सोशल मीडिया ट्रोल देश को बांट रहे हैं, क्रिकेट को बचे रहने दें प्लीज: मुहम्मद कैफ

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मेरे पास कानपुर स्पोर्ट्स हॉस्टल के दिनों के पुराने दोस्त भुवन चंद्र हरबोला का फोन आया। “वसीम जाफर की खबर को पढ़ा?” यह एक दर्दनाक बातचीत थी, जिसे करते वक्त दिल बैठ सा गया। बातचीत के बाद जैसे ही मैंने फोन रखा, मेरा मन हॉस्टल के दिनों में चला गया।

हम में से पांच एक गलियारे के आसपास छोटे कमरों में रहते थे। हरबोला का कमरा मेरे सामने था। हर सुबह उसके कमरे से अगरबत्ती की खुशबू आती थी और मैं हनुमान चालीसा सुन सकता था। मेरे कमरे में मैं नमाज़ पढ़ता। फिर मैं एक पेशेवर क्रिकेटर बन गया और वह पुलिस वाला, हमारी दोस्ती इसके बाद ठहर गई।


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खेल के रास्ते में धर्म कब आया? मैंने यूपी की टीम से देश के विभिन्न क्षेत्रों में खेला, भारत की ओर से कई क्लबों और इंग्लैंड में काउंटियों में मैच खेलने गया। इस दरम्यान कभी भी मुझे आस्थाओं को लेकर कोई समस्या नहीं दिखाई दी।

सभी को रनों की ही फिक्र रहती थी और टीम के साथी हौसला बढ़ाते थे। एक ही बात जहन में रहती, कैसे गेम जीतें। कभी भी मैं यह सोचकर सोने नहीं गया कि टीम के साथी मेरे धर्म के बारे में क्या सोचते हैं।

मैं इलाहाबाद से हूं। मेरा घर पंडितों की बस्ती के बहुत करीब था, जहां मुझे इस महान खेल से प्यार हुआ। हम एक साथ खेले। मैं भारतीय टीम के बारे में भी बात नहीं कर रहा हूं – सिर्फ पड़ोस की एक स्थानीय टीम, जहां सभी धर्मों के बच्चे अपने जीतने की ललक के लिए जुटते थे।


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मुझे लगता है कि इसी माहौल ने मेरी शख्सियत को निखारा और इस लायक बनाया। इस खेल की भी यह खासियत है कि विभिन्न स्वभावों, जातियों, आर्थिक पृष्ठभूमि और आस्थाओं के लोगों को एक साथ लाता है।

मुझे सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट किट बैग में साईं बाबा की तस्वीर याद है, जिसे उन्होंने श्रद्धेय बताया। वीवीएस लक्ष्मण के पास उनके देवता रहे होंगे। जहीर खान, हरभजन सिंह … हर कोई अपनी आस्थाओं के प्रतीक रखते थे। ऐसे भी मौके आए, जब हमारे कप्तान सौरव गांगुली और कोच जॉन राइट ने आंचलिक मतभेदों को दूर किया।

हम अपने क्षेत्रों के लिए नहीं खेल रहे हैं, हमने खुद को यूपी या बंगाल या पंजाब या हिंदू, मुस्लिम, सिख या ईसाई के रूप में नहीं देखा। हम एक दूसरे के लिए, टीम के लिए, दोस्तों के लिए, भारत के लिए खेल रहे थे।

जाफर को अपने इरादों को समझाना शायद बहुत मुश्किल रहा होगा। यह उस दौर की तकलीफ है, जिसमें हम रहते हैं – जहां सोशल मीडिया ट्रोल हमारे देश को विभाजित करने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं।

क्रिकेट की प्रतिष्ठा और अखंडता हमारे पास है। लोगों का जो विश्वास और प्यार हमें मिला, वह उसी पर टिका है। एक सफल कॅरियर के बाद, जो कोई कोच का काम करता है, वह उसी मूल्य के खिलाड़ियों को बनाना चाहता है, एक टीम संस्कृति विकसित करने की कोशिश करता है जो सफलता और एकता को जन्म देती है। कुछ मायनों में उनकी खुद की प्रतिष्ठा दांव पर लगी होती है।


