Taliban : मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की मीडिया को हिदायत, बेवजह न घसीटें नाम-बोर्ड ने नहीं की कोई टिप्पणी

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Muslim Personal Law Board

द लीडर : अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) के सत्ता नियंत्रण के मुद्​दे पर बयानबाजी से भारत (India) में विवाद बढ़ता जा रहा है. उत्तर प्रदेश के संभल से समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क पर राजद्रोह का केस दर्ज हो चुका है. और अब ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड निशाने पर है. बोर्ड ने प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी के बयान से किनारा कर लिया है. और मीडिया को पत्रकारिता के मूल्यों की याद दिलाते हुए कहा कि किसी की निजी राय को बोर्ड का स्टैंड ठहराना गलत है. (Muslim Personal Law Board )

इन दोनों मुद्​दों पर यूपी में भाजपा ने आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार और भाजपा के प्रवक्ता शलभमणि त्रिपाठी ने सज्जाद नोमानी का एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा-पहले तो सिर्फ शक भर था, अब पूरा यकीन हो गया.

वीडियो में मौलाना सज्जाद नोमानी अफगानिस्तान के सत्ता परिवर्तन को लेकर अपनी राय रख रहे हैं. और मुहब्बत का सलाम भेजते देखे जा रहे हैं. इसको लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की सफाई आई है. बोर्ड ने कहा कि, तालिबान और अफगानिस्तान की राजनीतिक स्थिति पर बोर्ड ने कोई टिप्पणी नहीं की है.


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कुछ मीडिया चैनल बोर्ड के कुछ सदस्यों की निजी राय को बोर्ड का स्टैंड मानकर गलत बात पर बोर्ड को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. यह बात पत्रकारिता के मूल्यों के विपरीत है. मीडिया चैनलों को इस तरह के कृत्यों से बचते हुए बोर्ड से तालिबान की खबरों को नहीं जोड़ना चाहिए.

काबिलेगौर है कि तालिबान को लेकर अभी तक भारत सरकार ने अपना रुख साफ नहीं किया है. लेकिन भाजपा नेता तालिबान को आतंकी संगठन के रूप में ही देख रहे हैं. यूपी में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह का भी एक बयान सामने आया है. देव ने कहा-यूपी में जो लोग आतंकवादियों के शुभचिंतक बन रहे हैं. उन्हें याद रखना चाहिए कि उनके प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री कौन हैं?

यूपी भाजपा के रुख से काफी हद तक स्पष्ट है कि अफगानिस्तान के बदले राजनीतिक हालात पर भारत सरकार हाल-फिलहाल में शायद ही अपना रुख साफ करे. वो इसलिए क्योंकि अगले साल यूपी में विधानसभा चुनाव है. और भारतीय मुसलमानों के एक वर्ग के बीच से जिस तरह से तालिबान को लेकर प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं. वो एक बड़ा चुनावी मुद्​दा बनती नजर आ रही हैं.


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जैसा कि यूपी में देखने को भी मिल रहा है. हालांकि मुस्लिम समाज का एक और वर्ग है, जो तालिबान के अफगानिस्तान पर 1996-2001 तक के शासनकाल को देखकर उसके विरोध में हैं. खासतौर से मानवाधिकार और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर.

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