बीते एक महीने से भी कम वक्त में अफगानिस्तान में दो महिला जज, तीन महिला पत्रकार और एक महिला डॉक्टर की गोली मारकर या बम धमाका करके हत्या कर दी गई। किसने किया यह सब? अफगानिस्तान और वहां अमेरिका के अफसर इसके पीछे तालिबान गुट का हाथ बता रहे हैं, जबकि तालिबान इस इल्जाम को बेबुनियाद बताने की कोशिश कर रहा है।
क्या तालिबान इस आरोप से बच सकता है? अगर वह शांतिप्रिय तरीके से अपना काम कर रहा है तो उससे शांतिवार्ता क्यों हुई और अभी भी ये सिलसिला जारी है। हाल में हुई महिलाओं की हत्याओं के बाद अब अफगानिस्तान की खुफिया एजेंसियां भी बातचीत में इस खास मुद्दे को शामिल करने को जरूरी समझ रही हैं। लेकिन इसे पहले मुद्दा क्यों नहीं बनाया गया, यह सवाल है?
सवाल इसलिए कि महिला सुरक्षा के मुद्दे के साथ तालिबान से शांतिवार्ता की औपचारिक अपील तो अफगानिस्तान वुमन नेटवर्क ने मार्च 2019 के पहले सप्ताह में ही की थी। ऐसा इसलिए कि उन्होंने सबसे ज्यादा वक्त तक अंधेरे का सामना किया।
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तालिबानों के हाथ में जब 1996 में सत्ता आई तो उनकी जिंदगी कैद हो गई। घर तक से नहीं निकल सकती थीं, नौकरी और पढ़ाई तो बहुत दूर की बात थी। पांच साल बाद 2001 में जब तालिबानों को खदेड़ दिया गया तो महिलाओं की बेड़ियां एक हद तक टूटीं और ताजा हवा में सांसें लेना नसीब में आया।
देखते ही देखते हर क्षेत्र में महिलाओं की सशक्त मौजूदगी दिखाई देने लगी। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि मौजूदा समय में अफगानिस्तान में भी तकरीबन 200 महिला जज सेवाएं दे रही हैं।
मीडिया, चिकित्सा और शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने तरक्की की छलांग लगा दी। महिलाओं का यह साहस कट्टरपंथी तालिबानों की आंखों में बहुत चुभा और उन्होंने दहशत फैलाने को उन पर हमले शुरू कर दिए। हमले दूसरे प्रमुख लोगों पर भी किए, लेकिन महिलाओं को आसान शिकार मानकर आखेट करने जैसा वहशीपन की इंतेहा कर दी।
दो दशक से हारे हुए तालिबान उन्हें किसी तरह कैद करने को व्याकुल हैं। शांतिवार्ताओं के बाद अमेरिका अपने सैनिकों की वापसी की तैयारी में है, जो उनके लिए मुफीद हो सकता है।
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एडब्ल्यूएन की निदेशक मैरी अकरमी कहती हैं, ”जब तक शांतिवार्ता में महिला सुरक्षा मुद्दा नहीं है, इसका काेई अर्थ नहीं है। अब तक की तथाकथित शांति वार्ताओं में इस लोकतांत्रिक सोच से बातचीत दिखाई नहीं दी, न ही महिलाओं का प्रतिनित्व हुआ।”
वे कहती हैं, ”महिलाओं के वजूद का बहुत कुछ दांव पर है। तालिबान शासन के उखड़ने के बाद का माहाैल महिलाओं के लिए किसी क्रांति सरीखा है। इससे पहले महिलाओं को घर से बाहर आने की भी इजाजत नहीं थी। आज हम पूरे देश में बिना बुर्का और बिना परिवार के पुरुष सदस्य को लिए आजादी से आ जा सकते हैं। तालबानी सत्ता के समय लड़कियों के स्कूल बंद दिए थे, जबकि आज ढाई लाख से ज्यादा लड़कियां निजी स्कूलों और विश्वविद्यालयों में पढ़ रही हैं, जबकि लाखों सार्वजनिक स्कूलों में जाती हैं।”
तालिबान शासन हटने के बाद के माहाैल पर मैरी का कहना है, ”उनकी न्याय तक पहुंच बढ़ी है, देश के कई हिस्सों में महिलाओं के लिए सुरक्षित घर हैं। राजनीतिक भागीदारी के लिहाज से महिला राजदूतों, मंत्रियों और संसद के सदस्यों में उनकी संख्या बढ़ रही है। अफगान महिला नेटवर्क में ही 150 से ज्यादा सदस्य संगठन और 3500 कार्यकर्ता हैं। हम अतीत की कड़वी यादों को फिर से हकीकत नहीं बनने देंगे। शांति कभी भी न्याय के बिना नहीं आ सकती।”
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”जिन इलाकों में सरकार और तालिबान अंधाधुंध हिंसा का हिस्सा हैं, वहां सबसे ज्यादा मुसीबत में महिलाएं और बच्चियां हैं। महिलाओं के अधिकारों गारंटी बगैर कोई शांति समझौता सच्चा नहीं हो सकता है। उनके हुनर, रोजगार, शिक्षा और सुरक्षा की कीमत पर शांति पूरे देश के लिए विनाशकारी होगी”, वह कहती हैं।
उन्होंने कहा, हम अब 90 के दशक की पीढ़ी नहीं हैं। अफगान महिलाएं बदली हैं और उन्होंने देश को बदला है। हम पिछड़े दिमाग वालों के हाथ में देश हरगिज नहीं जाने देंगे। हम दुनियाभर की सभी महिलाओं से हमारा समर्थन करने का आह्वान कर रहे हैं। दुनियाभर में महिलाओं की एकता और एकजुटता ऐसे हालातों को निश्चित ही तालिबान जैसी बर्बर सत्ताओं को जमींदोज कर देगी।