सपा के गढ़ करहल में अखिलेश यादव के लिए कितनी बड़ी चुनौती हैं मोदी के मंत्री एसपी सिंह बघेल

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Akhilesh Yadav UP Karhal
इटावा में एक रैली के दौरान रथ पर सवार यादव परिवार.

द लीडर : करहल की कसौटी पर, खरा कौन उतरेगा. अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) या फिर एसपी सिंह बघेल (SP Singh Baghel). इसका रिज़ल्ट तो 10 मार्च को ही साफ होगा. लेकिन करहल की हलचल हर किसी के लिए दिलचस्पी का सबब बनी है. इसलिए क्योंकि समाजवादी पार्टी के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यहां से चुनाव लड़ रहे हैं. अखिलेश का ये पहला विधानसभा चुनाव है. (Akhilesh Yadav UP Karhal)

करहल, ज़िला मैनपुरी की विधानसभा है. समाजवादी पार्टी के संस्थापक और अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव मैनपुरी से सांसद हैं. अखिलेश यादव के करहल से चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद ही भाजपा ने मोदी सरकार में मंत्री एसपी सिंह बघेल को यहां से प्रत्याशी बनाया है.

20 फरवरी को तीसरे चरण में यहां मतदान है. जिसका प्रचार थम चुका है. लेकिन जब तक प्रचार चला-तब तक सपा और भाजपा एक-दूसरे पर शब्द वाण छोड़ती रही. (Akhilesh Yadav UP Karhal)


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गृहमंत्री अमित शाह से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक यहां से भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार कर चुके हैं. गुरुवार को अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव इटावा में एक ही रथ पर सवार होकर प्रचार करने निकले. इसको लेकर भाजपा ने सपा पर निशाना साधा.

इस तर्क के साथ कि हार के भय से अखिलेश को मुलायम सिंह यादव को प्रचार में लाना पड़ा है. इतना ही नहीं, रथ पर सवाल शिवपाल सिंह को लेकर योगी आदित्यनाथ ने कहा कि, वह प्रदेश के बड़े नेता थे, लेकिन अखिलेश ने उन्हें कुर्सी के हत्थे पर बिठा दिया. (Akhilesh Yadav UP Karhal)

दरअसल, समाजवादी रथ में मुलायम सिंह यादव कुर्सी पर बैठे थे. एक कुर्सी के हत्थे पर अखिलेश तो मुलायम सिंह की कुर्सी से सटे हत्थे पर शिवपाल सिंह यादव. भाजपा ने इस तस्वीर को वायरल करके अखिलेश को निशाने पर लेने की कोशिश की.

इसके जवाब में शिवपाल सिंह यादव सामने आए. उन्होंने कहा, इटावा में समाजवादी एकता की प्रतीक तस्वीर सामने आने के बाद भाजपा की बौखलाहट बढ़ गई है. नकारात्मकता, अशांति पैदा करना, व्यक्तिगत हमला व चरित्र हनन. यह भाजपा के हथियार हैं. भाजपा के शब्दकोष में तरक्की और विकास जैसे शब्द नहीं हैं. थोड़ा इंतजार कीजिए.

इटावा, मैनपुरी ये ज़िले समाजवादी पार्टी के दबदबे वाले इलाक़े माने जाते हैं. जहां समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी बड़े अंतर से जीतते रहे हैं. करहल की बात करें तो यहां से अभी समाजवादी पार्टी के सोबरन सिंह यादव विधायक हैं. 2017 के चुनाव में सोबरन सिंह ने भाजपा के रमा शाक्य को करीब 38 हज़ार वोटों के अंतर से हराया था. करहल में करीब 3.25 लाख मतदाता हैं. (Akhilesh Yadav UP Karhal)


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हालांकि एक हकीक़त ये भी है कि करहल में 2012 के चुनाव की अपेक्षा 2017 में भाजपा का वोट शेयर अप्रत्याशित रूप से 24 प्रतिशत से ज़्यादा बढ़ा है. जबकि सपा के वोट बैंक में 2.9 फीसद की ही बढ़ोत्तरी हुई. इस बार न सही लेकिन ये आंकड़ा भविष्य में सपा के लिए थोड़ा चैलेंजिंग ज़रूर है.

इसी मैनपुरी में 2019 के लोकसभा चुनाव पर नज़र डालें तो मुलायम सिंह यादव ने करीब 94 हजार वोटों के अंतर से भाजपा के प्रेम सिंह शाक्य को हराया था. मुलायम सिंह को 5.25 लाख तो प्रेम सिंह शाक्य को 4.30 लाख वोट मिले थे. लेकिन इस चुनाव में भी भाजपा का वोट शेयर 11.30 प्रतिशत बढ़ा था. जबकि सपा के वोट शेयर में 10.11 प्रतिशत की आई. यानी मोदी लहर में यादव बाहुल्य इलाक़ों में भी भाजपा का वोट शेयर बढ़ा. (Akhilesh Yadav UP Karhal)

लेकिन इस बार की हवा थोड़ी बदली है. किसान, नौजवान, शिक्षा-स्वास्थ्य और रोजी-रोटी के तमाम बड़े मुद्​दे हैं. पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन का चुनाव में बड़ा असर माना जा रहा है. सपा बदलाव की उम्मीद को लेकर उत्साहित है. उसकी रैलियों में भी ये उत्साह नज़र आ रहा है.

एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि एसपी सिंह बघेल कभी मुलायम सिंह यादव के बेहद क़रीबी रहे हैं. या यूं कि मुलायम सिंह यादव ने ही उन्हें सियासी ज़मीन दी. आज वही बघेल यादव परिवार के मुक़ाबले मैदान में हैं.

 


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