फांसी का फंदा पहने भगत सिंह मुस्कुराते हुए बोले-मिस्टर मजिस्ट्रेट आप बड़े खुशकिस्मत हैं

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द लीडर : फांसी पर चढ़ने से पहले भगत सिंह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे. आखिरी इच्छा पूछे जाने पर भगत सिंह ने कहा-लेनिन की जीवनी खत्म करने का वक्त दिया जाए. जब अंग्रेज अफसर फांसी देने के लिए उन्हें लेने बैरक में पहुंचे. तो भगत सिंह बोले-ठहरिये! पहले एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल तो ले. इस तरह करीब एक मिनट तक वह लेनिन की किताब को निहारते रहे और फिर उसे उछालकर कहा-ठीक है, अब चलो. (Bhagat Singh Wearing Hanging Magistrate You Are Lucky)

इतना ही नहीं जब उनके गले में फांसी का फंदा पड़ा था. तब वह मुस्कुराते हुए मजिस्ट्रेट से कह रहे थे-मिस्टर मजिस्ट्रेट. आप काफी खुशकिस्मत हैं, जो ये देखने का मौका मिल रहा है कि भारत के क्रांतिकारी अपने उसूल-आदर्शों के लिए फांसी के फंदे पर झूल जाते हैं.

ये भगत सिंह का किरदार है. आज भगत सिंह की जयंती है. पूरा देश उन्हें याद कर रहा है. 23 मार्च 1931 को उन्हें क्रांतिकारी सुखदेव और राजगुरु के साथ फांसी हुई थी. तब भगत सिंह केवल 23 साल के थे. लेकिन अंग्रेजी हुकूमत, आजादी के इन मतवालों से खौफ खाती थी. किस कदर-इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्हें 24 मार्च को फांसी दी जानी थी. लेकिन जनता में विद्रोह के भय से एक दिन पहले ही फांसी पर चढ़ा दिया गया था.


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जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर चढ़ाने के लिए ले जाया जा रहा था. तब वे मस्ती में ये गीत गाते जा रहे थे-मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे. मेरा रंग दे बसंती चोला, माय रंग दे बसंती चोला.

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी माफ किए जाने के लिए कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष पंडित मदन मोहन मालवीय ने वायसराय के समक्ष अपील दायर की थी. महात्मा गांधी ने भी इस संबंध में वायसराय से बात की थी. लेकिन भगत सिंह फांसी की माफी के खिलाफ थे.

उनका मत था कि उनके बलिदान से नौजवानों में क्रांति की एक ज्वाला फूटेगी, जो अंग्रेजी सत्ता की जड़ें उखाड़ फेंकेगी. बल्कि भगत सिंह ने अंग्रेज सरकार को एक पत्र भी लिखा था, जिसमें कहा था कि उन्हें अंग्रेजी सरकार के खिलाफ भारतीयों के युद्ध का युद्धबंदी समझा जाए. और फांसी के बजाय गोली से उड़ा दें.

3 मार्च को भगत सिंह ने अपने भाई कुलतार सिंह के नाम एक पत्र लिखा था. भगत सिंह की निडरता, बहादुरी और अपने विचरों पर अडिगता का अंदाजा उसमें लिखे एक शेर से लगा सकते हैं. भगत सिंह ने लिखा था,

‘उन्हें ये फिक्र है हरदम, नयी तर्ज-ए-जफा क्या है

हमें यह शौक है देखें, सितम की इंतहा क्या है?

दहर से क्यों खफा रहें, चर्ख का क्या गिला करें

सारा जहां अदू सही, आओ! मुकाबला करें’

भगत सिंह का मानना था कि सुधार बूढ़े आदमी नहीं कर सकते. वे तो काफी बुद्धिमान और समझदार होते हैं. सुधार तो युवाओं के परिश्रम, साहस, बलिदान और निष्ठा से आता है. इसलिए क्योंकि उन्हें भयभीत होना आता ही नहीं है, और जो विचार कम और अनुभव अधिक रखते हैं.

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