अतीक खान
-उत्तर प्रदेश के कानपुर में रिक्शा चालक असरार अहमद को पीटकर, जय श्रीराम बुलवाने वालों को थाने से ही जमानत मिल गई. उनके खिलाफ जो धाराएं लगीं, उनमें इतना भी दम नहीं था कि मामला अदालत तक पहुंचता. दूसरी तरफ दिल्ली के जंतर-मंतर पर मुसलमानों के कत्लेआम का आह्वान करने के मामले में तीन आरोपियों की जमानत खारिज हो गई है. भड़काऊ नारों को अदालत ने संविधान की प्रस्तावना में निहित-धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ माना. (Incidents Against Muslim Justice )
ये दो मामले हैं. पहले इन्हें समझ लीजिए. फिर ये कि इन दोनों घटनाओं में समानता क्या है? इसी 8 अगस्त को जंतर-मंतर, जोकि संसद भवन से चंद कदमों की दूरी पर है. वहां भारत जोड़ो आंदोलन होता है. सनद रहे केि ये आंदोलन भाजपा नेता अश्वनी उपाध्याय बुलाते हैं. इसी में मुसलमानों के खिलाफ हिंसक नारेबाजी-नरसंहार का आह्वान होता है. उसी को कोर्ट ने धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ माना है.

लेकिन इन नारों का समाज पर क्या असर हुआ? उसका जवाब है कानपुर घटना. जहां रिक्शा चलाने वाले गरीब, असरार अहमद भीड़ हिंसा का शिकार हो जाते हैं. भीड़ उन्हें घसीटकर पीटती है. उस वक्त, जब असरार की मासूम बच्ची भी उनके साथ होती है.
पिता की पिटाई पर वह बिलखती है. बचाने की कोशिश भी करती. लेकिन रक्षकों पर कोई असर नहीं होता. ये सब रात के अंधेरे में नहीं, बल्कि दिन के उजाले में होता है. और पुलिस की मौजूदगी में. (Incidents Against Muslim Justice )
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हिंसा का वीडियो वायरल होने पर कानपुर पुलिस ने इस मामले में नामजद और अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज किया था. बजरंग दल से जुड़े लोगों के साथ तीन हिरासत में लिए गए. हालांकि शुक्रवार शाम को ही उन तीनों को थाने से जमानत मिल गई.
जिस धार्मिक नारे के साथ एक ग़रीब रिक्शा चालक को जानवरों की तरह पीटा गया, वही नारा अब दरिंदगी करने वालों को छुड़ाने के लिए लगाया जा रहा है। यह कट्टरपंथ, यह उग्रवाद हिंदू समाज की नैतिकता का पतन कर रहा है। उसे बचाने के लिए हिंदू धर्म गुरुओं को आगे होना होगा।pic.twitter.com/5PxAwahTYY
— Wasim Akram Tyagi (@WasimAkramTyagi) August 12, 2021
इससे पहले कानपुर साउथ की डीसीपी रवीना त्यागी पीड़ित असरार के घर पहुंचीं. उस बच्ची की आंखों में आंखें डालकर बात की. हौसला दिया. जो पिता के साथ हिंसा के वक्त मौजूद थी. डीसीपी की ये कोशिश बच्ची के मनोबल पर पड़े हिंसक असर को शायद कुछ कम कर पाए.
जिसके लिए डीसीपी की खूब सराहना भी हुई. लेकिन आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई को लेकर सवालों की झड़ी लगी है. जो कानपुर पुलिस से पूछे जा रहे हैं.

तो ये दो घटनाएं हैं, जिनमें एक तरफ हिंसा का आह्वान है तो दूसरी ओर उसके रिजल्ट के रूप में हिंसक घटना भी. लेकिन अल्पसंख्यक, खासकर मुसलमानों के खिलाफ हेट स्पीच का परस्पर सिलसिला पिछले डेढ़ महीने से चल रहा है. (Incidents Against Muslim Justice )
4 जुलाई को सुल्ली-डील्स पर औरतों का बाजार
नरसिंहानंद सरस्वती की पैगंबर-ए-इस्लाम के खिलाफ टिप्पणी का मुद्दा जब बिना कानूनी कार्रवाई के ठंडा पड़ गया. तब, 4 जुलाई को सुल्ली डील्स पर मुस्लिम औरतों की खरीद-फरोख्त की आपराधिक घटना सामने आती है.
