हमें फांसी देने के बजाय गोली से उड़ाया जाए: फांसी से पहले भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव का पत्र

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23 मार्च 1931 कौन भूल सकता है। इस दिन शहीदे आजम भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी देकर हत्या कर दी थी। आज उनकी तस्वीरों को लगाकर झूठे प्रचार करने की कोशिशें चल रही हैं और उनके विचारों को सामने लाने की जगह लोगों को भ्रमित करने की कोशिश हो रही है। जबकि भगत सिंह ने जातिवाद, सांप्रदायिकता, आजादी और राजनीति के सवालों पर जो लेख लिखे वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। क्रांतिकारी विरासत के खजाने से शहीदों के उस पत्र को आज पढ़ा जाना चाहिए, जो उन्होंने शहादत से पहले लिखा- (Bhagat Singh Rajguru Sukhdev)

भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव का पत्र

प्रति, गवर्नर पंजाब, शिमला

महोदय,

उचित सम्मान के साथ हम नीचे लिखी बातें आपकी सेवा में रख रहे हैं –

भारत की ब्रिटिश सरकार के सर्वोच्च अधिकारी वाइसराय ने एक विशेष अध्यादेश जारी करके लाहौर षड्यंत्र अभियोग की सुनवाई के लिए एक विशेष न्यायधिकरण (ट्रिब्यूनल) स्थापित किया था, जिसने 7 अक्तूबर, 1930 को हमें फांसी का दंड सुनाया। हमारे विरुद्ध सबसे बड़ा आरोप यह लगाया गया है कि हमने सम्राट जार्ज पंचम के विरुद्ध युद्ध किया है।

न्यायालय के इस निर्णय से दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं-

पहली यह कि अंग्रेज जाति और भारतीय जनता के मध्य एक युद्ध चल रहा है। दूसरी यह है कि हमने निश्चित रूप में इस युद्ध में भाग लिया है। अत: हम युद्धबंदी हैं। (Bhagat Singh Rajguru Sukhdev)

यद्यपि इनकी व्याख्या में बहुत सीमा तक अतिशयोक्ति से काम लिया गया हैं, तथापि हम यह कहे बिना नहीं रह सकते कि ऐसा करके हमें सम्मानित किया गया है। पहली बात के संबंध में हम तनिक विस्तार से प्रकाश डालना चाहते हैं। हम नहीं समझते कि प्रत्यक्ष रूप में ऐसी कोई लड़ाई छिड़ी हुई है। हम नहीं जानते कि युद्ध छिड़ने से न्यायालय का आशय क्या है? परंतु हम इस व्याख्या को स्वीकार करते हैं और साथ ही इसे इसके ठीक संदर्भ में समझाना चाहते हैं ।

हम यह कहना चाहते हैं कि युद्ध छिड़ा हुआ है और यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी जब तक कि शक्तिशाली व्यक्तियों ने भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार कर रखा है- चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज पूंजीपति और अंग्रेज या सर्वथा भारतीय ही हों, उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट जारी कर रखी है। चाहे शुद्ध भारतीय पूंजीपतियों के द्वारा ही निर्धनों का खून चूसा जा रहा हो तो भी इस स्थिति में कोई अंतर नही पड़ता।

यदि आपकी सरकार कुछ नेताओं या भारतीय समाज के मुखियों पर प्रभाव जमाने में सफल हो जाए, कुछ सुविधाएं मिल जाएं, अथवा समझौते हो जाएं, इससे भी स्थिति नहीं बदल सकती, तथा जनता पर इसका प्रभाव बहुत कम पड़ता है। हमें इस बात की भी चिंता नहीं कि युवकों को एक बार फिर धोखा दिया गया है और इस बात का भी भय नहीं है कि हमारे राजनीतिक नेता पथ-भ्रष्ट हो गए हैं और वे समझौते की बातचीत में इन निरपराध, बेघर और निराश्रित बलिदानियों को भूल गए हैं, जिन्हें दुर्भाग्य से क्रांतिकारी पार्टी का सदस्य समझा जाता है। (Bhagat Singh Rajguru Sukhdev)

