द लीडर : मेडिकल स्टॉफ, पुलिसबल, सफाईकर्मी और प्रशासनिक अधिकारी, जो महामारी में फ्रंट लाइन पर काम कर रहे हैं. उन पर संक्रमण का संकट गहरा है. बावजूद इसके वे अपनी जान जोखिम में डालकर काम पर डटे हैं. अब तक 130 से अधिक पत्रकारों की कोविड-संक्रमण के कारण मौत हो चुकी है. शुक्रवार को वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह की मौत हो गई. संक्रमित होने के बाद नोयडा के एक अस्पताल में उनका उपचार चल रहा था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद समेत अन्य नेता और पत्रकारों ने उनके निधन पर शोक जताया है. (President Prime Minister Journalist Shesh Narayan Singh)
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शेष नारायण के निधन पर शोक प्रकट करते हुए लिखा, सुलझे विचार, स्पष्ट अभिव्यक्ति औश्र आत्मीय व्यवहार के लिए प्रसिद्ध वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह के निधन का समाचार अत्यंत दुखद है. उनका जाना हिंदी पत्रकारिता के लिए बहुत बड़ी क्षति है. उनके शोकाकुल परिजनों और शुभचिंतकों के प्रति मेरी संवेदनाएं.
सुलझे विचारों, स्पष्ट अभिव्यक्ति और आत्मीय व्यवहार के लिए प्रसिद्ध वरिष्ठ पत्रकार श्री शेष नारायण सिंह के निधन का समाचार अत्यंत दुखद है। उनका जाना हिन्दी पत्रकारिता के लिए बहुत बड़ी क्षति है। उनके शोकाकुल परिवारजनों और शुभचिंतकों के प्रति मेरी संवेदनाएं।
— President of India (@rashtrapatibhvn) May 7, 2021
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शोक जताया है. उन्होंने लिखा, वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह जी का निधन अत्यंत दुखद है. पत्रकारिता जगत में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए वे हमेशा जाने जाएंगे. दुख की इस घड़ी में उनके परिजनों के लिए मेरी संवेदनाएं.
वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह जी का निधन अत्यंत दुखद है। पत्रकारिता जगत में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए वे हमेशा जाने जाएंगे। दुख की इस घड़ी में उनके परिजनों के लिए मेरी संवेदनाएं। ओम शांति!
— Narendra Modi (@narendramodi) May 7, 2021
पिछले एक साल में, जब से कोरोनाकाल चल रहा है. करीब 130 पत्रकारों की मौत हो चुकी है. हैरत की बात ये है कि केंद्र सरकार ने पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर घोषित नहीं किया है. हालांकि विभिन्न राज्यों ने पत्रकारों को फ्रंट लाइन वर्कर मानते हुए उनके निधन पर परिवार को मुआवजा देने की प्रक्रिया प्रारंभ की है. मुआवजे की कवायद केंद्र के स्तर से भी चल रही है. लेकिन पत्रकार फ्रंट लाइन वर्कर का दर्जा मांग रहे हैं, जो उन्हें नहीं मिल रहा है.
पत्रकारों की कोविड से मौत को लेकर इंस्टीट्यूट ऑफ परसेप्शन स्टडीज की संस्था रेट द डिबेट एक अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार कर रही है. अप्रैल तक की रिपोर्ट में 128 पत्रकारों के माने जाने की रिपोर्ट दर्ज की गई थी. ये आंकड़ा हर दिन बढ़ता जा रहा है.
शेष नारायण यूपी के सुल्तानपुर के रहने वाले थे. और लंबे समय से हिंदी पत्रकारिता में सक्रिय थे.
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वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने शेष नारायण की मदद के लिए सोशल मीडिया पर गुहार लगाई थी. हालांकि तब उन्हें प्लाज्मा मिल गया था. लेकिन वे बच नहीं सके. शुक्रवार को उनके निधन पर रवीश कुमार ने उन्हें याद करते हुए लिखा है, शेष जी…ज़िंदगी की इमारत अनेक लोगों के दम पर टिकी होती है. अलग अलग समय में कुछ लोग आपकी बुनियाद में खाद-पानी डाल जाते हैं.
हरा कर जाते हैं. मेरी ज़िंदगी में वो इतनी तरह से शामिल हैं, इस हद तक मेरी ज़िंदगी में भरे हुए हैं कि उनके नहीं रहने की ख़बर के लिए कोई जगह नहीं बची है. उनके बग़ैर इन स्मृतियों की गठरी बंद हो गई है. अचानक कुछ याद नहीं आता या फिर इतना कुछ याद आ जाता है. पतंग की डोर जैसे अचानक कट गई है. देर तक उस पतंग को ओझल होते देख रहा हूं.
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इतना कुछ था कि रोज़ या कई महीनों तक मुलाकात की ज़रूरत ही नहीं रही. यह तब होता है जब आप होने को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हो जाते हैं. हर दिन किसी के नहीं रहने की इतनी ख़बरें आती हैं कि शोक अब भीतर गहरे बैठने लगा है. बाहर नहीं छलकता है. उसके बाहर आने का जैसे ही वक्त होता है, फिर किसी के चले जाने की ख़बर आ जाती है. किसी को बुढ़ापे में नौजवान की तरह देखना हो तो आप शेष जी से मिल सकते हैं. अब नहीं मिल पाएंगे. वो हमेशा नौजवान ही रहे. शेष जी, बहुत मिस कर रहा हूं.