‘लुक हू इज़ बैक’: हिटलर ज़िंदा हो जाए तो?

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Hiter: look who is back scene

       अमिता शीरीं-

क्‍या हो अगर हिटलर आज फिर अपनी क़ब्र से सशरीर ज़िंदा हो जाये तो? जी हां, यह सच है, ऐसा सच में हुआ। 2012 में लिखा गया तिमूर वर्मीज के बेस्‍टसेलर उपन्‍यास ‘लुक हू इज़ बैक’ में। देखते ही देखते इसकी लाखों प्रतियां बिक गईं। 2015 में इसी उपन्‍यास पर आधारित डेविड वानेन्‍ड्त (David Wnendt) ने जर्मन भाषा में एक फिल्‍म बनाई– ‘लुक हू इज़ बैक’। (Look Who Is Back)

तंजिया शैली में बनी इस फिल्‍म में अडोल्फ़ हिटलर (Oliver Masucci) 2014 में बर्लिन के उस पार्क में जाग जाता है जिसमें कभी उसका बंकर हुआ करता था। हिटलर को 1945 के बाद की कोई याददाश्त नहीं है। वह बेख़ुद सा बर्लिन की मौजूदा सड़कों पर घूमता है और चीज़ों का युद्धकालीन नज़रिए से मूल्यांकन करता चलता है।

सड़क पर चलने वाले समझते हैं कि यह हिटलर की एक्टिंग करने वाला कोई एक्टर है। धीरे-धीरे उसका रुतबा काबिज़ होता जाता है। अंत में एक बूढ़ी नानी उसे पहचान कर नफ़रत से भर उठती है और उसे अपने घर से बाहर निकाल देती है। (Look Who Is Back)

इधर, फाबियन स्वत्सकी नामक एक पत्रकार, जिसे उसके टीवी चैनेल ने नौकरी से निकल दिया था, वह उसी पार्क में अपनी डाक्यूमेंट्री के लिए शूट कर रहा है। वह अपने फुटेज की पृष्ठभूमि में हिटलर को पार्क में जागते हुए देखता है। स्वस्तकी उसका पीछा करता है, इस उम्मीद में कि इस हिटलर को पेश करके वह अपनी नौकरी दुबारा हासिल कर लेगा।

अखबारों के माध्यम से हिटलर को पता चलता है की पोलैंड अभी भी एक देश के रूप में अस्तित्व में है। उसे बहुत अफ़सोस होता है कि युद्ध का समूचा मकसद ही ध्वस्त हो चुका है। वह फैसला करता है कि वह फिर से अपना काम करेगा, शायद इसीलिए उसका पुनर्जन्म हुआ है।

स्वत्सकी किसी तरह से हिटलर से संपर्क कर लेता है और उसे अपने साथ जर्मनी भ्रमण का प्रस्ताव रखता है। उनमें यूट्यूब के लिए फिल्म बनाने के लिए सहमति हो जाती है। भ्रमण के दौरान हिटलर आम जर्मन लोगों से मिलता है और उनकी समस्याओं का समाधान करने का वादा करता है। बवेरिया में एक व्यक्ति उसका अनुसरण करने से इंकार कर देता है। हिटलर उससे नाम पता पूछता है, जिससे ‘पहले राउंड की गिरफ्तारियां’ शुरू की जा सकें। (Look Who Is Back)

यूट्यूब पर स्वत्सकी की फिल्म सिरीज़ मिलियन हिट हो जाती है। वे वापस बर्लिन लौटते हैं और उसका पुराना टीवी चैनेल माय टीवी हिटलर को लेकर एक कॉमेडी सिरीज़ करने का फैसला करता है।

शो के पहले ही हिटलर को इंटरनेट के बारे में पता चलता है और वह वेब का प्रयोग करके राजनीति में आने का फैसला करता है। अपने शो में हिटलर एकरूपी फासिस्ट राज्य की अपनी योजना बताता है और लोग इसे मजाकिया प्रोग्राम के रूप में लेते हैं और यह एक हिट प्रोग्राम हो जाता है।

