श्रद्धांजलि धरती के लाल! बहुगुणी सुंदरलाल

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इंद्रेश मैखुरी

पर्यावरण,मिट्टी,पानी,हवा के लिए संघर्ष करने वाले सुंदर लाल बहुगुणा जी को 94 वर्ष में एक वैश्विक महामारी से संघर्ष करना पड़ा. उनकी अन्य लड़ाइयों से यह लड़ाई इस मायने में भिन्न हो गयी है कि अन्य संघर्षों में वे जीते या हारे पर लड़ाई के सबक के साथ वे हमारे बीच होते थे. इस लड़ाई के बाद वे हमेशा के लिए इस दुनिया से विदा हो गए हैं.
सुंदरलाल बहुगुणा जी पर्यावरण के लिए समर्पित होने से पहले स्वतंत्रता सेनानी थे. और स्वतंत्रता सेनानी भी कैसे थे वे ? गज़ब. वे जिस टिहरी में पैदा हुए वो टिहरी तो राजा की रियासत थी. राजाओं के अत्याचार जो हर रियासत की पहचान होती थी,टिहरी की राज शाही भी वैसी ही क्रूर और ज़ालिम थी. श्रीदेव सुमन जेल में अनशन करते हुए शहीद हो गए,टिहरी राजशाही के खिलाफ. अंततः कॉमरेड नागेंद्र सकलानी और मोलू भरदारी की शहादत के बाद 1948 में राजशाही का खात्मा हुआ. उस टिहरी राजशाही में न बोलने की आजादी थी,न संगठित होने की आजादी और न लिखने की.
टिहरी राजशाही के जुल्म-ओ-सितम को दुनिया के सामने उजागर करने का काम सुंदरलाल बहुगुणा जी ने किया. वे प्रताप हाई स्कूल में पढ़ते थे. उस समय टिहरी राज के दमन-अत्याचार की कहानी उन्होंने राष्ट्रीय समाचार पत्रों को लिख भेजी. उनके लिखे से देश ने जाना कि टिहरी में राजशाही ने लोगों पर कैसा कहर बरपा रखा है. राजा को जब पता चला कि उसके विरुद्ध देश के अखबारों में छप रहा है तो लिखने वाले की ढूंढ-खोज शुरू हुई. तब पता चला कि लिखने वाला हाई स्कूल में पढ़ने वाला विद्यार्थी सुंदर लाल है. और कौन है सुंदर लाल, तो मालूम पड़ा कि टिहरी राजा के कोतवाल अंबादत्त बहुगुणा का बेटा है सुंदर लाल. इसलिए पहले लिखा कि सुंदर लाल जी गज़ब स्वतंत्रता सेनानी रहे. पिता टिहरी राजा के दरबार में कोतवाल और बेटा अखबारों में राजा के खिलाफ खबरें लिखे तो गज़ब तो है ही ! ऐसा करने की सजा जो होनी थी हुई और सजा से बहुगुणा जी डिगे नहीं.
मैंने आज से लगभग 22-23 बरस पहले एक गोष्ठी में सुंदर लाल बहुगुणा जी को देखा. तब भी उनकी उम्र 70 पार तो थी ही. वे गोष्ठी में बैठे तो हर बोलने वाले को बड़े गौर से सुनते रहे. एक मोटी नोटबुक वे हाथ में लिए हुए थे और हर बोलने वाले की बात नोट करते जाते. अध्ययनशीलता उनके व्यक्तित्व का एक अहम पहलू था.
सुंदर लाल बहुगुणा जी ने अपने जीवन में नारा दिया-
क्या हैं जंगल के उपहार
मिट्टी पानी और बयार
मिट्टी पानी और बयार
हैं जीवन के आधार
आज इस वैश्विक महामारी में हम देख रहे हैं कि प्राण वायु का संकट हमारे सामने खड़ा है. जाहिर सी बात है कि बहुगुणा जी के नारे में दिये इस सबक को हमें याद रखने की जरूरत है,बार-बार दोहराने की जरूरत है,विकास के नाम पर जंगलों का कत्लेआम करने वालों के बहरे कानों में गुंजा देने की जरूरत है.
मिट्टी,पानी,बयार बचाने की लड़ाई के योद्धा के मिट्टी,पानी,बयार में विलीन हो जाने पर नमन,श्रद्धांजलि.

इन्द्रेश मैखुरी की फेसबुक वाल से

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