मजहब की बुनियाद पर मोहसिन शेख की हत्या ही नहीं हुई इंसाफ का हक भी छिन गया

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Mohsin Sheikh Killed Religion Justice

अतीक खान


 आइटी प्रोफेशनल मोहसिन शेख, जिन्हें आज ही के दिन 2014 में हिंदुत्व की एक उग्र भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था. 2 जून को ये घटना पुणे में घटी थी. तब महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री पृथ्णीराज चह्वाण थे. मोहसिन के मरहूम पिता सादिक शेख के एक कथन के मुताबिक, “कांग्रेस सरकार ने उनके साथ छल किया.” बीते 7 सालों से ये परिवार इंसाफ की उम्मीद लिए सरकार, नेता और अफसरों के दरों पर एड़ियां रगड़ता फिर रहा है. तीन साल पहले सादिक शेख बेटे को न्याय दिलाने की अधूरी हसरत के साथ इस दुनिया से रुखसत हो गए.

मोहसिन शेख हत्याकांड की सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट की एक टिप्पणी पर गौर फरमाएं- ”मोहसिन दूसरे मजहब से थे, यही उनका गुनाह था. आरोपियों का भी कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है. न उनकी मोहसिन से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी थी. ऐसा लगता है कि धर्म के नाम उकसावे में उन्होंने ये कृत्य किया है. ” ये टिप्पणी जस्टिस मृदुला भटकर ने की थी. जोकि 2019 में न्यायालय से सेवानिवृत्त हो चुकी हैं.

सोलापुर की हिंदू बहुल कॉलोनी में रहता परिवार

मोहसिन शेख का परिवार मूलरूप से महाराष्ट्र के सोलापुर का निवासी है. दादा डाक विभाग में थे. इसलिए डाक कॉलोनी में उनका घर है. यहां केवल दो मुस्लिम घर हैं. जिसमें एक मोहसिन का. आइटी इंजीनियरिंग के बाद मोहसिन नौकरी के लिए पुणे गए थे. उनके भाई मुबीन के मुताबिक हमारी कॉलोनी में कभी भी हिंदू-मुस्लिम का भेद नहीं दिखा. हिंदू दोस्तों के साथ हम सब पले-बढ़े और पढ़ाई की. और मजहब के नाम पर हमारे भाई का कत्ल हो गया. हमारे परिवार को ये सबसे बड़ा दुख रहा.

नमाज पढ़कर लौट रहे थे मोहसिन भीड़ ने घेरकर मार दिया

दरअसल, मई 2014 में सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें वायरल हुईं थीं. इसमें शिवाजी महाराज और शिवसेना के संस्थापक बाला साहब ठाकरे की तस्वीरों संग छेड़छाड़ कर उन्हें आपत्तिजनक बनाया गया था. इस घटना को लेकर हिंदूवादी संगठनों ने काफी उत्पात मचाया. सांप्रदायिक फसाद की आशंका के मद़देनजर कई स्थानों पर धारा-144 लगाई गई. इसी कड़ी में 2 जून को मोहसिन मस्जिद से नमाज पढ़कर घर लौट रहे थे.तब हिंदू राष्ट्र सेना की भीड़ ने उन्हें घेरकर बेरहमी से पीटा. अस्पताल ले जाने पर डॉक्टरों ने मोहसिन को मृत घोषित कर दिया.

घटना में शामिल सभी 21 आरोपी जमानत पर बाहर

मोहसिन हत्याकांड में हिंदू राष्ट्र सेना के प्रमुख धनंजय देसाई के साथ 21 को आरोपी बनाया गया था. जिसमें धनंजय समेत कुछ और गिरफ्तार हुए थे. बाद में सभी आरोपी जमानत पर बाहर आ गए. तब से परिवार न्याय की लड़ाई लड़ रहा है, जिसमें वो अपना बहुत कुछ खो चुका है.

