कांग्रेस के इस हश्र के जिम्मेदार हैं कुछ घमंडी नेता, पीएम मोदी को सुननी चाहिए असहमति की आवाज

नई दिल्ली : देश के पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे दिवंगत प्रणव मुखर्जी की आखिरी किताब में आखिर ऐसा क्या है, जिसके प्रकाशन को लेकर उनके बेटे और बेटी के बीच मतभेद सामने आ चुके हैं. ‘द प्रेसिडेंशियल ईयर 2012-2017’ तक ये रहस्य बना था, जो किताब के साथ खुलकर सामने आ चुका है. दरअसल, राजनीतिक शतरंज के सबसे माहिर खिलाड़ियों में शुमार रहे प्रणव दा ने कांग्रेस से लेकर भाजपा दोनों पर एक ही सख्ती से कलम चलाई है.

2014 की हार के लिए सोनिया गांधी जिम्मेदार

2014 में संयुक्त प्रगितशील गठनबंधन (UPA-2)की शर्मनाक हार के लिए प्रणव दा सीधे तौर पर सोनिया गांधी और कुछ दूसरे नेताओं को जिम्मेदार मानते हैं. वे लिखते हैं, जब यूपीए-1 बना, तो उसमें सपा, वामदल, लोजपा, आरजेडी और कई छोटे दल शामिल थे.

वामदल के समर्थन वापस लेने पर सपा साथ खड़ी रही. वहीं, जब यूपीएप-2 बना तो आरजेडी समेत कई अन्य दल उसका हिस्सा नहीं बने. हालांकि 19 सांसदों के साथ ममता बनर्जी साथ रहीं.

वर्ष 2017 में राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक पुस्तक विमोचन में मौजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति नामनाथ कोविंद के साथ पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी. फोटो, साभार ट्वीटर

बाद में 2012 में ममता बर्नजी तो 2013 में डीएमके ने समर्थन वापस ले लिया. इसका सीधा अर्थ था कि यूपीए 2 की सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर पा रही है. वे लिखते हैं, अगर मैं रहता तो ममता बनर्जी को गठनबंधन के साथ रखता.

महाराष्ट्र में विलासारव देशमुख जैसे प्रमुख नेता की भरपाई के लिए शिवराज पाटिल या सुशील कुमार शिंदे को वापस लाता. इसके साथ ही तेलंगाना राज्य बनाने की मंजूरी तो हरगिज नहीं देता.


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नेतृत्व को पहचाने में नाकाम रही कांग्रेस नेतृत्व

प्रणव मुखर्जी लिखते हैं कि, 2014 की हार के कारणों में से एक बड़ी वजह ये रही कि कांग्रेस अपने चमत्कारिक नेतृत्व को पहचाने में विफल रही. 2014 के परिणामों पर भरोसा करना मुश्किल था. इसलिए क्योंकि कांग्रेस को महज 44 सीटें मिली थीं. बिना नाम लिए कुछ घमंडी नेताओं को भी इसका कारण माना है. चूंकि कांग्रेस एक राष्ट्रीय संस्था है जो लोगों के जीवन से जुड़ी हुई है. इसका भविष्य हर शख्स की चिंता रहा है.

नोटबंदी के फैसले की नहीं थी जानकारी

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 2016 में लिये गए नोटबंदी के फैसले के बारे में भी उन्होंने लिखा है. ‘मुझे इस फैसले के बारे में पहले से जानकारी नहीं दी गई थी. आम लोगों की तरह ही नोटबंदी का पता लगा. हालांकि इस पर मुझे हैरानी नहीं हुई. क्योंकि ऐसे फैसले इसी तरह लिए जाते हैं. बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुझसे मिले. और बातचीत की. ‘

पीएम मोदी को असंतुष्टों की आवाज सुननी चाहिए

प्रणव मुखर्जी लिखते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सदन में अक्सर बोलना चाहिए. विपक्ष को समझाने और देश को तमाम मसलों से रूबरू कराने के लिए संसद को एक मंच के तौर पर उपयोग करना चाहिए. इसके साथ ही प्रधानमंत्री को असहमति की आवाजें भी सुननी चाहिए.


सआदत हसन मंटो की कहानी : टोबा टेक सिंह


 

 

Ateeq Khan

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