उत्तराखंड नहीं करेगा इस बार राष्ट्रीय शीतकालीन खेलों की मेजबानी, ये है वजह

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मनमीत

अभी तक हिमायली राज्यों में ग्लोबल वार्मिंग के संभावित असर की ही बात होती थी। लेकिन यह संभावना अब हकीकत की तरह पेश आ चुकी है। इसका असर शीतकालीन राष्ट्रीय खेल पर भी इस बार हो गया।

फरवरी के शुरुआत में थोड़ी सी उम्मीद जागी थी जो महीने का अंत होने तक खत्म हो गई। असर का आलम यह है कि उत्तराखंड ने न सिर्फ आपदा का कहर देखा, बल्कि इस बार के खेलों की मेजबानी करने से भी हाथ खड़े कर दिए।

हर साल दिसंबर से ही औली के विश्वविख्यात ढलानों पर बर्फ की कई फीट चादर बिछ जाया करती थी। कश्मीर के गुलमर्ग की तरह औली में भी देशी विदेशी पर्यटक साहसिक खेलों का लुत्फ लेने को जुटते रहे हैं। इस बार ये ढलानें बर्फ के लिए तरस गई। फरवरी महीने की शुरुआत में बर्फवारी हुई भी तो जैसे टिकी नहीं और ढलान सिलपट होकर खतरनाक सूरत में तब्दील हो गए।

इस साल के फरवरी के अंतिम सप्ताह में औली में राष्ट्रीय सीनियर अल्पाइन स्कीइंग एंड स्नोबोर्ड चैंपियनशिप का आयोजन होना था। लेकिन इस साल सर्दी में शुरू से ही औली में बेहद कम हिमपात हुआ। अमूमन औली में दो से तीन फीट का हिमपात होता रहा है।


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Badrinath

जब फरवरी में हिमपात होने की सभी संभावनाएं खत्म हो गईं तो गढ़वाल मंडल विकास निगम ने कृत्रिम बर्फ बनाने का प्रयास किया, लेकिन गर्मी अधिक होने के चलते ये कत्रिम बर्फ भी नहीं जम पाई।

आखिरकार, खेलों को रद्द करने का निर्णय लिया गया। शीतकालीन खेलों की सर्वोच्च संस्था स्की एंड स्नोबोर्ड ऑफ इंडिया के महासचिव रूपचंद्र नेगी ने बताया कि उत्तराखंड के औली को शीतकालीन खेलों की जो मेजबानी मिली थी। उसे रद्द करने का निर्णय लिया गया है। अब ये मेजबानी जम्मू कश्मीर को मिली है। स्की एंड स्नो बोर्ड ऑफ इंडिया ने इसकी घोषणा कर दी है।


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हेमकुंड में इस बार तीन फीट बर्फ

4633 मीटर की उंचाई पर स्थित सिखाें का पवित्र धर्मस्थल हेमकुंड में आमतौर पर सर्दियों में 15 से 20 फीट तक बर्फ गिरती है। इस बार महज तीन से चार फीट बर्फ गिरी है। जिस पर वैज्ञानिक चिंता जता रहे हैं। वरिष्ठ ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल बताते हैं ये सब ग्लोबल वाॅर्मिंग के कारण हो रहा है। ग्लेशियरों में भी इस बार कम हिमपात हुआ है।

यह रही वजह

यूरोप के नीचे भूमध्य सागर से जो बादल पाकिस्तान होते हुए भारत पहुंचते थे, इस बार वो दगा दे गए। बादल हिमालय की पहाड़ियों से टकराने से पहले ही कश्मीर के रास्ते सेंट्रल एशिया की ओर रुख कर गए, जिसके चलते उत्तराखंड में हिमपात बेहद कम हुआ। अब इस मौसमी परिघटना का प्रत्यक्ष असर उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में दिखने लगा है।


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