तीरथ सिंह : एक बेदाग चेहरे पर दाग धोने की जिम्मेदारी

दिनेश जुयाल

 

उत्तराखंड में भाजपा का सबसे साफ चेहरा तीरथ सिंह का ही है। छात्र राजनीति से लेकर संसद तक के लंबे सफर में कभी किसी विवाद में उनका नाम नहीं आया। कई अहम जिम्मेदारियां मिली लेकिन वह कभी अपने लिए पैरवी करते भी नहीं दिखे न किसी पेशबंदी का हिस्सा बने। स्वभाव से एकदम सौम्य तीरथ का नाम शुरुआत में ही संघ की ओर से भेजा गया था लेकिन दिल्ली में चल रही मोर्चाबंदी के कारण मीडिया की नज़र भी इधर नहीं गई। (Tirath Singh Responsibility Washing)

अपने ही विघ्न संतोषियों से परेशान भाजपा के नेताओं को आखिरकार संघ की ही युक्ति उचित नज़र आई और तीरथ एक बार फिर पार्टी को संकट मोचक नज़र आये। पौड़ी सीट पर उनका नाम भी कुछ ऐसी ही परिस्थितियों में आगे किया गया। जिस फ़ज़ीहत के साथ त्रिवेंद्र की विदाई हुई औऱ विपक्ष जिस तरह ज़ीरो टॉलरेंस के उनके नारे ही धज्जी उड़ाने को तैयार बैठा है उस हिसाब से तीरथ के लिए ये अग्नि परीक्षा और कांटों का ताज सर लेने जैसी बात है।

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पार्टी संगठन पर उनकी पकड़ है। फरवरी 2013 से दिसंबर 2015 तक उत्तराखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। वर्तमान में सांसद के साथ ही राष्ट्रीय सचिव भी हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हिमाचल प्रदेश का चुनाव प्रभारी भी बनाया गया था। त्रिवेंद्र की तरह वह भी पत्रकारिता के छात्र रहे हैं और मीडिया में भी उनकी अच्छी छवि और पहचान है।

गांव सीरों, पट्टी असवालस्यूं पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड में जन्मे रावत एक आम मध्यवर्गीय परिवार से हैं। 1983 से 1988 तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (उत्तराखण्ड) के संगठन मंत्री और राष्ट्रीय मंत्री रहे हैं।

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हेमवती नंदन गढ़वाल विश्व विधालय में छात्र संघ अध्यक्ष और छात्र संघ मोर्चा (उत्तर प्रदेश) में प्रदेश उपाध्यक्ष भी रहे। इसके बाद भारतीय जनता युवा मोर्चा (उत्तर प्रदेश) के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे। इसके बाद 1997 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद् के सदस्य निर्वाचित हुए तथा विधान परिषद् में विनिश्चय संकलन समिति के अध्यक्ष बनाये गए।

2000 में नवगठित उत्तराखण्ड में उन्हें शिक्षा मंत्री का दायित्व सौंपा गया। इसके बाद 2007 में भारतीय जनता पार्टी उत्तराखण्ड के प्रदेश महामंत्री चुने गए तत्पश्चात प्रदेश चुनाव अधिकारी तथा प्रदेश सदस्यता प्रमुख रहे। 2013 उत्तराखण्ड दैवीय आपदा प्रबंधन सलाहकार समिति के अध्यक्ष रहे।

वर्ष 2012 में चौबटाखाल विधान सभा से विधायक निर्वाचित हुए और वर्ष 2013 में उत्तराखण्ड भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बने। 2019 में पौड़ी सीट से 2,85,003 मतों के अंतर से जीते। कुल मिला कर जमीन से उठ कर आये नेता हैं।

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तीरथ सिंह रावत के सामने कई चुनौतियां होंगी। गैरसैण को कमिश्नरी बनाने जैसे त्रिवेंद्र के कुछ फैसलों को बदलने का दबाव तो उनपर होगा ही, त्रिवेंद्र राज में अपनी मनमानी करने वाले मंत्रियों को नाथना भी आसान नहीं होगा, खासकर तब जब कुछ नेता परोक्ष रूप से पाला बदलने की धमकी दे रहे हैं।

पुराने कार्यकर्ताओं को भी उम्मीद रहेगी कि अब उनकी उपेक्षा न हो। इनसे भी बढ़कर उन चालक नौकरशाहों को साधने की चुनौती है जो त्रिवेंद्र राज में कुछ ज्यादा ही मनमानी करने लगे थे और जिनकी सलाह पर त्रिवेंद्र को असहज होना पड़ा। चुनावी वर्ष में आप और कांग्रेस को तेज होते हथियार भी उन्हें ही झेलने हैं।

पहली चुनौती के तौर पर विधानसभा उपचुनाव में अपनी सीट को जीत कर उन्हें ये नई यात्रा शुरू करनी है। पौड़ी लोकसभा सीट से इस्तीफा देकर इसे भाजपा की झोली भी उन्हें ही डालना है। विधानसभा चुनाव के लिये भी सिर्फ नौ माह का समय उनके पास बचा है।जाहिर है तीरथ से बेहतर विकल्प भाजपा के पास नहीं था लेकिन दूसरों का बोया काटने में उन्हें खूब पसीना बहाना पड़ेगा। (Tirath Singh Responsibility Washing Stains)

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Ateeq Khan

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