जायदाद में बीवी के हिस्से को लेकर अरब में क्यों छिड़ी हज़रत उमर के इस फैसले पर बहस

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World Womens Day Discussion

खुर्शीद अहमद


आज विश्व महिला दिवस है. पूरी दुनिया में महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर चर्चा जारी है. व्याख्यान हो रहे हैं. लेकिन अरब जगत में एक ऐसी बहस छिड़ी है, जो महिलाओं के अधिकार और आर्थिक हालात से जुड़ी है. विश्व महिला दिवस पर इस बहस पर एक नज़र. (World Womens Day Discussion)


पिछले कुछ महीनों से अरब दुनिया के दीनी व समाजिक हल्कों में एक मसला छिड़ा हुआ है, जो काफी चर्चा में है. मामला है अल कद्द व अल सिआया का. जिस पर यूनिवर्सिटीज, पब्लिक फ़ोरम, उल्मा की मजलिसों और बुद्धिजीवियों की महफ़िलों में ख़ूब बहस हो रही है. इस पर चर्चा की शुरुआत मिस्र की मशहूर अल अज़हर यूनिवर्सिटी के शेख डाक्टर अहमद अल-तैयब ने की है. इस सिलसिले में उन्होंने सऊदी अरब के अवकाफ मंत्री से भी भेंट की.

पहले ये जान लेते हैं कि अल कद्​द व अल सियाआ आख़िर है क्या? दरअसल, इस्लामिक शरीयत में किसी पुरुष के मरने पर उसकी बीवी को उसकी जायदाद में से आठवां हिस्सा यानी 12.5 प्रतिशत मिलता है. यह उस शक्ल में होगा जबकि उस की कोई औलाद होगी. और अगर संतान न हो तो फिर पति की संपत्ति में बीवी का हिस्सा एक चौथाई यानी 25 प्रतिशत होगा. (World Womens Day Discussion)


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हज़रत उमर के जमाने में एक शख़्स का इंतक़ाल हुआ. उनका नाम आमिर बिन अलहारिस था. उनकी कोई औलाद नहीं थी. जब उनकी मीरास तकसीम हुई तो उनकी बीवी हबीबा को शरीयत के मुताबिक एक चौथाई जायदाद मिली. लेकिन हबीबा को इससे संतोष नहीं हुआ. वह हज़रत उमर के पास शिकायत लेकर पहुंचीं. और कहा कि जब मेरी शादी हुई उस वक़्त मेरे शौहर के पास कोई जायदाद नहीं थी.

वह एक क़स्सार यानी रंगरेज थे. और कपड़ों को रंगा करते थे. फिर यह काम हम दोनों ने मिलकर काम शुरू किया. वह कपड़े खरीदने और बेचने का काम करते और मैं कपड़ों को रंगने का. इस तरह हम दोनों ने मिलकर जायदाद बनाई है. अब मुझे सिर्फ एक चौथाई जायदाद मिल रही है. यह मेरे साथ ज़्यादती है. (World Womens Day Discussion)

हज़रत उमर ने तमाम वारिसों को बुलाया. उनकी बातें सुनीं. और फिर सहाबा किराम के मशविरा से जायदाद को दो हिस्से में बांट दिया. एक हिस्सा आमिर का और दूसरा हिस्सा उनकी बीवी हबीबा का. यानी जायदाद में मियां-बीवी दोनों को बराबर का पार्टनर माना गया. हबीबा का हिस्सा उन्हें मिल गया. और आमिर के हिस्से को उनके सभी वारिसों में तकसीम किया गया. इसमें भी हबीबा को बीवी होने के नाते एक चौथाई हिस्सा मिला.

हज़रत उमर के इस फैसले को अल कद्द व अल सिआया का नाम दिया गया. ये फैसला हो गया पर यह क़ानून नहीं बन सका. हां, इमाम मालिक के मानने वाले इस पर अमल करते रहे. चूंकि क़ानूनी शकल नहीं थी. जैसा कि हम सब जानते हैं कि मोरक्को में इमाम मालिक को मानने वाले अधिक हैं. वहां की संसद ने काफी बहस के बाद 2006 में इसे क़ानूनी शक़्ल दी थी.

अब अल-अज़हर यूनिवर्सिटी के शेख डाक्टर अहमद अल-तैयब ने इस मामले पर चर्चा शुरू की है. वह इसे सभी अरब देशों में क़ानूनी शक़्ल देना चाहते हैं. क्योंकि आज के समाज में पति-पत्नी दोनों मिलकर नौकरी करते हैं. खर्च चलाते हैं. और जायदाद बनाते हैं. अब पत्नी की कमाई पति के वारिसों को मिल जाए. यह तो ज़्यादती ही है. (World Womens Day Discussion)

इस पर चर्चा हो रही है. अधिकांश लोग समर्थन में हैं. तो कुछ विरोध में भी हैं. सबकी पास अपनी दलीलें हैं. मुझे नहीं मालूम कि चर्चा का क्या अंजाम होगा? लेकिन यह जरूर पता चलता है कि वो समाज कितना आगे हैं. हम तो जायदाद में महिलाओं का सादा हक तक नहीं देते हैं. और न ही इस पर चर्चा करते हैं. और वहां अलग अलग तरीके से चर्चा हो रही है कि महिलाओं को उनका हक़ कैसे मिले. उनका हिस्सा मारा न जाए.


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