‘अखंड भारत’ के जवाब में आया ‘ग्रेटर नेपाल’ का नक्‍शा, मचा घमासान

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Greater Nepal Vs Akhand Bharat Map: अपने देश में नए संसद भवन का उद्घाटन हुआ। इस उद्घाटन समारोह को लेकर देश में आपस में बहुत सी बात चीत हुई। सत्ता पक्ष और विपक्ष में जमकर बयानबाजी हुई लेकिन इसमें से एक मुद्दे पर देश के बाहर से भी आवाज आने लगी है। अब आप सोच रहें होंगे ये तो हमारे घर का मामला है और संसद भवन भी अपनी जमीन पर ही बनवाया गया है तो बाहरी लोगों को इसमें दिक्कत क्यों ? उसके लिए आपको बता दें कि भारत की संसद में सम्राट अशोक के समय के अखंड भारत के नक्शे को लगाया गया है।

अब अखण्ड भारत का मतलब तो आप समझते ही होंगे। खैर, उस विषय में बाद में बात करेंगे लेकिन जिस बात को लेकर ताजा विवाद देखने को मिला है उस पर बात कर लेते है। दरअसल, अखंड भारत के नक्शे में आधुनिक नेपाल के लुंबिनी और कपिलवस्तु को भी दिखाया गया है। जिसके बाद नेपाल की राजधानी काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह ने अपने चेंबर में ‘ग्रेटर नेपाल’ का नक्शा लगाकर एक नए विवाद को पैदा कर दिया। इस ग्रेटर नेपाल के नक्‍शे में हिमाचल से लेकर बिहार तक के काफी इलाके दिखाए गए हैं।

अब इस नक्शे को लगाने का कारण यही माना जा रहा है कि भारत की संसद में लगाए गए सम्राट अशोक के समय के अखंड भारत के नक्शे के जवाब में काठमांडू के मेयर ने ये नापाक हरकत की है। सबसे खास बात ये है कि मेयर बालेन्द्र शाह इस समय भारत के बेंगलुरु शहर में हैं और उन्होंने अपने सहयोगियों से कहकर ये नक्‍शा लगवाया है। अब इनके इस कदम की जहां भारत में आलोचना हो रही है, वहीं इसको लेकर अब नेपाल में भी बहस छिड़ गई है। इसके साथ ही नेपाल के कानून विशेषज्ञ भी इस हरकत को सही नहीं मान रहे।

जबकि भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पहले अखंड भारत विवाद पर साफ कर दिया था कि ये केवल अशोक के साम्राज्य को दिखाता है। दोस्ताना देश इसे समझेंगे। हालांकि पाकिस्तान को लेकर उन्होंने कहा था कि आप पाकिस्‍तान को भूल जाइए, उनके पास इतनी क्षमता ही नहीं है कि वे इसे समझ सकें।ये राजनीतिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक नक्शा है।

भारत के समझाने के बाद भी अगर पड़ोसी देश में कुछ ऐसी चर्चा है तो उसे भी समझना जरूरी है। दरअसल , एक समय नेपाल का भूभाग पूर्व में तीस्ता नदी से लेकर पश्चिम में सतलुज नदी तक फैला हुआ था। इस बीच अंग्रेजों के साथ युद्ध में नेपाल ने अपनी भूमि का एक बड़ा हिस्सा खो दिया। युद्ध के बाद मेची से तीस्ता और महाकाली से सतलुज तक के क्षेत्रों को स्थायी रूप से भारत में मिला लिया गया था। नेपाल और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच 4 मार्च 1816 को सुगौली संधि पर हस्ताक्षर किए गए, जिसने नेपाल के क्षेत्र को मेची-महाकाली नदी तक कम कर दिया।

काठमांडू के मेयर बालेंद्रशाह के कार्यालय में जो ‘ग्रेटर नेपाल’ मानचित्र लगाया गया है उस में पूर्वी तीस्ता से लेकर पश्चिम कांगड़ा तक के क्षेत्र को शामिल किया गया हैं जो वर्तमान में भारतीय क्षेत्र हैं।

अगर भारत नेपाल सीमा विवाद की बात करें तो अभी फिलहाल नेपाल के साथ कालापानी, लिपु लेख और लिम्पियाधुरा के क्षेत्रों में सीमा विवाद है। ये वर्तमान में भारतीय क्षेत्र के अंतर्गत हैं, लेकिन नेपाल भी इन पर दावा करता है। भारतीय दावों के जवाब में नेपाल सरकार ने 2020 में अपने हिस्से के रूप में क्षेत्रों को शामिल करते हुए एक नया राजनीतिक मानचित्र भी जारी किया था। लेकिन एक बार फिर से सीमा विवाद की स्थित में भारत और नेपाल के बीच द्विपक्षीय संबंधों पर असर पड़ सकता है हालांकि नेपाल की भारत पर बहुत अधिक निर्भरता है लेकिन चीन की तरफ से समय समय पर भारत और नेपाल के संबंधो पर प्रभाव डालने की कोशिश होती रहती है। अब देखने वाला ये होगा कि ताजा विवाद का इन दोनों देशों पर क्या असर पड़ता है?

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