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मुझे याद है कि राइट ने विश्वकप में हमारी टीम के लिए नारा दिया था – “अभी नहीं तो कभी नहीं”! टीम को एकजुट करने, ऊर्जाओं को एक दिशा में आगे बढ़ाने, साझे लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए यह बहुत की शानदार नारा था। सभी अच्छे कोच यही करते हैं। राइट ने हमारे अंदर के क्षेत्रीय लगाव को दूर कर कप्तान गांगुली के साथ मिलकर क्षेत्रीय हित या पक्षपात को दूर किया।

इबादत विशुद्ध रूप से एक व्यक्तिगत चीज है। मुझे ड्रेसिंग रूम नमाज का याद नहीं है, जो मेरे समय में पढ़ी गई हो। लेकिन मैंने पढ़ा है कि कैसे इंग्लैंड के पूर्व खिलाड़ी ग्रीम हिक ने वॉर्सेस्टरशायर ड्रेसिंग रूम में इबादत को युवा मोइन अली के लिए जगह बनाने की खातिर अपनी किट हटा दी।

निजी तौर पर मेरे लिए मेरी धार्मिक आस्था एक व्यक्तिगत मामला है। मैं इसे ड्रेसिंग रूम में नहीं ले जाता। हां, अगर कोई करता है तो इसका मतलब यह नहीं कि यह अपराध है। जब तक वह इस काम के लिए किसी और को मजबूर नहीं कर रहा हो।

एक बात और याद आती है। हाल ही में, वेस्टइंडीज के पूर्व तेज गेंदबाज इयान बिशप मेरे सह-कमेंटेटर थे, और वह होटल के अगले कमरे में थे। बहुत धार्मिक आदमी, हर सुबह तेज आवाज में बाइबल पाठ करते। वैसे वह एक महान गेंदबाज और सज्जन हैं। आमतौर पर वह अपने बच्चों के भविष्य के बारे में, उनके लिए अपने सपनों के बारे में बात करते मिलेंगे – जैसे आप और मैं।


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वसीम जाफर.

धर्म एक व्यक्तिगत मुद्दा है और खिलाड़ियों के बीच कभी नहीं आता। भारतीय क्रिकेट के रास्ते में कभी नहीं आया। क्रिकेट उन क्षेत्रों में से एक रहा है, जहां भारत में कहीं भी पैदा होने वाला बच्चा वास्तव में बहुत ऊपर तक पहुंचने के बारे में सपने देख सकता है – कि वह भारत के लिए खेल रहा है।

एमएस धोनी झारखंड के क्रिकेट आए, ज़हीर खान, मुंबई या पुणे के क्रिकेट-के बेहतरीन इलाकों से नहीं, बल्कि सामान्य जगह से आकर आधुनिक भारतीय गेंदबाज बने। मुनाफ पटेल गुजरात के छोटे से गांव से आए और भारत की विश्वकप विजय में भूमिका निभाई।


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एक देश के रूप में हमें ऐसी बहुत सारी प्रतिभाओं की तलाश की जरूरत है। हम अपने इतिहास में एक अहम मुहाने पर हैं; हम खुद को विभाजित नहीं कर सकते। ऐसा होना खतरनाक और आत्म-पराजय में धकेल देगा।

मैं उन युवा क्रिकेटरों को बताना चाहता हूं जो देश के अलग-अलग हिस्सों में बड़े हो रहे हैं और इस खेल को खेलने का सपना देख रहे हैं: इस सब गड़बड़ में मत उलझिए। मन से साफ रहें, खेल आपको पुरस्कृत करेगा।

यह एक सुंदर खेल है और हम जैसे खुशकिस्मत हैं, उन्होंने इसे जीजान के लिए खेला है, इसमें सांप्रदायिकता देखना दुखद है।

वयस्क होने के नाते यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम हमारी नई पीढ़ी को राह दिखाएं, जिससे वे कड़वाहट वाले माहौल से दूर हों। टीम इंडिया के नारे की तरह फिर जुटें, ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’।

(लेखक  मशहूर क्रिकेटर रहे हैं, उनका यह लेख इंडियन एक्सप्रेस से साभार, भावानुवाद: आशीष आनंद)

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