विश्व उर्दू दिवस: इस ज़बान से मुहब्बत हर किसी के लहजे में है

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विश्व उर्दू दिवस पर भारत में खास उल्लास तो नहीं है, लेकिन इस ज़बान से मुहब्बत हर किसी के लहजे में मौजूद है। पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़, शहरी हो या ग्रामीण पृष्ठभूमि का, हर शख्स इस भाषा के शब्द सुबह से शाम तक बोलचाल में इस्तेमाल करता ही है। हालांकि, यह अफसोसनाक है कि एक बड़ा तबका ऐसा भी पैदा हो गया है, जो इस भाषा के शब्द बोलता तो है, लेकिन उसने इस भाषा से ही नफरत पाल ली है। (World Urdu Day)

बीते बरसों में इसके दो उदाहरण उत्तरप्रदेश के दो जिलों में सामने आए। एक वाकया था रुहेलखंड विश्वविद्यालय के सबसे बड़े महाविद्यालय में उर्दू साहित्य के प्रचार प्रसार को आई वैन को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं द्वारा भगा देना।

दूसरी घटना पीलीभीत में हुई, जब विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में सुबह की प्रार्थना में ‘लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी’ गाने पर ऐतराज जताया। इस प्रार्थना को लेकर वहां के तत्कालीन बीएसए इस्लामी कर्मकांड का हिस्सा तक बता दिया था। प्रार्थना कराने वाले शिक्षक फुरकान अली पर विभागीय कार्रवाई भी की गई। पहले निलंबित किया गया और बाद में बहाल करके तबादला किया गया, जबकि उर्दू में यह प्रार्थना बेसिक शिक्षा विभाग के उर्दू पाठ्यक्रम की किताबों में छपी हुई है। (World Urdu Day)

यह दुआ सबसे पहले ऑल इंडिया रेडियो, लखनऊ ने 1938 में अल्लामा इकबाल के निधन के कुछ महीनों बाद प्रसारित की थी। बताया जाता है कि 1940 में इंग्लिश मीडियम के प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई के दौरान जामा मस्जिद दिल्ली के इमाम मुहिबुल्लाह नदवी ने गाई थी। यह दुआ, लंबे अरसे तक देहरादून में दून स्कूल में प्रार्थनासभा में गाई जाती रही। फिलहाल ये दुआ पाकिस्तान के सभी स्कूलों में प्रार्थना सत्र में संगीत के साथ गाई जाती है, भारत में मान्य है, लेकिन यह कहना अब मुश्किल है कि कहीं गाई भी जाती है या नहीं।

इस प्रार्थना के बोल उन्हीं अल्लामा इकबाल ने लिखे हैं, जिन्होंने ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा’ नज्म लिखी। अल्लामा इकबाल के जन्मदिन पर ही दुनियाभर में विश्व उर्दू दिवस मनाया जाता है। (World Urdu Day)

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उर्दू भाषा के बारे में चंद बातें

यह स्थापित सच है, उर्दू भारतीय आर्य भाषाओं में से एक है। इसका विकास मध्ययुग में उत्तरी भारत में हुआ। जब कविता और गजल में इस्तेमाल होने पर इसे “रेख्ता” (मिली-जुली बोली) कहा गया। यूरोपीय लेखकों ने इसे “हिंदुस्तानी” कहा तो कुछ अंग्रेज लेखकों ने “मूस” नाम दिया। (World Urdu Day)

उर्दू जबान की पैदाइश हिंदी जैसी ही है। फर्क इतना ही है कि उर्दू में अरबी-फारसी शब्दों का प्रयोग ज्यादा होता है तो हिंदी में संस्कृत के। इसकी लिपि फारसी जैसी है, जिसके चलते कई मुहावरों में शैली मिठास और नफासत ओढ़ लेती है। इस भाषा के विकास को जानना काफी दिलचस्प है।

