किसान आंदोलन चरम पर है और सरकार से बातचीत का कोई नतीजा अभी तक नहीं निकला। सरकार और किसानों के बीच हठ से नतीजा क्या हो सकता है! इसको लेकर कयास और आशंकाएं देशभर में हैं।
गणतंत्र दिवस पर किसानों की समानांतर ट्रैक्टर परेड से टकराव के आसार चर्चा में हैं। कुल मिलाकर काउंट डाउन हो रहा है कि अब सिर्फ 15 दिन बचे हैं, कुछ भी हो सकता है।
ये भी पढ़ें – कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा सकते हैं : सुप्रीमकोर्ट
इस बीच सुप्रीम कोर्ट में किसान आंदोलन को लेकर सरकार के पक्ष पर मुख्य न्यायधीश के सवाल और हल निकालने का ठोस प्रस्ताव सामने आने से नए सवाल सबके सामने हैं। ये हल सभी के लिए मान्य होगा या नहीं, इस पर किसानों के नेतृत्व और सरकार की रजामंदी जरूरी है। हालांकि, ये दोनों ही पक्षों के लिए फौरी तौर पर संतोषजनक हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने समाधान बतौर संसद में पास किए गए तीनों कृषि कानूनों को होल्ड करने यानी उनको लागू करने पर रोक लगाने को कहा है। साथ ही इस मामले में एक कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया, जो दोनों पक्षों के साथ बातचीत करके समाधान निकाले।
ऐसा होने पर क्या हो सकता है? इसे किसानों की आंशिक जीत के तौर पर कहा जा सकता है, क्योंकि कानून अमल में नहीं लाए जाएंगे, जब तक कमेटी समाधान नहीं कर लेती।
ये भी पढ़ें – किसान आंदोलन पर सुप्रीमकोर्ट ने जताई चिंता, कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा

वहीं, ये सरकार के लिए भी राहत की मानी जा सकती है, क्योंकि कानून रद नहीं होंगे, फौरी तौर पर अमल नहीं होगा। इसके अलावा सरकार गणतंत्र दिवस पर दुनियाभर में किरकिरी कराने से बच जाएगी, दिल्ली की घेराबंदी टूट जाएगी।
हालांकि सवाल बरकरार है कि किसान आंदोलन के नेता और उनके समर्थक इस समाधान को स्वीकारेंगे या नहीं। इस मामले में टिप्पणियां आना भी शुरू हो गई हैं। आंदोलन के नेतृत्व में शामिल योगेंद्र यादव ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी इशारों में कहा है, ‘ उम्मीद की किरण है या रेशम का फंदा…’
ये भी पढ़ें – टीकरी बॉर्डर पर किसान आंदोलन की वो तस्वीरें, जिनमें छुपा है खास संदेश

सरकार के साथ आठ दौर की बातचीत में कोई हासिल न होने से किसानों को कमेटी के जरिए समाधान निकलने की उम्मीद पर ऐतबार नहीं है। इस मामले में किसान नेताओं का मंथन जारी है।
सुप्रीम कोर्ट का ये कहना, ‘विरोध के अधिकार को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता’, सरकार के लिए परेशानी पैदा कर सकती है।