आला हजरत दरगाह आने की हसरत लेकर दुनिया से रुख़्सत होने वाली पाकिस्तान की फर्स्ट लेडी

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भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से लेकर आज तक, न जाने कितने दिलों की हसरतें हमेशा के लिए दफन हो चुकी हैं। ऐसे लोगों एक नाम आइरीन पंत का भी है। जिनको देश विभाजन के बाद पाकिस्तान का रुख करना पड़ा। वहां उन्हें इज्जत-सम्मान की कमी नहीं रही, प्रथम महिलाा भी बनीं। लेकिन एक हसरत हमेशा दिल में दबाए दुनिया से रुखसत हो गईं। ऐसा भी कहा जाता है कि उनकी यह हसरत थी बरेली की आला हजरत दरगाह तक आने की। अब यह बात इतनी पुरानी हो चुकी है कि इस बात का पता लगाना भी अब नामुमकिन सा है कि आखिर क्या वजह थी जो वे बरेली दरगाह आना चाहती थीं। (Pakistan First Lady Irene)

आइरीन पंत की जिंदगी का सफरनामा काफी दिलचस्प है। उन्होंने 86 साल की जिंदगी का आधा हिस्सा भारत और आधा पकिस्तान में बिताया।

उनका पूरा नाम था आयरीन रूथ पंत। वह 13 फरवरी 1905 को आज के उत्तराखंड में अल्मोड़ा के डेनियल पंत के घर पैदा हुईं। एक ऐसे कुमाऊंनी ब्राह्मण परिवार में, जिसने ईसाई धर्म स्वीकार लिया था, लेकिन सरनेम बरकरार रखा। उनके दादा तारादत्त पंत ने 1874 में ईसाई धर्म स्वीकारा था, जो मशहूर वैद्य थे और कुलीन ब्राह्मण थे। उस वक्त अल्मोड़ा के ब्राह्मण समुदाय ने तारादत्त पंत के परिवार को मृत घोषित कर श्राद्ध तक कर डाला था।

लेकिन यह परिवार हकीकत में तो जिंदा ही था। तारादत्त पंत की नातिन आइरीन ने इतिहास बनाया बाद में। आइरीन अल्मोड़ा, नैनीताल में पढ़ाई के बाद उच्च शिक्षा हासिल करने लखनऊ गईं और इसाबेल थोबर्न कॉलेज से अर्थशास्त्र और अध्यात्मिक अध्ययन की डिग्री ली। एमए की क्लास में वे अकेली लड़की थीं। 1927 में वे साइकिल चलाया करती, जो उस दौर में सामान्य बात नहीं थी। लड़के उनको परेशान करने के लिए साइकिल की हवा निकाल देते थे।

लखनऊ में जब आइरीन डिग्री कोर्स रही थीं कि बिहार में भीषण बाढ़ आ गई। तब अन्य छात्रों के साथ आइरीन बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए नाटकों व सांस्कृतिक कार्यक्रमों से चंदा जुटाने की मुहिम में लगीं। इसी दरम्यान उनकी मुलाकात लियाकत अली खां से हुई, जब वे सांस्कृतिक कार्यक्रम के टिकट बेचकर चंदा जुटाने लखनऊ विधानसभा पहुंचीं। (Pakistan First Lady Irene)

लियाकत अली खां टिकट नहीं खरीदना चाहते थे कि क्योंकि कार्यक्रम में साथ आने वाला कोई नहीं था, तब आइरीन ने उनसे कहा कि अगर वे अकेले होंगे तो कार्यक्रम में लियाकत अली के साथ खुद बैठ जाएंगी। इस तरह दोनों की पहली मुलाक़ात ने नजदीक आने न्योता दे दिया। कौन जानता था कि यही लियाकत अली खां आगे चलकर पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बनेंगे और आयरीन रूथ पंत उनकी बेगम।

लखनऊ से पढ़ाई के बाद आइरीन दिल्ली में इंद्रप्रस्थ कॉलेज में प्रोफेसर बन गईं। तभी लियाकत खां को उत्तरप्रदेश विधानसभा का अध्यक्ष चुना गया। आइरीन ने मुबारकबाद भेजी।

मुबारकबाद पर शुक्रिया कह जवाब में लियाकत अली खां ने लिखा- मुझे जानकर खुशी हुई कि आप दिल्ली में हैं, जो मेरे पुश्तैनी शहर करनाल के बिल्कुल नजदीक है। लखनऊ जाते हुए दिल्ली हो कर गुज़रंगा तो क्या आप मेरे साथ कनाट प्लेस के वेंगर रेस्तरां में चाय पीना पसंद करेंगी?

