कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा सकते हैं : सुप्रीमकोर्ट

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Supreme Court Agricultural Laws

द लीडर : सुप्रीमकोर्ट ने इस बात पर निराशा जताई है कि केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों (Farm Laws) के खिलाफ जारी आंदोलन (Protest) को ढंग से हैंडल नहीं किया है. सोमवार को चीफ जस्टिस एसए बोबड़े की अगुवाई वाली बेंच कृषि कानूनों से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. सरकार के रुख को देखते हुए कोर्ट ने कानून के अमल पर रोक लगाने का संकेत दिया है. दूसरा, कानून पर बने गतिरोध का हल तलाशने के लिए रिटायर चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में समिति गठित करने की बात कही है. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने सरकार पर कुछ कड़ी टिप्पणी भी की हैं. (Supreme Court Agricultural Laws)

‘एनबीटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की एपीएमसी से जुड़ी एक दलील पर चीफ जस्टिस ने कहा कि ये आपको समाधान की ओर नहीं ले जाएगा. आप क्या बातचीत कर रहे हैं और उसका क्या हल निकला है? हम बातचीत से हल चाहते हैं. यही हमारा मकसद है. पिछली बार भी बातचीत के लिए कहा था. आप क्यों नहीं कानून के अमल को होल्ड कर देते हैं. हम कमेटी बनाएंगे और वो तय करेगी किस तरह से सभी को सुना जाए. मगर आप ऐसा जता रहे हैं कि जैसे कानून हर हाल में लागू होगा.’

अदालत में इन वकीलों ने रखे पक्ष

केंद्र सरकार की ओर से इस मामले में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, किसान संगठन की ओर से एपी सिंह, दुष्यंत दवे पेश हुए. जबकि कानून का समर्थन करने वाले राज्य की ओर से हरीश साल्वे पेश हुए.

कड़ाके की ठंड में आंदोलन पर डटे किसान

पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश समेत कई अन्य राज्यों के हजारों किसान पिछले 47 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलनरत हैं. विरोध-प्रदर्शन के दौरान अब तक करीब 50 से अधिक मौतें हो चुकी हैं, जिसमें कुछ आत्महत्याएं भी शामिल हैं. सुप्रीमकोर्ट ने सुनवाई के दौरान इन आत्महत्याओं पर चिंता जताई है.


किसान आंदोलन पर सुप्रीमकोर्ट ने जताई चिंता, कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा


26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड की चेतावनी

सरकार और किसान नेताओं के बीच अब तक 8वें दौर की बातचीत हो चुकी है. जिसमें कोई हल नहीं निकला है. दूसरी ओर से किसानों ने ये चेतावनी दे रखी कि कानून रद न होने पर वे 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर परेड करेंगे. केंद्र सरकार की ओर इस मुद्​दे को भी एक दलील के रूप में अदालत के समक्ष रखा गया है. अदालत ने एक और महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. वो ये कि किसी नागरिक के विरोध-प्रदर्शन करने के अधिकार पर रोक नहीं लगा सकते.

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