बिहार के सांसद मुहम्मद जावेद गृहमंत्री अमित शाह से मिलते हैं. उन्हें 56 सांसदों का वो हस्ताक्षर पत्र भी सौंपते, जिसमें सुल्ली डील्स पर ऐसी हरकत करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग शामिल थी. इसके बावजूद कोई एक्शन प्रतीक्षा में है.
मुस्लिम महिलाओं के नंबर वायरल किए
हाल ही में कुछ लड़कों ने मुस्लिम महिलाओं के नंबर सोशल मीडिया पर वायरल किए. इस आह्वान के साथ कि उन्हें फंसाकर इस्तेमाल करें. बाकायदा ये मुहिम छेड़ी गई. इसके खिलाफ तमाम शिकायतें हुईं. दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाती मालीवाल ने भी दिल्ली पुलिस को पत्र लिखा. नोटिस जारी किया. लेकिन इसके जवाब में पुलिस ने कहा कि कोई शिकायत ही नहीं मिली है. इसलिए ये मामला भी बिना कानूनी कार्रवाई के ठंडे बस्ते में चला गया. (Incidents Against Muslim Justice )
नेशनल टीवी पर पिंकी की पैगंबर-ए-इस्लाम पर टिप्पणी
हिंदू रक्षक दल के नेता पिंकी चौधरी ने जंतर-मंतर की घटना के बाद एक नेशनल टीवी चैनल के मंच से पैगंबर-ए-इस्लाम की शान में गुस्ताखी की है. अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल किया. जाहिर तौर पर किसी भी धर्म के धर्मगुरु के खिलाफ ऐसी भाषा हेट स्पीच है. दुर्भाग्य से टीवी चैनल ने न सिर्फ इसकी अनुमति दी, बल्कि इसे प्रसारित भी किया.
अब मुस्लिम समाज पिंकी चौधरी के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहा है. ट्वीटर पर ये मांग ट्रेंड कर रही है. मुंबई की रजा एकेडमी के अध्यक्ष सईद नूरी ने इस इसको लेकर मुंबई पुलिस कमिश्नर से शिकायत की है. जिसमें पिंकी की गिरफ्तारी की मांग शामिल है.
काबिलेगौर है कि भड़काऊ बयानबाजी, हिंसक घटनाएं-ये सब सिलसिलेवार तरीके से चल रहा है. कानपुर घटना के आरोपियों को थाने से ही जमानत मिलने को लेकर रिटायर्ड डीजीपी डा. एनसी अस्थाना ने इसे कानून की बुनियादी कमजोरी बताया है. (Incidents Against Muslim Justice )
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उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ अमानवीय घटनाएं, सार्वजनिक तौर पर अपमान किया जा रहा है. इसलिए देश को एससी-एसटी एक्ट-1980 की तरह एक कानून लाना होगा, हो धर्म के आधार पर अपमान के लिए दंडित करे.
पत्रकार अब्दुल माजिद निजामी ने भी कानुपर मामले पर सवाल उठाते हुए लिखा है-दो संप्रदायों के बीच नफरत फैलाकर दंगा भड़काने की कोशिश करने वाले बजरंग दल के लोगों को 24 घंटे के अंदर जमानत मिल गई. डीसीपी से सवाल किया-क्या ये आपका इंसाफ है? आरोपियों पर इतनी कमजोर धाराएं लगाई गईं कि उन्हें जेल जाना ही नहीं पड़ा और थाने से जमानत मिल गई.
पूर्व आइपीएस अब्दुर्रहमान ने कानपुर घटना को लेकर ट्वीट किया-सैकड़ों लोग मॉब लिंचिंग में मारे गए. कमजोरों को मारकर जय श्रीराम का नारा लगाया जा रहा है. पीएम नरेंद्र मोदी जी एक बार तो सामने आकर इसकी निंदा कीजिए. कड़ी कार्यवाही की चेतावनी दीजिए. सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, पूरा देश आपका आभारी रहेगा. (Incidents Against Muslim Justice )
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