आइरीन ने लियाकत अली का न्यौता मंजूर कर लिया। फिर मुलाकातों का यह सिलसिला मुहब्बत के रास्ते होते हुए निकाह तक जा पहुंचा।

लियाकत अली खां पहले से चचेरी बहन जहांआरा से शादीशुदा थे और एक बेटा विलायत अली खां था। लेकिन आइरीन की शख्सियत की कशिश से खिंचे चले गए और 16 अप्रैल 1933 को दोनों ने दिल्ली के आलीशान होटल मेंडेस में निकाह किया, जिसे जामा मस्जिद के इमाम ने पढ़वाया। आइरीन ने इस्लाम कबूल लिया और उनका नया नाम गुल-ए-राना रखा गया। (Pakistan First Lady Irene)

आजादी के वक्त 1947 में देश का बंटवारा हो गया। गुल-ए-राना और लियाकत अली खां अपने दो बेटों अशरफ और अकबर के साथ दिल्ली के वेलिंगटन हवाईअड्डे से डकोटा विमान में कराची रवाना हुए। लियाकत अली खां पकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने और राना पकिस्तान की मादर-ए-वतन (फर्स्ट लेडी)। उन्हें मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक और महिला मंत्री के तौर पर भी दर्जा मिला।

चार साल बाद, 16 अक्टूबर 1951 को रावलपिंडी में एक सभा को संबोधित करने के दौरान लियाकत अली खां की हत्या कर दी गई तो पाकिस्तान के लोगों को लगा कि शायद राना अब भारत वापस चली जाएंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस हादसे के बाद वह थोड़ा परेशान भी हुईं, क्योंकि उनके पास लियाक़त की छोड़ी संपत्ति या बैंक बैलेंस भी नहीं था। इसकी वजह यह थी कि लियाकत ने विभाजन के बाद अपनी दिल्ली वाली जायदाद बेचने के बजाय पाकिस्तान को दान दे दी थी, जिसे आज पकिस्तान हाउस के नाम से जाना जाता है, जहां भारत में पाकिस्तान के राजदूत रहते हैं।

लियाकत की मौत के वक्त राना के पास नकदी सिर्फ 300 रुपए थी। उसके बाद पकिस्तान सरकार ने उन्हें 2000 रुपए महीना पेंशन देना शुरू किया और फिर उन्हें हॉलैंड और इटली में पाकिस्तान का राजदूत बनाकर भेजा। हॉलैंड की रानी से उनकी दोस्ती हो गई। हॉलैंड ने उन्हें अपना सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ‘औरेंज अवॉर्ड’ भी दिया।

आइरीन यानी गुल-ए-राना ने अपने आखिरी वक्त तक पाकिस्तान में रहकर महिला अधिकारों की लड़ाई लड़ी और कट्टरपंथियों के खिलाफ मोर्चा लिया। जनरल जियाउल हक के खिलाफ भी डटकर खड़ी हुईं। जब जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दी गई तो आइरीन ने सैन्य तानाशाही के खिलाफ अभियान तेज कर दिया। जियाउल हक द्वारा इस्लामिक कानून लागू किए जाने के खिलाफ मैदान में उतरीं। (Pakistan First Lady Irene)

आइरीन ने अपनी आंखों से इतिहास बनते देखा और उस प्रक्रिया में शामिल रहीं। जुल्फिकार अली भुट्टो ने भी उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया। सिंध की गर्वनर और कराची यूनिवर्सिटी की पहली महिला वाइस चांसलर भी बनी। नीदरलैंड, इटली, ट्यूनिशिया में पाकिस्तान की राजदूत रहीं। 1978 में संयुक्त राष्ट्र ने मानवाधिकार के प्रयासों के लिए उन्हें सम्मानित किया।

Source: KafalTree


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