पहली बार किस मस्जिद में हुई जुमा की नमाज और किसने की इमामत-क्या जानते हैं आप

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खुर्शीद अहमद


इस्लाम में जुमा के दिन और जुमा की नमाज़ का काफी महत्व है. इसे हम सब जानते हैं. लेकिन क्या आप को पता है कि पहली बार जब जुमा की नमाज़ अदा की गई तो इमामत अल्लाह के रसूल सललल्लाहो अलैहे वसल्लम ने नहीं बल्कि एक अंसारी सहाबी हज़रत सअद बिन ज़ोरारा حضرت سعد بن زرارہ रज़िल्लाह अनहो ने की थी.

यही नहीं अरबी भाषा में जुमा का पुराना नाम अरोबा था, जिसे हज़रत सअद और हज़रत कअब बिन लोई ने बदल कर जुमा रखा. फिर यही नाम मशहूर हो गया. और कुरान ने भी इस नाम पर मोहर लगा दी. कुरान में सूरा अल जुमा मौजूद है.

हज़रत सअद बिन ज़ोरारा और हज़रत ज़कवान मदीना के, इन दो लोगों ने सबसे पहले मक्का में अल्लाह के रसूल सललल्लाहो अलैहे वसल्लम की बातों को सुना. और इस्लाम कबूल किया. फिर वहां से मदीना वापस आ गए. और इस्लाम की तबलीग में लग गए. कुछ दिनों में ही बारह लोगों को मुसलमान बना लिया.


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यह बारह लोग मक्का गए और छुप कर अल्लाह के रसूल से मुलाकात की. उनके हाथ पर बेअत की साथ ही फरमाइश की, कि आप हमारे साथ किसी को भेज दें. जो हमें इस्लाम सिखाएं. नबी-ए-करीम ने हज़रत मुसअब बिन उमैर को भेज दिया.

हज़रत मुसअब बिन उमैर मदीना में हज़रत सअद बिन ज़ोरारा के घर ठहरे. और वहीं से दोनों लोगों ने इस्लाम की तबलीग शुरू की. यहां तक कि एक साल में मुसलमानों की संख्या 72 पहुंच गई. एक बार फिर यह 72 लोग मक्का गए और अल्लाह के रसूल से मुलाकात की. आपके हाथ पर बेअत की. आपने उन्हीं में से 12 लोगों को अंसार के अलग-अलग खानदानों का नकीब और सरदार बना दिया. इन बारह सरदारों में हज़रत सअद बिन ज़ोरारा रज़िल्लाह अनहो भी थे, जो बनु नज्जार के सरदार बनाए गए थे. यह उम्र में इन 72 लोगों में सबसे छोटे थे.


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मदीना में मुसलमानों ने बनी बयादा नाम की जगह में एक मस्जिद बनाई. और जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने लगें. इसी मस्जिद में जुमा की पहली नमाज़ अदा की गई. चालीस लोग नमाज़ में शरीक थे और इमाम हज़रत सअद बिन ज़ोरारा रज़िल्लाह अनहो थे.

उसके बाद नबी करीम हिजरत करके मदीना आ गए और वह जुमा समेत हर नमाज़ की इमामत करने लगे. अल्लाह के रसूल को हज़रत सअद बिन ज़ोरारा रज़िल्लाह अनहो से बड़ी मोहब्बत थी. जब आप मदीना पहुंचे तो सबसे पहला सवाल आप का यही था कि सअद बिन ज़ोरारा कहां हैं.

हज़रत सअद बिन ज़ोरारा का बहुत जल्द ही इंतेकाल हो गया. अभी नबी करीम को मदीना में आए सिर्फ नौ महीने हुए थे कि हज़रत सअद बिन ज़ोरारा बीमार पड़े. जिसके बाद इनका इंतेकाल हो गया. नबी करीम खुद इनके जनाजा में शामिल हुए. यह अंसार के पहले आदमी थे जो जन्नतुल बक़ीअ कब्रिस्तान में दफन किए गए.

हज़रत सअद बिन ज़ोरारा के बाद इनके खानदान के लोग नबी करीम के पास आए. और कहा कि हमारे नकीब ( सरदार ) का इंतेकाल हो गया है. आप कोई दूसरा नकीब बना दें. आपने फ़रमाया कि आज से मैं तुम्हारा नकीब हूं. यह कबीला बनु नज्जार वालों के लिए बड़े सम्मान की बात थी.

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