सज्जादानशीन ने यह क्यों कहा, कर्बला ज़ुल्म के आगे सिर झुकाने नहीं, देती रहेगी कटाने की सीख

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दरगाह आला हजरत Bareilly

द लीडर. दरगाह आला हज़रत के सज्जादानशीन मुफ्ती मुहम्मद अहसन रज़ा क़ादरी ने कहा कि ज़ुल्म न इस्लाम का हिस्सा है और न कभी रहा है. शहादत-ए-इमाम हुसैन इस बात की गवाह है. जब-जब कर्बला का ज़िक्र होगा मुसलमानों को ज़ालिम के आगे सिर झुकाने नहीं, कटाने की सीख मिलती रहेगी. सज्जादानशीन यौम-ए-आशूरा यानी दसवें मुहर्रम के मौके पर नवासा-ए-रसूल को ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश कर रहे थे.


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दरगाह के मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि मुफ्ती अहसन मियां ने कर्बला के 72 शहीदों को खिराजे अक़ीदत पेश करते हुए कहा कि सब्र की मेराज का नाम इमाम हुसैन है। हज़रत सय्यदना इमाम हुसैन अपने 72 जांनिसार साथियों समेत ज़ालिमों के हाथों शहीद होकर दुनिया को यह पैगाम दे गए कि सही कदम उठाने वाला शहीद होकर हमेशा ज़िंदा रहेगा और यज़ीदियत हर दौर में हुसैनियत से हारती रहेगी।


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इमाम हुसैन का मक़सद दुनिया को यह पैग़ाम देना था कि इंसान सच्चाई की राह पर सब्र का दामन थामे रखे तो उसे कामयाब होने से कोई नही रोक सकता। मुसलमान जब तक अहले बैत का दामन थामे रहेगा कभी गुमराह नही होगा। आपकी कुर्बानी में हमे ये दर्स (शिक्षा) भी देती है कि जब भी परेशानी आए तो सब्र से काम ले।


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मुफ्ती सलीम नूरी ने कहा कि शहीद-ए-आज़म इमाम हुसैन की शहादत हमें अपने मुल्क से मोहब्बत का संदेश भी देती है। इमाम हुसैन अपने नाना पैगम्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की पाक ज़मीन पर जंग नही चाहते थे, इसलिए मजबूर होकर अपना वतन छोड़ा। जाते वक्त इमाम हुसैन को वतन छोड़ने का बहुत दुःख था।  आतंकवाद उस दौर में भी था और अब भी है। हज़रत इमाम हुसैन ने यज़ीद नामी आतंकवादी के हाथों बैत मंज़ूर नहीं करके अपना पूरा घर लूटा दिया लेकिन मज़हब-ए-इस्लाम पर आंच नहीं आने दी। खुद शहीद होकर इस्लाम को ज़िंदा कर गए।

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