जब मुझे जिंदगी और कोरोना दोनोंं चुनना पड़ा: पत्रकार नवीन कुमार के इलाज में लगे एक डॉक्टर की जुबानी

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नमस्कार आदाब सतश्री अकाल जय भीम जोहार, मेरा नाम है नवीन कुमारआर्टिकल-19 इंडिया नाम के यूट्यूब चैनल पर अचानक यह कड़कती आवाज अचानक आना बंद हुई तो जन सरोकार से जुड़ी पत्रकारिता करने वाले और दर्शक माहौल को देखते हुए अनहोनी की आशंका से घिर गए। खबर आई भी ऐसी ही।

वरिष्ठ पत्रकार नवीन कुमार कोविड की चपेट में आकर मौत के जबड़े में फंसे थे। इस मौके पर उनके एक दोस्त, जो डॉक्टर भी हैं, उन्होंने उनकी जिस संवदेनशीलता से इलाज और तीमारदारी की, जिससे उनकी जान बची, वह सिर्फ निजी अनुभव भर नहीं है, बल्कि गंभीर मरीजों के सामने आने वाली परेशानी की तस्वीर है। खासतौर पर उनके लिए, जिनके पास कोई पहुंच भी नहीं है। सही वक्त पर इलाज और बंदोबस्त न होने पर कितने लोगों की जिंदगी की डोर टूट गई, यह सभी जानते हैं।

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journalist naveen kumar under treatment at hostel room

नवीन कुमार के चिकित्सक मित्र का बताया वाकया

पत्रकार नवीन कुमार मेरे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सीनियर भी हैं और दोस्त तो हैं ही, बंगाल से आने के बाद 19 तारीख को इन्होंने कोरना का टेस्ट कराया था वह संयोग से नेगेटिव आया था लेकिन उनकी तबीयत इतनी ज्यादा खराब थी मुझे लग रहा था कुछ ना कुछ दिक्कत है!

27 अप्रैल को कॉल आता है कि मेरा आक्सीजन तेजी से गिर रहा है “बचा सको तो बचा लो”…

मैंने उनके कई दोस्तों को कॉल किया, उनके साथ काम करने वाली शशि जी उनको लेकर लगभग 8 बजे लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में आईं, तब तक बहुत मन बेचैन था। मैं लगातार कालेज परिसर में घूम रहा था मैंने सीएमओ से बहुत सारी रिक्वेस्ट की थी एक बेड दे दें, लेकिन कोई भी बेड खाली नहीं था, इसलिए उन्होंने कहा हम देख तो लेंगे लेकिन बेड नहीं है हमारे पास। ऑक्सीजन का लेवल एकदम गिरता जा रहा था और साथ ही सीने में जकड़न बढ़ती जा रहीं थी।

एक इमरजेंसी में थोड़ा बीमार व्यक्ति था जो कि टॉयलेट जा रहा था, मैंने उससे कहा कि 20-25 मिनट के लिए अपनी आक्सीजन दे दो, जब तक तुम वाशरूम जा रहे हो, लेकिन उसने मना कर दिया। उसे भी डर रहा होगा कहीं ऑक्सीजन ना मिले, क्योंकि बाहर बहुत सारे मरीज आ रहे थे। कई अन्य अस्पतालों में भी हम लोग बात किए कि बेड मिल जाए और कहीं संभावना नहीं दिखी। अब मेरे पास दो ही विकल्प थे जिंदगी और कोरोना, दोनों को चुनना या दूसरा क्वीट कर देना।

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Computer image of a coronavirus

मैंने कोरोना के साथ जिंदगी को चुना और नवीन सर को अपने रूम पर ले गया, लेकिन हमारे पास आक्सीजन उपलब्ध नहीं थी। दवाइयां तो मैंने सभी ले लीं थी और लगा भी दिया, पर ऑक्सीजन की कमी के कारण मन बहुत बेचैन सा हो रहा था कई जगह हम लोग कॉल किए हैं, अंत में लगभग रात को 11 बजे श्रीनिवास ने ऑक्सीजन भिजवाई, उसके कुछ देर बाद ही आम आदमी पार्टी के दुर्गेश पाठक ने भी ऑक्सीजन भिजवा दिया।

ऑक्सीजन देने के बाद कुछ स्टेबिलिटी आई और 94 -96 पर लगभग ऑक्सीजन मेंटेन हो गया। लेकिन सुबह होते होते लगभग पहला सिलेंडर खत्म हो गया था और दूसरा वाला शुरू कर दिया था। डर था रात तक खत्म हो जाएगा।

शाम को एचआरसीटी और ब्लड जांच कराने के लिए हम लोग बाहर निकले। लाल पैथ यहां तक कि सरल डायग्नोस्टिक सेंटर, कहीं भी डी डाइमर सीआरपी इत्यादि के लिए रिएजेंट नहीं थे और उनके ऑक्सीजन का स्तर लगातार गिरता जा रहा था।

