द लीडर : तीन नए कृषि कानूनों पर सुप्रीमकोर्ट द्वारा गठित कमेटी के सदस्य रहे भूपेंद्र सिंह मान ने कहा कि आंदोलन और किसानों के हितों को देखते हुए मैं समझता हूं कि उसमें (कमेटी) में जाने का कोई मतलब नहीं है. दूसरा, जब उन्होंने यानी किसानों ने कह दिया कि वो कमेटी के सामने नहीं जाएंगे तो फिर कमेटी का कोई तुक नहीं रह जाता. इसलिए मैंने कमेटी छोड़ दी है. शुक्रवार को समाचार एजेंसी एएनआइ से बातचीत में उन्होंने ये बातें कही हैं.
गत दिनों सुप्रीमकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करने के बाद चार सदस्यीय कमेटी गठित की थी. इस कमेटी को किसानों और सरकार से बातचीत करके हल निकालना था. हालांकि कमेटी गठित होने के साथ ही उसके वजूद और सदस्यों पर सवाल उठने लगे.
किसान नेताओं ने साफ कर दिया कि वो इसके समक्ष नहीं जाएंगे. इसलिए क्योंकि कमेटी के सभी सदस्य कृषि कानूनों के समर्थक हैं. भूपेंद्र मान भी उसी कमेटी का हिस्सा थे. इसके बाद मान ने गुरुवार को खुद को कमेटी से अलग कर लिया था. भूपेंद्र मान, भारतीय किसान संघ के नेता हैं.
किसान आंदोलन : अगले 13 दिन बेहद खास, संभलकर चलाना होगा आंदोलन
केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों को लेकर पिछले 51 दिन से आंदोलन जारी है. हजारों की संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हैं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक धीरे-धीरे ये आंदोलन दुनियां का सबसे बड़ा आंदोलन बनता जा रहा है.
वहीं, किसान और सरकार के बीच संवाद जारी है. शुक्रवार को 9वें दौर की वार्ता होनी है. किसान नेता दिल्ली स्थित विज्ञान भवन के लिए रवाना हो चुके हैं. हालांकि इस बातचीत में भी कोई हल निकलेगा. इसकी गुंजाइश कम ही है. वो यूं कि सरकार कानून वापसी के मूड में नहीं है और किसान भी पीछे हटने को तैयार नहीं.
किसान आंदोलन : सुप्रीमकोर्ट ने नए कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगाई
शुक्रवार की सुबह टीकरी बॉर्डर पर कड़ाके की ठंड में किसानों ने शर्ट उतारकर प्रदर्शन किया. टीकरी बॉर्डर पर अमूमन हर रोज सुबह को ऐसे प्रदर्शनों का नजारा दिखता है. किसान तीनों कानूनों को रद किए जाने की मांग पर अड़े हैं. लोहड़ी पर कृषि कानूनों की प्रतियां जलाई थीं. और 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर परेड निकालने का ऐलान कर रखा है. इसकी तैयारियां भी जोर-शोर से चल रही हैं.