जकात कैलकुलेटर: इस तरह निकालें समाज में संतुलन पैदा करने को हिस्सा

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रमजान के महीने में जकात देने से पहले यह जानना जरूरी है कि जकात है क्या, किस तरह जकात तय करें। इस काम में गणना करने वाले भी जानकारी देने में मदद करते हैं कि किस हिस्से से जरूरतमंदों के लिए कटौती करना है लेकिन यह बात आप खुद ही जान लें तो आप खुद इसकी गणना ऑनलाइन तरीकों से कर सकते हैं, जिससे जकात देने में आसानी हो। इससे एक सटीक राशि पता लग सकती है कि सालभर की किस कमाई और बचत में जरूरतमंदों के लिए हिस्सा देना है और कितना देना है। (Zakat Calculator Balance Society)

इस्लामिक सिद्धांत के हिसाब से एक अच्छा मुसलमान होने के लिए केवल नमाज पढ़ना और रोजा रखना काफी नहीं है। मुस्लिम के रूप में समुदाय की मदद-सपोर्ट करना भी जरूरी है। यही वजह है कि इस्लाम हर किसी को जकात यानी दान देकर जरूरतमंदों और गरीबों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित करता है। यह इस्लाम मानने वाले के लिए विकल्प नहीं, बल्कि उसी आस्था का प्रमुख हिस्सा है, जो एक तरह का कम्युनिटी टैक्स है। एक तरह से ”पे बैक टू सोसायटी” जैसा।

इस्लाम के पांचों सिद्धांत कलमा, नमाज, जकात, रोजा और हज में जकात तीसरे नंबर पर है, यह इस सिद्धांत की अहमियत है। कुरआन में जकात शब्द का 33 बार इस्तेमाल हुआ है। जकात के सिद्धांत को लागू करने को इस्लाम में न सिर्फ रूह बल्कि संपत्ति को शुद्ध-पवित्र किया जा सकता है। इस्लामिक मान्यता में इसीलिए इस पर खासा जोर दिया जाता है। जकात अदा करना एक बाध्यता है।

ज़कात किसी मुसलमान को उस समूची संपत्ति से देना होती है, जिसे उसने एक साल में बनाया है। इस संपत्ति का 2.5 प्रतिशत हिस्सा जरूरतमंदों और गरीबों को देने के लिए अलग निकालकर रखना होता है। जकात देने का व्यवहारिक पहलू भी है, अनिवार्यता होना कठिनाई नहीं है। दो शर्तें हैं, जिसके बाद जकात देना अनिवार्य होती है। एक निसाब और दूसरी नियत तारीख।

निसाब, यानी ज़कात देने वाले के पास धन की मात्रा, परिवार की ज़िम्मेदारियां और कर्ज की स्थिति मायने रखती है। हदीस में ज़कात के बारे में स्पष्ट किया है, जिसे ज्यादातर मुसलमान लागू करते हैं। जो धनराशि हदीस में बताई गई है, वह आज के हिसाब से बहुत बड़ी रकम है, लिहाजा जकात देने वालों की तादाद काफी कम है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जकात की धनराशि कम होती है। (Zakat Calculator Balance Society)

इसका एक अर्थ यह भी है कि दुनियाभर के कुल मुसलमानों में अमीर लोगों की संख्या कम है, जिनमें कुछ के पास काफी आमदनी है। ऐसे लोग पाबंदी से जकात दे रहे होंगे तो जकात का हिस्सा बड़ी धनराशि बन जाता है।

इस्लामिक मामलों के जानकार आमतौर पर बताते हैं कि साढ़े 52 तोला चांदी या 7.30 तोला सोना या फिर इतनी मालियत की रकम होना चाहिए जकात देने के लिए। यहां यह समस्या आ सकती है कि सोने और चांदी के भाव में बहुत अंतर है और रोजाना घटते-बढ़ते भी हैं। पंद्रह अप्रैल को सोने का भाव लगभग 46 हजार रुपये प्रति दस ग्राम यानी तोला और चांदी का भाव 680 रुपये प्रति दस ग्राम था। (Zakat Calculator Balance Society)

हदीस के मुताबिक-

नबी ने कहा: पांच औकिया (52 तोला 6 मासा) से कम चांदी पर जकात नहीं है, और पांच ऊंट से कम पर जकात नहीं है और पांच अवाक (खाद्यान्नों का एक विशेष माप, 34 मन गल्ला) से कम पर जकात नहीं है। ( सही बुखारी , हदीस नंबर 1447)

“नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मैं तुम्हें चार कामों का हुक्म देता हूं और चार कामों से रोकता हूं। मैं तुम्हें ईमान बिल्लाह का हुक्म देता हूं तुम्हें मालूम है कि ईमान बिल्लाह क्या है? उसकी गवाही देना है कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं और नमाज कायम करना और ज़कात देने और गनीमत में पांचवा हिस्सा देने का हुक्म देता हूं”। (सही बुख़ारी, 7556)

नियत तारीख: जकात कब अदा करनी चाहिए?

निसाब की देय तिथि उस तारीख से शुरू होती है, जिस दिन तक बीते वर्ष की जकात अदा की है। अमूमन जकात अदा करने का सबसे अच्छा और आदर्श मौका रमजान का महीना माना जाता है। ज्यादातर मुसलमान रमजान में ही जकात देते हैं। इस दरम्यान वे जकात की गणना के तरीके तलाशते हैं।

ज़कात की गणना कैसे करें

जकात को कितना भुगतान करना है, इसकी गणना करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि विचार करने के लिए बहुत सी चीजें हैं। गणना संपत्ति और धन दोनों को जोड़कर की जाती है। कुल में से मौजूदा जरूरत और निसाब का मूल्य घटाना होता है। निसाब मूल्य बदलती रोजमर्रा की जरूरतों को शामिल कर निकालना होता है।

इसके बाद वास्तविक बचत में से 2.5 प्रतिशत जकात निकालना होता है। कुल संपत्ति और पैसे में से 2.5 प्रतिशत में से निसाब का मूल्य घटाना होता है और फिर नियमानुसार जकात निकाल सकते हैं या नहीं, यह परखना होता है। इसके लिए हदीस में समझाया गया मानक भी देखा जाता है। (Zakat Calculator Balance Society)

विरासत में मिला पैसा, सोने-चांदी के अलावा की धातुएं या ऐसी संपत्ति जो अभी पहुंच में नहीं है, उसे जकात में नहीं गिना जाता। इसके अलावा सेवाओं, प्रीपेड खर्चों, संपत्ति और उपकरणों के बकाए का पैसा भी जकात में नहीं गिना जा सकता। ऐसी संपत्ति पर जकात बनती है, जिसे लाभ कमाने के इरादे से लिया गया हो। शेयर मार्केट, जुआ, ब्याज आदि जैसी कमाई हराम है, इससे जकात नहीं निकाली जा सकती।


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