हमारे राजनीतिक नेता उन्हें अपना शत्रु मानते हैं, क्योंकि उनके विचार में वे हिंसा में विश्वास रखते हैं, हमारी वीरांगनाओं ने अपना सब कुछ बलिदान कर दिया है। उन्होंने अपने पतियों को बलिवेदी पर भेंट किया, भाई भेंट किए, और जो कुछ भी उनके पास था सब न्यौछावर कर दिया। उन्होंने अपने आप को भी न्यौछावर कर दिया परंतु आपकी सरकार उन्हें विद्रोही समझती है। आपके एजेंट भले ही झूठी कहानियां बनाकर उन्हें बदनाम कर दें और पार्टी की प्रसिद्धि को हानि पहुंचाने का प्रयास करें, परंतु यह युद्ध चलता रहेगा।

हो सकता है कि यह लड़ाई भिन्न-भिन्न दशाओं में भिन्न-भिन्न स्वरूप ग्रहण करे। किसी समय यह लड़ाई प्रकट रूप ले ले, कभी गुप्त दशा में चलती रहे, कभी भयानक रूप धारण कर ले, कभी किसान के स्तर पर युद्ध जारी रहे और कभी यह घटना इतनी भयानक हो जाए कि जीवन और मृत्यु की बाजी लग जाए। चाहे कोई भी परिस्थिति हो, इसका प्रभाव आप पर पड़ेगा।

यह आप की इच्छा है कि आप जिस परिस्थिति को चाहे चुन लें, परंतु यह लड़ाई जारी रहेगी। इसमें छोटी -छोटी बातों पर ध्यान नहीं दिया जाएगा। बहुत संभव है कि यह युद्ध भयंकर स्वरूप ग्रहण कर ले। पर निश्चय ही यह उस समय तक समाप्त नहीं होगा जब तक कि समाज का वर्तमान ढांचा समाप्त नहीं हो जाता, प्रत्येक वस्तु में परिवर्तन या क्रांति समाप्त नहीं हो जाती और मानवी सृष्टि में एक नवीन युग का सूत्रपात नहीं हो जाता।

निकट भविष्य में अंतिम युद्ध लड़ा जाएगा और यह युद्ध निर्णायक होगा। साम्राज्यवाद व पूंजीवाद कुछ दिनों के मेहमान हैं। यही वह लड़ाई है जिसमें हमने प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया है और हम अपने पर गर्व करते हैं कि इस युद्ध को न तो हमने प्रारंभ ही किया है और न यह हमारे जीवन के साथ समाप्त ही होगा।

हमारी सेवाएं इतिहास के उस अध्याय में लिखी जाएंगी जिसको यतींद्रनाथ दास और भगवती चरण के बलिदानों ने विशेष रूप में प्रकाशमान कर दिया है। इनके बलिदान महान हैं। जहां तक हमारे भाग्य का संबंध है, हम जोरदार शब्दों में आपसे यह कहना चाहते हैं कि आपने हमें फांसी पर लटकाने का निर्णय कर लिया है। आप ऐसा करेंगे ही, आपके हाथों में शक्ति है और आपको अधिकार भी प्राप्त है। परंतु इस प्रकार आप जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला सिद्धांत ही अपना रहे हैं और आप उस पर कटिबद्ध हैं। (Bhagat Singh Rajguru Sukhdev)

हमारे अभियोग की सुनवाई इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि हमने कभी कोई प्रार्थना नहीं की और अब भी हम आपसे किसी प्रकार की दया की प्रार्थना नहीं करते। हम आप से केवल यह प्रार्थना करना चाहते हैं कि आपकी सरकार के ही एक न्यायालय के निर्णय के अनुसार हमारे विरुद्ध युद्ध जारी रखने का अभियोग है। इस स्थिति में हम युद्धबंदी हैं, अत: इस आधार पर हम आपसे मांग करते हैं कि हमारे प्रति युद्धबंदियों जैसा ही व्यवहार किया जाए और हमें फांसी देने के बजाय गोली से उड़ा दिया जाए। (Bhagat Singh Rajguru Sukhdev)

अब यह सिद्ध करना आप का काम है कि आपको उस निर्णय में विश्वास है जो आपकी सरकार के न्यायालय ने किया है। आप अपने कार्य द्वारा इस बात का प्रमाण दीजिए। हम विनयपूर्वक आप से प्रार्थना करते हैं कि आप अपने सेना-विभाग को आदेश दे दें कि हमें गोली से उड़ाने के लिए एक सैनिक टोली भेज दी जाए।

                                                                                                               भवदीय

भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव

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