही कोई विश्व के इतिहास में दर्ज हुआ हो। महात्मा गांधी ने भी अपने जीवनकाल में महामारी को देखा था। पिछली सदी को इतिहास में गांधी की सदी ही कहा गया है।

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इन्फ्लूएंजा महामारी में गांधी ने अपनों को खोया

एक अनुमान के अनुसार 1918-19 की इन्फ्लूएंजा की महामारी में लगभग दो करोड़ यानी विभाजन के दंगों से 40 गुना ज्यादा मौतें हुई थीं। वहीं इस महामारी में उनके बड़े बेटे हरिलाल गांधी की पत्नी गुलाब और उनके बेटे की मृत्यु हो गई थी। जिसने गांधी जी को अंदर तक आहत किया था।

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इन्फ्लूएंजा महामारी को तवज्जों नहीं दे रहे थे बापू

ऐतिहासिक स्रोत बताते हैं कि, वह इस महामारी को बहुत तवज्जो नहीं दे रहे थे, इसकी एक वजह तो शायद उस वक्त  खुद उनकी गिरती सेहत भी रही होगी। स्पेनिश फ्लू पर सबसे प्रामाणिक किताब पेल राइडर: द स्पेनिश फ्लू ऑफ 1918 लिखने वाली लौरा स्पिनी मानती हैं कि, गांधीजी को भी स्पेनिश फ्लू हुआ था।

यहां तक कि साबरमती आश्रम के अनेक लोग इससे पीड़ित हुए थे, उनके प्रिय मित्र सीएफ एन्ड्रयूज को भी हुआ था, और विडंबना यह भी थी कि, महात्मा उन सबके लिए कुछ नहीं कर पाए थे।

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जूडिथ एम ब्राउन के अनुसार, इसी कारण 1918 के उत्तरार्ध में भारतीय राजनीतिक पटल पर वे लगभग अदृश्य ही लगते हैं। इतना जरूर है कि, गांधी के जीवन से जुड़ी, उनकी अपनी लिखी किताबों में इस महामारी के दिनों के बेहद छिटपुट उल्लेख हमें मिल ही जाते हैं।

दुनियाभर के कई देश कोरोना के संकट से जूझ रहे

आज भारत समेत दुनियाभर के कई देश कोरोना के संकट से जूझ रहे है. भारत में कोरोना के मामलों की संख्या बहुत बड़ा आंकड़ा पार कर चुकी है. वहीं अभी भी तीसरी लहर की वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी. जिससे लोग सहमे हुए है.

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