फिलिस्तीन की मस्जिद-ए-अल अक्सा के पास एक चट्टान है, इसी चट्टान से पैगंबर-ए-इस्लाम मेराज के सफर पर रवाना हुए थे. खलीफा मलिक बिन मरवान ने इस चट्टान को सुरक्षित रखने के मकसद से एक यादगार निशानी बनाने का आदेश दिया. और युवा मंत्री रजा बिन हैवा को इसकी जिम्मेदारी सौंपी. सन 685 में यहां सुनहरे गुंबद वाली बिल्डिंग बनाए जाने का काम शुरू हुआ. छह साल में भवन तामीर हुआ. आज करीब 1300 सौ साल बाद भी ये दुनिया की सबसे खूबसूरत इमारतों में से एक है. पढ़िए खुर्शीद अहमद का आलेख.
रजा बिन हैवा कौन थे? वह एक हाफिज थे. आलिम और इंजीनियर भी थे. एक खलीफा के समय मंत्री का पद संभाला. तीन खलीफाओं के मुशीर अर्थात #political_adviser रहे. उन्होंने हज़रत मोआज़ बिन जबल और हज़रत ओबादा बिन सामित जैसे सहाबा से शिक्षा प्राप्त की. और इमाम ज़ोहरी जैसे बड़े इमाम इनके शागिर्द रहे. (Prophet Islam Traveled Meraj Golden Dome)
इनका पूरा नाम रजा बिन हैवा कंदी था. फलस्तीन के शहर बैसान में सन 660 में एक ईसाई परिवार में जन्में. 15 साल की उम्र में उनके पिता ने इस्लाम कबूल कर लिया. रजा बिन हैवा भी मुसलमान हो गए.
15 साल की उमर के बाद उन्होंने इस्लामी शिक्षा हासिल करना शुरू किया. अपनी लगन और काबिलियत से वो मुकाम हासिल कर लिया और उनकी गिनती इस्लामी इतिहास के चोटी के उलमा से होने लगी. इनके बहुत से ऐसे काम है जिनकी वजह से इतिहास ने इन्हें याद रखा. यहां मै उनके दो बड़े कामों को बयान करता हूं.
खलीफा सुलेमान बिन अब्दुल मलिक के समय में उनके राजनीतिक सचिव और सलाहाकार थे. खलीफा बीमार पड़े. बचने की कोई उम्मीद नहीं रही. बच्चे छोटे थे. इस वजह से वह अपने बाद उन्हें खलीफा बनाने की घोषणा नहीं कर सकते थे. इसलिए अपने दो भाइयों में से किसी एक को खलीफा बनाना चाहते थे. पर फैसला नहीं कर पा रहे थे कि दोनों में से किसे चुना जाए. उन्होंने रजा बिन हैवा से राय जाननी चाही. ये बड़ा मुश्किल समय होता है किसी एक के बारे में राय देने का मतलब दूसरे से नाराजगी मोल लेना.
रजा बिन हैवा ने काफी सोच विचार के बाद जनता के हक में फैसला लिया और दोनों भाइयों की दुश्मनी मोल ले ली. उन्होंने खलीफा से कहा कि आप दोनों भाइयों को छोड़कर अपने चचाज़ाद भाई उमर बिन अब्दुल अजीज को खलीफा बनाइए. खलीफा भड़क गए. ऐसा नहीं हो सकता. नियम के खिलाफ है.
उन्होंने कहा कि भले यह काम मुश्किल है लेकिन आप उन्हें खलीफा जरूर बनाइए. उमर बिन अब्दुल अजीज बहुत अच्छे आदमी हैं. मदीना के गवर्नर रहते हुए बहुत अच्छे काम किए. जनता उनसे खुश होगी. आपको दुआएं देगी. खलीफा ने कहा कि ठीक है सोचता हूं.
इधर यह बात हज़रत उमर बिन अब्दुल अजीज को पता चली. उन्होंने रजा को बुलाकर कहा कि ख़िलाफत संभालना मेरे बस की बात नहीं. आप इस तरह की बातें आगे न बढ़ाएं. इन्होंने कहा कि मेरे हिसाब से आप का खलीफा बनना जनता के लिए बहुत अच्छा साबित होगा मैं अपने मशविरा में मुखलिस हूं.
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बहरहाल तमाम विरोध के बाद भी वह लगे रहे और खलीफा से हज़रत उमर बिन अब्दुल अजीज के हक में फैसला कराने में सफल हो गए.
बाद में साबित हो गया कि हज़रत उमर बिन अब्दुल अजीज को खलीफा बनाने की राय बहुत अच्छी थी. मुसलमानों को उनके पांचवें खलीफा ए राशिद मिले. खुद हज़रत उमर बिन अब्दुल अजीज को महान बनाने वाले बहुत सारे फैसलों में रजा बिन हैवा की राय शामिल रहती थी.
मौलाना अली मियां नदवी रहमतुल्लाह अलैहे अपनी किताब ” तारीख दावत व अज़ीमत ” में लिखते हैं कि रजा बिन हैवा का यह काम इतना बड़ा है कि अगर उन्होंने अपनी जिंदगी में सिर्फ यही एक काम किया होता तब भी वह महान लोगों में गिने जाते “.
उनका कौशल की दूसरी दक्षता इस तरह समझ सकते हैं. फिलिस्तीन में मुसलमानों की पवित्र मस्जिद है अल अक्सा. इसके बगल में एक चट्टान थी. इसी चट्टान से अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम अपने मेराज के सफर पर रवाना हुए थे.
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अरबी में इसे قبة الصخرة और अंग्रेजी में #Dome_of_the_Rock कहते हैं. खलीफा अब्दुल मलिक बिन मरवान ने चाहा कि इस चट्टान को घेर दें, ताकि चट्टान सुरक्षित रहे. और बाढ़ वगैरह में बह न जाए. इसकी जिम्मेदारी अपने युवा मंत्री रजा बिन हैवा और अपने दास यज़ीद बिन सलाम को सौपी. ये कहा कि पैसों की परवाह न करें और कोई यादगार चीज़ बनाएं.
दोनों ने जगह देखी. नक्शा तैयार किया और काम शुरू कर दिया. सन् 685 में काम शुरू हुआ और 691 में जाकर 6 साल में पूरा हुआ. सुनहरे गुंबद वाली इस बिल्डिंग की गिनती आज तैरह सौ साल बाद भी दुनिया की खूबसूरत बिल्डिंगों में होती है. तस्वीरों में भवन की सुंदरता देखी जा सकती है. ये बिल्डिंग जितनी खूबसूरत है अंदर उस से भी अधिक सुंदर इसमें काम हुआ है. इसे देखकर आपको इसके बनाने वाले रजा बिन हैवा और यज़ीद बिन सलाम की काबिलियत का अंदाजा हो जाएगा.