रमजान का आगाज, आज होगी तरावीह और बुधवार को रोजा, जानिए-कितने घंटे का होगा पहला रोजा

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Ramadan Month Know How Many Hours First Rosa

द लीडर. इस्लामी कैलेंडर के नौवें और सबसे मुबारक महीने रमजान का आगाज हो गया है. बुधवार को पहला रोजा होगा. और आज से ही तरावीह का सिलसिला शुरू हो जाएगा. लगातार दूसरी बार कोरोना महामारी के बीच रमजान का महीना बीतेगा. इसमें तमाम चुनौतियां भी होंगे. इस सबके बावजूद पूरे महीने इबादत का सिलसिला चलेगा. रोजे की बारीकियां जानने के लिए सोशल मीडिया से लेकर मरकजी दारुल इफ्ता तक सवाल पूछे जा रहे हैं. वहां से जवाब भी दिए जा रहे हैं. (Ramadan Month Know How Many Hours First Rosa)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रमजान की मुबारकबाद दी है.

इसलिए फर्ज किए गए रोजे

दरगाह आला हजरत के मुफ्ती मुहम्मद सलीम नूरी रमजान की तफ्सील बताते हुए कहते हैं कि सन दो हिजरी में अल्लाह के हुक्म से मुसलमानों पर रोजे फर्ज किए गए. ऐसे ही मुसलमानों पर तौहीद (एक ईश्वर अल्लाह का इकरार), नमाज, जकातऔर हज को फर्ज किया गया है.

अल्लाह के रसूल की रमजान के रोजों को लेकर हदीस मौजूद हैं. वो तमाम तरीके बताए गए हैं, जिन्हें अपनाने के बाद रोजेदार अल्लाह के ज्यादा सवाब का हकदार बन जाता है. बंदे के लिए रोजा अल्लाह से अपने रिश्ते को मजबूत करने का नाम है. रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का फरमान है कि रोजे का बदला अल्लाह तआला खुद अता (देंगे) फरमाएंगे.


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इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि रोजेदार के लिए रोजे के बदले में कितनी बड़ी खुशखबरी है. इस एक माह में हर अच्छे अमल का सवाब दूसरे माह के मुकाबले काफी ज्यादा बढ़ाकर दिया जाएगा. रोजे रखने के साथ रोजेदारों को इफ्तार (रोजा खुलवाने) का भी बेपनाह सवाब मिलता है. अल्लाह ऐसा करने वाले बंदे से बेपनाह खुश होता है.

नमाज-ए-तरावीह की अहमियत

मुफ्ती सलीम नूरी बताते हैं कि इसी माहे मुबारक में अल्लाह ने अपने रसूल पर आसमानी किताब कुरान भी अवतरित किया. रमजान में तरावीह की नमाज को सुन्नत करार देते हुए हर मुसलमान के लिए एक बार कुरान को पूरा पढ़ने, सुनने का हुक्म है.

रोजे के बाद रात में ईशा की नमाज के साथ तरावीह भी पढ़ी जाती हैं, जो हाफिज (कुरान कंठस्थ करने वाले) अदा कराते हैं. वे नमाजियों की सुविधा के एतबार से कहीं पांच, कहीं दस और बहुत सी मस्जिदों में 27वें रोजे तक कुरान को थोड़ा-थोड़ा करके सुनाते हैं. इस तरह कुरान के 30 पारे (जिल्द) मुकम्मल किए जाते हैं.

सहरी और इफ्तार का तरीका

रमजान का रोजा सुबह सादिक यानी सूरज निकलने से करीब डेढ़ घंटे पहले शुरू होता है. यह गुरूब आफताब यानी सूरज डूबने तक रहता है. दरगाह आला हजरत के सज्जादानशीन मुफ्ती मुहम्मद अहसन रजा की तरफ से जारी कैलेंडर के एतबार से खत्म सहरी का वक्त तड़के 4.21 जबकि इफ्तार शाम 6.44 बजे है.

देवबंदी, अहले हदीस और शिया हजरात के कैलेंडर में सहरी व इफ्तार के वक्त में थोड़ा अंतर है. इस एतबार से रमजान का पहला रोजा 14 घंटे 23 मिनट का होगा. रात में उठकर सहरी खाने को भी अल्लाह ने सवाब का सबब करार दिया है. खजूर से रोजा खोलने की अहमियत बताई जाती है. नहीं होने पर पानी से भी इफ्तार किया जा सकता है.

इन्हें रोजे रखने से छूट

बहुत ज्यादा बीमार, जिनमें रोजे रखने यानी दिनभर भूखे-प्यासे रहने की ताकत नहीं हो, मुसाफिर, बुजुर्ग और प्रेग्नेंट महिलाएं व बच्चे को दूध पिलाने वाली मां.

ऐसे टूट जाएगा रोजा

अगर रोजे की हालत में अंजाने में कुछ खा लिया तो रोजा नहीं टूटता. हां, कसदन जानबूझकर खा लेने से रोजा टूट जाता है. मुंह में धूल धुआं जाने से भी रोजा नहीं टूटता.

एतिकाफ की अहमियत

रमजान के आखिरी दस दिन में एतिकाफ का हुक्म है. ऐसा ज्यादातर मस्जिदों में किया जाता है. यह रमजान की 20वीं शब से शुरू होता है और ईद का चांद देखे जाने पर खत्म होता है. एतिकाफ के दौरान रात में इबादत करके शब-ए-कद्र की तलाश भी करते हैं. ऐसा करने वाले के लिए भी अल्लाह ने बेपनाह सवाब का वायदा फरमाया है.

इसलिए जरूरी है जकात

अल्लाह ने हर मुसलमान, जिसके पास सालभर उसकी जरूरत से अलग साढ़े 52 तौला सोना, चांदी या फिर इतनी कीमत की नकदी मौजूद है तो उसे अपने कुल माल पर ढाई फीसद जकात अदा करना होगी. जकात पर गरीब, कमजोर और बेसहारा लोगों का हक है. जकात को इसलिए फर्ज किया गया कि इसकी बदौलत तंगहाली को दूर किया जा सके. ईद से पहले रोजेदारों को सदका-ए-फित्र यानी दो किलो 45 ग्राम गेहूं या उसकी कीमत भी गरीबों को अदा करने का हुक्म दिया गया है.

 

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