सना ख़ान की इस तस्वीर पर क्यों मचा है हंगामा, मुफ्ती अनस को दी जा रही नसीहत

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sana khan - before and now

फिल्म इंडस्ट्री छोड़कर इस्लाम के रास्ते पर चलने की बात कहने और फिर मालदार परिवार के मुफ्ती अनस से निकाह करने वाली सना खान इन दिनों फिर चर्चा में हैं। मुफ्ती अनस नाम के फेसबुक ग्रुप पर उनकी एक तस्वीर पोस्ट होते ही सैकड़ों कमेंट आ गिरे, जिनमें तारीफ के साथ माशाल्लाह लिखने वाले भी हैं और दूसरी ओर चेहरे की बेपर्दगी पर बुरा-भला कहने वाले भी।

मुफ्ती अनस नाम के इस फेसबुक ग्रुप के 1 लाख सदस्य है और 1 लाख 22 हजार से ज्यादा लोग फॉलो करते हैं। यह मुफ्ती अनस या सना खान का ऑफिशियल ग्रुप है, ऐसी घोषणा तो नहीं है, लेकिन ज्यादातर अंतरंग तस्वीरें और वीडियो उन्हीं के हैं। ये पोस्ट करने वाले का अकाउंट काइट बॉय तालिब नाम से है। ताजा तस्वीर, जो चर्चा में है, वह कोई साफ फोटो भी नहीं है। अलबत्ता स्कार्फ में सना खान का चेहरा जरूर पहचाना जा सकता है।

सना खान के चेहरे को देखकर ही कई लोग इसे गैर इस्लामिक हरकत बताकर मजम्मत कर रहे हैं। मुहम्मद इजहार मुन्ना ने लिखा है, ‘मुफ्ती साहब अपनी बेगम से इतने खुश हैं जैसे कि इनको जन्नत की हूर मिल गई और इस खुशी मे इस्लाम में जो मुफ्ती साहब पर फर्ज़ है, जैसे दर्स तबलीग फतवा देना सब भूल गए। बेशक मुफ्ती साहेब को शर्म नहीं लगती है लेकिन मुफ्ती साहब की बीवी को देखकर हम लोगों को शर्म लग जाती है।’

यासीन ख्वाजा ने लिखा है, ‘बेशक, पर्दा ही तेरा नूर है’।

नईम हक ने लिखा है, ‘मुफ्ती साहब आपसे एक गुजारिश है, अगर आपको या आपकी पत्नी को बुरा लगे तो माफ करना, वो ये कि अपनी या अपने दोस्त हयात की तस्वीर शेयर न करें। मुफ्ती साहब जरा धीरे-धीरे औरत को समझाओ। अल्लाह हम सब को छुपाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन’।

कमीमरान कहान ने लिखा है, ‘इसको कोई शर्म नहीं आती, एक हजार बार समझा चुके, वैसे तो मुफ्ती बाकी काम जाहिल वाले’।

मुहम्मद इस्लाम ने लिखा है, ‘पर्दा बहुत जरूरी है आपके लिए’। इस पर मुहम्मद शारिक ने जवाब दिया है, ‘मुहम्मद इस्लाम भाई आप क्यों फतवा दे रहे हो’।

इसी तरह के तमाम कमेंट और भी हैं, जो पर्दा करने की नसीहत दे रहे हैं। ठीक ऐसे ही कभी क्रिकेटर शमी खान ने जब पत्नी के साथ तस्वीरें पोस्ट की थीं तो लोगों ने बहुत ऐतराज जाहिर कर बुरा-भला कहा था।

पर्दा और घूंघट के सवाल पर आधुनिक लोग इसे दकियानूसी प्रथा कहते हैं, जो औरतों पर थोपी गई है। इन प्रथाओं को फेमनिस्ट औरतों की गुलामी का प्रतीक बताते हैं। औरतों पर इस तरह कठोर प्रतिबंधों को तालिबानी व्यवस्था करार दिया जाता है।

ये बहस का विषय हो सकता है और लोगों को अपने विचार शालीनतापूर्वक जाहिर करने का हक है। इस मामले में इस्लामिक नजरिया क्या है, यह भी जान लिया जाए।

 

