मनीष आज़ाद-
मजदूरों पर कविताएं तो बहुत लिखी गई हैं, लेकिन ‘मजदूर कवि’ कम ही हुए हैं। ‘शू लिझी’ [Xu Lizhi]चीन के ठेठ मजदूर कवि थे।
‘शू लिझी’ [Xu Lizhi] उस वक्त महज 24 वर्ष के थे, जब 30 सितंबर 2014 को उन्होंने बहुमंजिला मजदूर डाॅरमेट्री से छलांग लगाकर अपना जीवन समाप्त कर लिया। वे ‘फाॅक्सकान’ नामक इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनी में मजदूर थे। चीन में मजदूरों की मौत कोई खबर नहीं होती। दरअसल, चीन की बहुप्रशंसित विकास दर चीन के मजदूरों की लाश पर ही खड़ी है। जितनी ज्यादा लाशें उतनी ज्यादा विकास दर। पिछले वर्ष ही वहां सिर्फ खनन उद्योग में ही 577 मौतें हुई थीं।
शू लिझी की मौत भी चीन की विकास दर की भेंट चढ़कर गुमनामी में खो जाती, लेकिन कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के हाथ उनकी डायरी लग गई। डायरी में पन्ने दर पन्ने वहां के मजदूरों के जीवन के रोजमर्रा के संघर्ष, उनके सपने, उनकी आकांक्षाएं और दुनिया बदलने की उनकी जिद दर्ज थी और वह भी कविता के रुप में।
उन दोस्तों ने इन बेहतरीन कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया और इन्हें इंटरनेट पर डाल दिया। तब से दुनिया की कई भाषाओं में इन कविताओं का अनुवाद शुरु हो चुका। फिर दुनिया को पता चला कि 30 सितंबर 2014 को एक मजदूर की ही नहीं बल्कि एक कवि की भी मौत हुई थी।
‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ के शब्दों में कहें तो-”तुम्हारी मृत्यु में/ प्रतिबिंबित है हम सबकी मृत्यु/ कवि कहीं अकेला मरता है!”
इसके बाद ही दुनिया को यह भी पता चला कि फॅाक्सकान में काम करने वाले बहुत से मजदूरों ने वहां के शोषण और निर्मम जीवन स्थितियों के कारण आत्महत्या की है।
सिर्फ चीन में ही फॉक्सकॉन कंपनी के पास 12 लाख मजदूर और कर्मचारी हैं। कंपनी के मालिक ‘टेरी गाउ’ (Terry Gou) की अपने मजदूरों के प्रति सोच क्या है, यह उनके एक बयान से पता चलता है, जिस पर काफी विवाद भी हुआ था और उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी थी।
एक बोर्ड की मीटिंग में उन्होंने कहा था कि 12 लाख मजदूर 12 लाख पशुओं के समान हैं और पशुओं को हैंडल करना हमेशा ही काफी सरदर्द वाला काम होता है। यही सच है कि फाॅक्सकान के मजदूरों से कंपनी का बर्ताव पशुओं जैसा ही होता है। ऐसी सोच का ही यह नतीजा है कि मजदूरोें की आत्महत्या रोकने के लिए कंपनी ने डाॅरमेट्री के चारों तरफ नेट लगा दिया ताकि कोई ऊपर से कूदे तो जाल में उलझ जाए।
मजदूरों के साथ यह क्रूर मजाक नहीं तो और क्या है? कुछ वर्षों पहले की बात है, जब छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक स्पंज आयरन फैक्टरी में एक के बाद एक कई हादसे हुए जिसमें 4 मजदूरों की मौत हो गई थी। तब ऐसे हादसों और मौतों को रोकने के लिए फैक्टरी को एक दिन के लिए बंद करके वहां गायत्री मंत्र का जाप व हवन कराया गया। हम भी चीन से पीछे क्यों रहे?
फाॅक्सकान कंपनी ने शू लिझी की मौत के बाद उनके परिवार वालों को धमकी देकर ऐसे समझौते पर दस्तखत करा लिया कि वे शू लिझी के बारे में मीडिया से बात नहीं करेंगे। यह बात तब सामने आई जब शू लिझी पर एक डाॅक्यूमेंट्री बनाने वाले फिल्मकार ने उनसे संपर्क करना चाहा।
उन पर ‘आयरन मून’ (Iron Moon) नाम से एक डाॅक्यूमेंट्री भी बनी है। इस डाॅक्यूमेंट्री का शीर्षक उन्हीं की एक कविता ‘मैंने लोहे से बने एक चांद को निगल लिया’ से लिया गया है।
बहरहाल उनकी कविताओं का आज दुनिया के कई हिस्सों में पाठ हो रहा है।
शू लिझी की कविताओं में वह चुभने वाला यथार्थ है, जो मीडिया-अखबारों से ओझल है। दुनिया की सारी चमक-दमक जिनके बल पर है, वो अदृश्य हैं, जैसे उनका कोई अस्तित्व ही ना हो। लेकिन शू लिझी की कविताओं में वे मौजूद हैं, अपनी पूरी ठसक और अपनी संघर्ष चेतना के साथ।
इन कविताओं से गुजरते हुए अंदर कुछ टूटता जाता है और शू लिझी से यह शिकायत जोर पकड़ती जाती है कि तुमने गलत किया। तुम्हें अपनी जान नहीं देनी चाहिए थी। कविता को इस तरह से अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए था, संघर्ष को इस तरह अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए था।
लेकिन टूटी कड़ियां फिर-फिर जुड़ जाती हैं और कविता हमेशा आगे बढ़ती जाती है, क्योंकि प्रतिरोध की परंपरा कभी आत्महत्या नहीं करती। शू लिझी की मौत के बाद उसके एक दोस्त ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए एक कविता में लिखा-
”मेरी जगह तुमने मौत का दामन थामा है,
तो तुम्हारी जगह अब मैं लिखूंगा।”
अपनी मौत के दिन ही उन्होंने जो कविता लिखी थी, उससे रोहित वेमुला के उस पत्र की याद ताजा हो जाती है, जो उसने आत्महत्या के वक़्त लिखा था। रोहित वेमुला के पत्र की तरह ही शू लिझी की यह कविता भी समाज की उस अजनबियत को बहुत तीखे तरीके से सामने लाती है, जिससे आज मजदूर ही नहीं बल्कि पूरा समाज गुज़र रहा है-
‘मौत के कगार से’….
मैं दूसरे पहाड़ पर चढ़ना चाहता हूं,
अपनी खोई चेतना को वापस पाना चाहता हूं,
मैं आसमान को छूना चाहता हूं,
हल्के आसमानी रंग को महसूस करना चाहता हूं
लेकिन मैं इसमें से कुछ भी नहीं कर सकता,
इसलिए मैं यह दुनिया छोड़ रहा हूं
कोई भी जो मुझे जानता है,
उसे मेरे इस तरह जाने से आश्चर्य नहीं होना चाहिए,
दुःखी तो कतई नहीं होना चाहिए,
जब मैं आया था, तो भी मैं अच्छा था,
और आज जा रहा हूं तो भी मैं अच्छा हूं