अंत में सरल डायग्नोस्टिक नोएडा में एचआरसीटी तथा सीबीसी एलएफटी केएफटी के लिए समय मिला, नोएडा जाकर सरल डायग्नोस्टिक में जैसे ही जांच कराके रात को हम लोग वापस आते हैं डायग्नोस्टिक सेंटर से मैसेज आता आता है अपना ईमेल आईडी भेजिए। नवीन सर कहते हैं, लिखकर के भेज दो ekthanavin@gmail.com। मैं तो पूरा का पूरा डर गया, लेकिन असल चिंता तो आज रात के आक्सीजन की थी, फिर से एक बार फरीश्ते श्रीनिवास को कॉल की गई और उन्होंने दोबारा 11 बजे के आसपास ऑक्सीजन सिलेंडर भेज दिया।

दूसरी रात भी किसी तरह गुजर गई और हालात काफी अच्छे लग रहे थे लेकिन अगली सुबह इतनी तेज खांसी आना शुरू हो गई और ऑक्सीजन फ्लैक्चुएट करने लगा। हम लोग डर गए। अभी भी लगातार अस्पतालों की खोज में लगे हुए थे, कहीं पर बेड नहीं मिल पा रहा था और खांसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। ऑक्सीजन जैसे ही ऊपर नीचे होता था, उसी तरह से मेरी धड़कनें भी ऊपर नीचे हो रही थीं। हमेशा डर लगा रहता था, पता नहीं क्या हो जाए।

शाम होते-होते एचआरसीटी की भी रिपोर्ट आ गई और साथ में ब्लड की भी रिपोर्ट। स्कोरिंग जरूरत से ज्यादा थी, लेकिन उनकी स्थिति बिगड़ती जा रही थी। हमारे पास एक ही रूम में एक ही बेड है तो दोनों को एक ही साथ सोना पड़ता था, क्योंकि मुझे जिंदगी के साथ कोरोना चुनने में कोई दिक्कत नहीं थी।

हालांकि मैं कुछ महीने पहले ही पॉजिटिव हो चुका था। उनका टीएलसी अट्ठारह हजार से ज्यादा था और तापमान भी ज्यादा था। इसके साथ आक्सीजन का गिरता हुआ स्तर बता रहा था कि यह सीवियर एक्यूट रेस्पिरेट्री इन्फेक्शन में जा चुके हैं।

तब तक उनका वीडियो वायरल हो चुका था और मीडिया में तमाम तरह की खबरें आने लगी थीं। शाम तक उनके कई दोस्तों की मदद से फॉर्टिस ओखला व लोकनायक अस्पताल का जनरल बेड का आश्वासन दिया गया। अब दोनों को चुनना था फोर्टिस जाना है या लोकनायक, क्योंकि मैं सरकारी मेडिकल कॉलेज का छात्र रहा हूं तो मुझे लोकनायक में इलाज कराना बेहतर लगा। इसके 1 दिन पहले ही मैक्स में ऑक्सीजन के कमी के वजह से कई लोगों की डेथ हुई थी, सर गंगाराम का भी यही हाल था तो मैं आक्सीजन की कमी वाला अस्पताल का रिस्क बिल्कुल भी नहीं ले सकता था।

मैं लोकनायक अस्पताल पहुंचा और जैसे ही हाई फलोरेट मास्क लगा उनकी आक्सीजन बढ़ गई और उन पर लोगों ने ध्यान देना कम कर दिया। किसी तरह से मैंने इनका आरबीएस चेक कराया और पता चला आरबीएस 376 है। फिर भी मुझे एक इंसुलिन लगवाने में 3 घंटे का समय लग गया लोकनायक अस्पताल में, क्योंकि वहां पर डॉक्टर इतने थके हुए थे। उनको देखना मुनासिब नहीं समझते थे, सबको लग रहा था कि यह एकदम नॉर्मल हैं।

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अंत में मुझे न चाहते हुए भी लड़ना पड़ा, उसके बाद उन्हें इंसुलिन का इंजेक्शन दिया गया और सामान्य वार्ड में रेफर कर दिया गया। मुझे बहुत सुकून मिला, अब ऐसी कंडीशन नहीं आएगी लेकिन जो डर था वही हो रहा था। सुबह मेरी उनसे बात हुई उन्होंने कहा कि सोनू मैं अब यहां से ठीक हो करके निकलूंगा कोई दिक्कत नहीं है। पर उनका केस सेप्सिस की तरफ बढ़ रहा था, जिसकी वजह से मैं डर रहा था इनको सेप्टीसीमिया कहीं हो न जाए।

