ऐलोपैथिक चिकित्सा सबसे आधुनिक पद्धति है, जिसका विकास मानव सभ्यता के लिए बहुत जबर्दस्त है। इसके साथ-साथ दुष्प्रभाव का चक्र है। ये प्रक्रिया जारी है।
सुन्नत ( हजरत मुहम्मद का मार्ग) आधुनिक उपचार के सिद्धांतों का पुराना रूप जैसा प्रतीत हाेता है। जिसने दवाओं के रूप में खाद्य पदार्थों के इस्तेमाल की वकालत की।
पैगंबर मुहम्मद का एक बयान है, ‘जिसने बीमारी को नीचे भेजा, उसने उपचार भी भेजा, प्रत्येक बीमारी के लिए सर्वशक्तिमान ने इलाज दिया है।’ लोगों को इन उपचारों को तलाश कर कौशल और दयालुता के साथ उपयोग करने को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
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फाइटोमेडिसिन के खजाने के बावजूद हमारी बीमारियां, जैसे कैंसर, मोटापा-संबंधी, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और कई असाध्य रोग बढ़ रहे हैं। लिहाजा अपने अत्याधुनिक विकास में ऐतिहासिक रूप से निर्धारित सुपरफूड से पैदा दवाओं की समीक्षा करने की तत्काल आवश्यकता है।
दुनियाभर में कैंसर मौत का एक प्रमुख कारण है। कैंसर कोशिकाओं के अनियंत्रित विकास प्राइमरी ट्यूमर से शुरू होकर रक्त वाहिकाओं में जरिए शरीर के दूसरे हिस्सों में फैल जाता है, जहां सेकेंड्री ट्यूमर बन सकते हैं। ये कैंसर फेफड़े, यकृत, पेट, स्तन और दूसरे अंगों में बनकर मौत की दहलीज पर पहुंचाते देते हैं।
कैंसर को ठीक करने के लिए आज कई उपचार तकनीकों का उपयोग या विकास किया जा रहा है, जिन्हें आमतौर पर पांच श्रेणियों में बांटा गया है: रेडियोथेरेपी, सर्जरी, कीमोथेरेपी, हार्मोनल थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी।
कीमोथेरेपी कैंसर से निपटने के लिए मुख्य चिकित्सीय उपचार में से एक है। आदर्श कैंसर कीमोथेरेपी का मुख्य उद्देश्य सटीक जगह पर नियंत्रित दर के साथ दवा की सटीक मात्रा वितरित करना होता है। प्रक्रिया भी लंबी अवधि तक चलती है, जिससे कैंसर कोशिकाओं की बढ़वार रोकी जा सके।
इस उपचार से जुड़ी कुछ समस्याएं भी सामने आती हैं, जैसे कि गंभीर रिएक्शन, बार-बार कीमो लेने का जोखिम, कैंसर कोशिकाओं में मल्टीड्रग प्रतिरोध आ जाना आदि।
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इसी तरह डायबिटीज है। बिना कसरत की जीवनशैली और मोटापे से ये बीमारी आम हो चुकी है। दुनियाभर में वर्ष 2000 में लगभग 17 करोड़ 10 लाख लोगों को मधुमेह था, जो 2030 तक 36 करोड़ से ज्यादा लोगों को होने का अनुमान है। जिससे मृत्यु दर बढ़ने के साथ बड़ा आर्थिक बोझ पैदा होना तय है।
टाइप 2 डायबिटीज का उतार चढ़ाव बेहद तेज होता है। इंसुलिन फ़ंक्शन के बिगड़ने से क्रोनिक हाइपरग्लेसेमिया और गंभीर ग्लाइसेमिक उतार-चढ़ाव आते हैं।
चिकित्सा उपचार में जीवन शैली में बदलाव, मुंह से ली जाने वाली एंटीडायबिटिक दवाओं के अलावा इंसुलिन से नियंत्रण होता है। ये उपचार भी सीमित मामलों में सफल हो रहा है क्योंकि मुंह से खाने वाली दवाओं के दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
दवाओं के प्रभाव अक्सर बहुत देर से शुरू होते हैं, जिसके चलते रोगी कई बार शुगर का स्तर खतरनाक स्तर तक चला जाता है। इंसुलिन थेरेपी वजन असंतुलित करती है। इसके अलावा तमाम एहतियात, सटीक खुराक लेने की कठिनाई है।
मोटापा टाइप 2 मधुमेह और हृदय रोगों में जोखिम बढ़ा देता है। मोटापा जीनोटाइप और रहन सहन के तरीके से होता है। इसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, व्यवहारिक, शारीरिक, चयापचय और आनुवांशिक कारक समेत कई कारक शामिल हैं। उपचार के लिए कुछ फार्माकोथेरेपी, व्यवहार चिकित्सा और वजन घटाने की सर्जरी हैं।
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फार्माकोथेरेपी में एफडीए ने वजन कम करने वाली दवाएं निर्धारित की हैं, इसके दीर्घकालिक उपयोग से कई दुष्प्रभाव हो सकते हैं। वजन घटाने की सर्जरी महत्वपूर्ण है, लेकिन आजीवन चिकित्सा निगरानी की आवश्यकता होती है। कुछ रोगियों में आकस्मिक हर्निया, पित्ताशय की पथरी, डंपिंग सिंड्रोम और बाद में वजन घटाने में नाकामयाबी भी देखने में आती है।
इन्हीं बीमारियों के लिए पारंपरिक दवाओं का भी इस्तेमाल किया गया है। इसका कारण यह है कि वे सस्ती हैं, रोगी की मंशा से मेल खाती हैं, सिंथेटिक दवाओं के उलट दुष्प्रभाव नहीं करतीं। व्यक्तिगत स्वास्थ्य देखभाल आराम से कर सकते हैं।
हालांकि, पारंपरिक दवाओं के उपयोग की मांग केवल तभी होती है जब कोई आधुनिक दवा किसी विशेष बीमारी जैसे कि कैंसर या नई संक्रामक बीमारी की स्थिति में प्रभावी नहीं होती है।
हाल ही में सुपर फूड्स नामक कुछ पारंपरिक खाद्य पदार्थों पर ध्यान दिया गया। कई अध्ययनों ने सुझाव दिया कि कुछ पारंपरिक खाद्य पदार्थ जिनमें खजूर, अनार, काले बीज, अंजीर और जैतून शामिल हैं, रोगों को रोकने या ठीक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
क्रमश: जारी……