पर्दा और बदनज़री पर इस्लामिक नज़रिया

‘इंडियन मुस्लिम प्रो’ पर इस मामले पर तफ्सील से लिखा गया है।

पर्दा और बदनज़री​ पर लिखा है, ”आज जहां मुआशरे में हज़ार बुराइयां फैली हुई हैं उनमें एक बहुत बड़ी बुराई ये भी है की मर्द का एक नामहरम औरत को देखना और एक औरत का नामहरम मर्द के लिए सजना संवरना और बेपर्दगी से घूमना, लोग इसे फैशन और मॉडर्न समाज का हिस्सा मानते हैं। मगर अल्लाह के यहां ये कसूर छोटा नहीं बल्कि बहुत बड़ा है। अल्लाह तआला क़ुरआन में फरमाता है कि ​मुसलमान मर्दों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें। मुसलमान औरतों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने दुपट्टे अपने गिरेहबानों पर डाले रहें और अपना श्रंगार ज़ाहिर ना करें”।

पारा 18, सूरह नूर, आयत 30-31 में पर्दे का पूरा बयान नाज़िल फरमाया है कि किससे पर्दा करना है और किससे नहीं। ये भी कि पर्दा सिर्फ औरत ही नहीं करेगी बल्कि मर्द का भी किसी नामहरम को देखना जायज़ नहीं है। वो औरतें जो बेहिजाब सड़कों, बाज़ारों, मेलों-ठेलों, मज़ारों या कहीं भी घूमती फिरती हैं वो गुनहगार हैं। उन पर तौबा वाजिब है और अगर इंकार करे जब, तो काफिर है।

पारा 22,सूरह अल अहजाब, आयत 59 में फरमाया गया है कि ​ऐ महबूब अपनी बीवियों और अपनी साहबज़ादियों और मुसलमान औरतों से फरमा दो कि वो अपनी चादरों का एक टुकड़ा अपने मुंह पर डाले रहें, ये उनके लिए बेहतर है कि ना वो पहचानी जाएं और ना सताई जाएं। अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है।

पारा 22, सूरह अल अहजाब, आयत 33 में इसका शाने नुज़ूल ये है कि कुछ मुनाफिक़ मुसलमान औरतों को रास्ते में छेड़ा करते थे, जिस पर ये आयत उतरी कि अल्लाह ने साफ फरमा दिया कि अपनी पहचान छिपाकर चलेंगी तो न पहचान होगी और न कोई उन्हें छेड़ेगा, फिर इरशाद फरमाता है कि ​और अपने घरों में ठहरी रहो और बेपर्दा न रहो।

हिदाया, जिल्द 4, सफा 424 में हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं, ‘​अजनबी औरत को शहवत से देखने वालों की आंख क़यामत के दिन आग से भर दी जाएगी’।

मिश्कात, सफा 270 में कहा गया है, ‘​जो गैर औरत और मर्द एक दूसरे को देखें तो दोनों पर अल्लाह की लानत है’​।

अबु दाऊद, जिल्द 2, सफा 146 में ​मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम, बाज़ दफा गैर औरत पर अचानक नज़र पड़ जाती है तो? आप फरमाते हैं, ‘अपनी नज़रें फेर लिया करो, इस पहली नज़र पर गिरफ्त नहीं लेकिन दूसरी नज़र पर है’​।

अबु दाऊद, जिल्द 2, सफा 147 में कहा गया है, पहली नज़र का मतलब कोई यह ना समझे कि अब एक ही नज़र में जी भरके देख लेंगे, बल्कि अगर चेहरे पर ज़रा भी नज़र ठहरी तो भी कसूरवार ठहरेगा। गैर महरम को देखना आंखों का ज़िना है उसकी तरफ जाना पैरों का ज़िना है। कानों से उसकी बात सुनना कानों का ज़िना है, ज़बान से उससे बात करना ज़बान का ज़िना है, हाथों से उसको छूना हाथों का ज़िना है और दिल में उससे नाजायज़ मिलाप की बात सोचना ये दिल का ज़िना है​।

‘​औरत छिपाने की चीज़ है जब वो बाहर निकलती है तो शैतान उसे झांक कर देखता है’​, यह तिर्मिज़ी, जिल्द 1, सफा 140 में कहा गया है।

कुल जमा इस्लामी शरीयत है कि शैतान इंसान के जिस्म में खून की तरह बहता है और मौका ढूंढता रहता है कि कब वो इंसान को अपने जाल में फांस ले। इसलिए एहतियात में ही भलाई है। भाभी का देवर से, बहनोई का अपनी साली से, चचाज़ाद मामूज़ाद खालाज़ाद फूफीज़ाद भाईयों का उनकी चचेरी ममेरी खलेरी फुफेरी बहनों से, ससुर अगर जवान है तो बहू को पर्दे का हुक्म है। इसी तरह और अगर सास जवान है तो दामाद से पर्दा है।


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