हिटलर आम जनता में लोकप्रिय होने लगता है। इसी दौरान अपनी फुटेज खंगालते हुए स्वत्सकी को यह अहसास हो जाता है कि यह हिटलर असली है, तो वह उसे मारने की कोशिश करता है और ऊंचे छत के कोने में ले जाकर उस पर गोली चला देता है। हिटलर उस बहुमंजिला इमारत से नीचे गिर जाता है। लेकिन जैसे ही स्वत्सकी पीछे मुड़ता है, उसके पीछे हिटलर खड़ा है। हिटलर कहता है कि उसे कोई नहीं मर सकता है। (Look Who Is Back)

अब हिटलर राजनीति में फिर से प्रवेश को तैयार है। वह अपनी खुली गाड़ी में जर्मनी का चक्कर लगा रहा है। एक सड़क पर राष्ट्रवादियों का एक जुलूस जा रहा है। हिटलर के इन शब्दों के साथ फिल्म का अंत हो जाता है कि ‘मैं इनके साथ काम कर सकता हूं।’

एक अविश्‍वसनीय सी स्क्रिप्‍ट के साथ बनी यह फिल्‍म बहुत आसान फिल्‍म नहीं है। इसमें सिलसिलेवार तरीके से कहानी नहीं चलती, बल्कि तंज की शक्‍ल में यह फिल्‍म हमें बार-बार अहसास दिलाती है कि हिटलर कैसे हमारी ज़िंदगी में सायास घुस गया है।

हिटलर के माध्‍यम से यह एक ऐसा तंज है कि जब किसी दृश्‍य में हम हंसते हैं तो अगले ही पल हमारा गला रुंधने लगता है, कि हमने ही तो इस फासिस्‍ट को पनाह दी है। हमने ही वोट देकर ‘लोकतांत्रिक’ माध्‍यम से सारी दुनिया में हिटलरों को चुना है। ये हिटलर जनता से अपनी वैधता हासिल कर जनता पर दमन करते हैं। (Look Who Is Back)

समूची दुनिया में चल रही दक्षिणपंथी आंधी के रूप में हिटलर की वापसी और शरणार्थी संकट पर यह फिल्‍म ज़बरदस्‍त तंज़ करती है।

नहीं, हिटलर कोई मज़ाक नहीं है। हिटलर एक यथार्थ है जो आज हमारे ख़यालों में घुस गया है। ज़रूरत है हमारे ज़हन से हिटलर के रूप में मौजूद फासीवाद के ज़हर को खुरच-खुरच के मिटा देने की। आज हर तरफ़ सिर उठा रहे हिटलरों को कुचल देने की।

हिटलर ज़िंदा है, कभी वह अख़लाक के फ्रीज़र के गोश्‍त में घुस जाता है, कभी वह जुनैद की टोपी के धागों में उलझ जाता है, कभी वह पहलू ख़ान और रकबर ख़ान के मवेशियों के झुंड में घुस जाता है, तो कभी वह किसी मुसलमान युवक और बुज़ुर्ग को पीट-पीट के मारने वाले लंपटों में शामिल हो जाता है, तो कभी एक आठ साल के बच्‍चे को पीट के मारने वालों में शामिल हो जाता है।

हिटलर ज़िंदा है, वह शामिल है पुलिस वालों की सांप्रदायिक सोच और कार्रवाइयों में, न्‍यायपालिका के फैसलों में, प्रधानमंत्री के भाषणों में। वह शामिल है कहानियों में, कविताओं में, फिल्‍मों में। औरतों- बच्चियों के प्रति छेड़छाड़ में, हिंसा में। संसद में, पारित होते कानूनों में। वह ज़िंदा है ब्राम्‍हणवादियों के शुद्ध रक्‍त में।

दरअसल हिटलर कभी मरा ही नहीं। बीच-बीच में वह सिर उठाता ही रहा। कभी हमारे ही भीतर तो कभी छुपे/खुले रूप में कहीं भी। (Look Who Is Back)

यह फिल्म आज के दौर की एक बेहद ज़रूरी फिल्‍म है, जिसे देखा और महसूस किया जाना चाहिए। यह फिल्म हमें बार-बार आत्मालोचना करने को विवश करती है कि कैसे हमने वह शून्य रह जाने दिया जिसमें जहां हिटलर के पैदा होने की गुंजाइश बनी रही।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता हैं, यह उनके निजी विचार हैं)


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