मैंने कई डॉक्टरों से बात करने की कोशिश की, उनकी स्थिति के बारे में बताया लेकिन वहां भी जनरल वार्ड में केवल और केवल कोरोना का इलाज चल रहा था क्योंकि लोकनायक अपने आप में बड़ा अस्पताल है, वह अपने तरीके से इलाज कर रहा था बाकी अन्य पैरामीटर नहीं देखे जा रहे थे। फिर उसके अगले दिन डॉक्टर वीपी वाष्र्णेय सर का फोन आया मेरे पास और उन्होंने कहा उसे तुम जल्द से जल्द क्रिटिकल केयर यूनिट में डलवाओ और रेमडेसीविर की व्यवस्था करो अन्यथा कुछ नहीं होने वाला है। उनकी मदद से मैं और शशि जी वार्ड में पीपीई किट पहनकर पहुंचे।

जब उनकी हालत को देखा तो आंख से आंसू आ गए। ऑक्सीजन लेवल 68 के आसपास आ चुका था और केवल डॉक्टर सुबह जाते थे और शाम को जाते थे। जब उन्होंने बताया कि सीने में इतना तेज दर्द होता है कि लगता है जान निकल जाएगी तो मेरी तो हालत खराब हो गई।

शशि जी तो बुरी तरह टूट चुकी थीं। फोन पर रोने लगीं। उनके कई मित्रों को फोन किया और प्रोफेसर वाष्र्णेय सर को भी कॉल किया। उन्होंने कहा मैं आईसीयू में भर्ती करा दूंगा लेकिन तुम रेमडेसीविर की व्यवस्था करो, जितना जल्द से जल्द हो सके। पत्रकार संदीप चौधरी से बात की गई। उन्होंने कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला को कहा और सुरजेवाला ने 2 रेमडेसीविर की व्यवस्था द्वारिका में कर दिया।

मैं उस रात घूमते घूमते द्वारका पहुंचा और एमआरपी रेट पर दो रेमडेसीविर खरीद करके लाया, तब तक तक रात के 11:30 बज चुके थे और नवीन सर को सीसीयू में शिफ्ट किया जा रहा था। मैं किसी तरह दौड़ते दौड़ते पहुंचा और रेमडेसवीर देते हुए कहा, सर इसे जैसे ही पहुंचे लगवा लीजिएगा, यह रेमडेसीविर है। लेकिन अंदर जाने के बाद भी सीसीयू का तरीका अलग है इलाज करने का। उन्होंने बहुत देर तक नहीं लगाया और अपने तरीके से जांच करना शुरू कर दिए।

क्या करना है? क्या नहीं करना है? तब तक उनकी टीएलसी 18000 से घटकर के 15000 तक आ चुकी थी, लेकिन सीटी स्कोर 23 हो चुका था। अस्पताल में मेरा ही फोन नंबर लिखा था तो जब भी अस्पताल से फोन मेरे पास आता था डर लगता कि कहीं कोई बुरी खबर सुनने को ना मिल जाए।

मीडिया में पता नहीं क्या-क्या खबरें पहुंचा दी गई थीं जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था। अगले दिन से जबरन रेमडेसीविर लगना शुरू हुई तो उनकी हालात में बहुत तेजी से सुधार होने लगा और बाद में उनको प्लाज्मा भी दिया गया। फिर जब जब आरटीपीसीआर टैस्ट हुआ तो रिपोर्ट पॉजिटिव भी आई। अमूमन ऐसी गलतियां हो जाती हैं।

हर रात डर की थी। जब तक सर का मैसेज नहीं आता, रात में सो नहीं पाता था, नींद नहीं आती थी लेकिन कुछ ना कुछ अच्छी खबर आने लगी थी। बाकी कभी भी एलएफटी केएफटी और अन्य जांच आईएनआर में कोई दिक्कत नहीं आई, केवल और केवल लंग प्रॉब्लम बढ़ती चली जा रही थी लेकिन रेमदेसीविर और प्लाज्मा ने इतना अच्छा कार्य किया कि आज नवीन सर बेहद स्वस्थ हैं और आराम से बात भी कर रहे हैं और उनके अंदर कॉन्फिडेंस आ गया कि, हां मैं बच सकता हूं अन्यथा उन्होंने खुद भी हिम्मत छोड़ दी थी।

“रोहित सरदाना” की मृत्यु के दिन उन्होंने कहा कि कहीं हार्टअटैक से न मर जाऊं। तनाव बहुत ज्यादा लेते थे। जैसे ही उन्होंने सीटी स्कोर को देखा 23 है, मुझे डांटते हुए कहे, सोनू यह सब बता क्यों नहीं रहे हो मुझे। मैंने कहा है कि बता दूंगा तो आपको बहुत बड़ी दिक्कत हो जाएगी लेकिन अब आप सही हैं तो, देख सकते हैं।

पाश की कविताएं हमेशा नवीन कुमार पढ़ते रहते हैं, उनके लिए छोटा अंश-

हमारे लहू को आदत है

मौसम नहीं देखता, महफ़िल नहीं देखता

ज़िन्दगी के जश्न शुरू कर लेता है

सूली के गीत छेड़ लेता है

स्रोत: सोशल डॉक्टर हब डॉट कॉम से साभार

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