उर्दू का शुरुआती रूप या तो सूफी फकीरों की बानी में मिलता है या जनता की बोलचाल में। उर्दू के विकास में पंजाबी का असर सबसे पहले पड़ा होगा, ऐसा भी दिखाई देता है। 15वीं और 16वीं सदी में दक्षिण के कवियों और लेखकों की रचनाओं में पंजाबी शब्दों की छौंक दिखाई देती है। फिर 17वीं और 18वीं शताब्दी में ब्रजभाषा का गहरा प्रभाव उर्दू पर पड़ा। (World Urdu Day)

माना जाता है कि मुसलमान भारत में आए तो वे स्थानीय वातावरण से प्रभावित हुए। उन्होंने स्थानीय भाषाएं सीखीं और उनमें अपनी बात कहना शुरू की।

कुछ जगह लाहौर के ख्वाजा मसऊद साद सलमान के नाम का जिक्र होता है, जो 1166 में रहे, जिन्होंने हिंदी में काव्यसंग्रह किया। उसी समय में कई सूफी फकीरों के नाम मिलते हैं जो देश के कोने-कोने में घूम फिरकर जनता में अपने विचारों का प्रचार कर रहे थे।

यह साधारण अंदाजा है कि उस समय कोई बनी बनाई भाषा प्रचलित नहीं रही होगी इसलिए वे बोलचाल की भाषा में फारसी अरबी के शब्द मिलाकर काम चलाते होंगे। इसके बहुत से उदाहरण सूफियों के संबंध में लिखी हुई पुस्तकों में मिल जाते हैं। (World Urdu Day)

बाबा फ़रीद शकरगंज, शेख़ हमीदउद्दीन नागौर, शेख़ शरफ़ुद्दीन अबू अली क़लंदर, अमीर खुसरो, मख़दूम अशरफ़ जहांगीर, शेख़ अब्दुलहक़, सैयद गेसू दरज, सैयद मुहम्मद जौनपुर, शेख़ बहाउद्दीन बाजन आदि ऐसे ही कुछ नाम हैं।

इनके वचन और दोहे जाहिर करते हैं कि तब एक ऐसी भाषा बन रही थी जो जनसाधरण समझ सकता था और जिसका रूप दूसरी बोलियों से कुछ जुदा था। यही उर्दू कहलाई।

तीन भाषाओं में पढ़िए: लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी

लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी

ज़िंदगी शमा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी!

दूर दुनिया का मिरे दम से अंधेरा हो जाए!

हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाए!

हो मिरे दम से यूं ही मेरे वतन की ज़ीनत

जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत

ज़िंदगी हो मिरी परवाने की सूरत या-रब

इल्म की शमा से हो मुझ को मोहब्बत या-रब

हो मिरा काम ग़रीबों की हिमायत करना

दर्द-मंदों से ज़ईफ़ों से मोहब्बत करना

मिरे अल्लाह! बुराई से बचाना मुझ को

नेक जो राह हो उस रह पे चलाना मुझ को

 

My longing comes to my lips as supplication of mine.

Oh God! May like the beauty of the candle be the life of mine.

May the world’s darkness disappear through the life of mine

May every place light up with the sparkling light of mine

May my homeland through me attain elegance

As the garden through flowers attains elegance

May my life like that of the moth be oh Lord

May I love the lamp of knowledge oh Lord

May supportive of the poor my life’s way be

May loving the old, the suffering my way be

My God! Protect me from the evil ways

Show me the path leading to the good ways

لب پہ آتی ہے دعا بن کے تمنا ميری

زندگی شمع کی صورت ہو خدايا ميری

دُور دنيا کا مرے دم سے اندھيرا ہو جائے

ہر جگہ ميرے چمکنے سے اُجالا ہو جائے

ہو مرے دم سے يونہی ميرے وطن کی زينت

جس طرح پھول سے ہوتی ہے چمن کی زينت

زندگی ہو مری پروانے کی صورت يا رب

علم کی شمع سے ہو مجھ کو محبت يا رب

ہو مرا کام غريبوں کی حمايت کرنا

دردمندوں سے ضعيفوں سے محبت کرنا

مرے اللہ! برائی سے بچانا مُجھ کو

نيک جو راہ ہو اسی رہ پہ چلانا مجھ کو


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