सत्ता बदलते ही सरकारी वकील ने छोड़ा केस

मोहसिन हत्याकांड में देश के मशहूर वकील उज्जवल निकम सरकारी वकील थे. लेकिन 2014 में ही महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन हो गया. और देवेंद्र फणनवीस के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी. जिसमें शिवसेना शामिल थी. सत्ता बदलाव के साथ ही सरकारी वकील निकम ने मोहसिन केस से किनारा कर लिया. हालांकि मोहसिन के पिता को निकम ने ये भरोसा जरूर दिया था कि आपको न्याय मिलेगा.

मोहसिन के बाद पिता की मौत-सड़क पर परिवार

24 साल के मोहसिन इंजीनियर थे. पिता की फोटो कॉपी की दुकान थी. भाई मुबीन भी जॉब करते थे. मां शवाना परवीन घर संभाल रही थीं. एक खुशहाल परिवार था. लेकिन धर्म रक्षकों की भीड़ ने मोहिसन की हत्या करके इसे उजाड़ डाला. 2018 में मोहसिन के पिता सादिक शेख का इंतकाल हो गया. मुंबीन की नौकरी चली गई. जमा-पूंजी कानूनी लड़ाई में खप गई. और इस तरह एक खुशहाल परिवार सड़क पर आ गया.

कांग्रेस ने मुआवजा दिया न सरकारी नौकरी

मरते दम तक सादिक शेख के दिल में बस एक ही टीस थी. वो ये कि इस पूरे घटनाक्रम में कांग्रेस ने उनके साथ बड़ा धोखा किया है. हत्या के वक्त मुख्यमंत्री ने 30 लाख रुपये मुआवजा और बेटे को सरकारी नौकरी का वादा किया था. जिसमें केवल 10 लाख मुआवजा मिला. बाकी रुपया और नौकरी आज तक नहीं मिली है. हालांकि फणनवीस सरकार में भी परिवार मदद की गुहार लगाता रहा. लेकिन सुनवाई नहीं हुई. घटना के एक दो साल बाद मीडिया से बातचीत में सादिक शेख ने कांग्रेस पर वादा खिलाफी और न्याय में मदद न करने का आरोप लगाया था.

7 साल बाद फिर सत्ता में भागीदार कांग्रेस

आज ट्वीटर पर जस्टिस फॉर मोहसिन शेख ट्रेंड कर रहा है. सात साल बाद फिर राज्य में एक बार कांग्रेस समर्थित सरकार है. लेकिन कांग्रेस नेता या सरकार ने मोहसिन शेख को इंसाफ दिलाने से किनारा कर रखा है. जब मोहसिन की हत्या हुई थी, तब भी राज्य में कांग्रेस सत्तासीन थी और आज भी पार्टनर है. लेकिन क्या वो मोहसिन के परिवार को न्याय दिलाएगी? इसकी अपेक्षा और संभावना कम है.

मुसलमानों के साथ खड़े होने में क्यों कतराते राजनीतिक दल

पिछले सात सालों में देश की राजनीतिक हवा पूरी तरह बदल चुकी है. हालात ये हो चुके हैं कि विभत्स घटनाओं में मारे जा रहे मुसलमानों के हक में बोलने से भी राजनीतिक दल कतराने लगे हैं. अब तक आमतौर पर मुसलमानों की भाजपा से ही एक शिकायत रहती है कि वो उन्हें हाशिये पर रखना चाहती है. लेकिन अब ये प्रश्न हर राजनीतिक दल के उछाला जाने लगा. जो काफी हद तक वाजिब भी है.

यूपी की घटनाओं पर खामोश विपक्ष

हाल ही में यूपी में कुछ ऐसी घटनाएं घटी हैं, जिनको लेकर विपक्ष को मुखर होना चाहिए था. मसलन, उन्नाव में सब्जी बिक्रेती फैसल की पुलिस हिरासत में हत्या, मीट बिक्रेता अकील कुरैशी मौत प्रकरण, मुरादाबाद में मीट बिक्रेता की भीड़ द्वारा पिटाई. फैसल और मुरादाबाद की घटना पर सामाजिक कार्यकर्ताओं की सक्रियता से पुलिस ने अपने स्तर पर कार्रवाई की. लेकिन विपक्ष मोहसिन के मजहब की तरह यहां भी खामोशी अख्तियार किए बैठा रहा.

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