एक बच्चे की नज़र में फासीवादी दुनिया

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मनीष आज़ाद-

हम सब अपनी आंखों से ज्यादा अपने विश्वास (belief system) से देखते हैं। जैसे अधिकांश ‘भक्त’ हिंदुओं के लिए मुसलमान बुरे होते हैं। अधिकांश मध्य-उच्च वर्ग के लिए गरीब-आदिवासी-दलित गंदे होते हैं। ज्यादातर पुरुषों के लिए महिलाएं कमजोर और कम बुद्धि होती हैं। सत्ताएं इस विश्वास (belief system) को बनाएं रखने और उसे बढ़ाने में एड़ी चोटी का जोर लगाए रहती हैं।

हमारे इस विश्वास (belief system) की मोटी दीवार से टकराकर प्रतिदिन न जाने कितने निर्दोष तथ्य (fact) लहूलुहान होते रहते हैं और दम तोड़ते रहते हैं। वह दृश्य भयावह होता है, जब इस विश्वास (belief system) की मोटी दीवार से टकराकर एक बच्चा ‘मर ‘ जाता है, क्योंकि वह दूसरे बच्चे के साथ खेलने से इसलिए मना कर देता है कि वह बच्चा मुसलमान या यहूदी है।

कुछ विद्रोही बच्चे ऐसे होते हैं जो बड़ों के इस विश्वास (belief system) की मोटी दीवार में सेंध लगा देते हैं और अपना एक भूमिगत संसार रच लेते हैं, जहां वे वह सारे काम करते हैं जो इस विश्वास (belief system) की नज़र में निषिद्ध माने जाते हैं।

‘The Boy in the Striped Pyjamas’ फ़िल्म में नाज़ी ऑफिसर का 8 साल का बच्चा ब्रूनो ऐसा ही एक बच्चा है। जो अपने भूमिगत संसार में यातना शिविर में रहने वाले एक यहूदी बच्चे से दोस्ती करता है, उसे चॉकलेट और खाने की अन्य चीजें देता है। उसके साथ लूडो खेलता है।

यहूदी बच्चे के साथ ब्रूनो की पहली मुलाकात में तथ्य और विश्वास (belief system) की भिड़ंत साफ दिखती है। यहूदी बच्चे को घूरते हुए उसके दिमाग में उसके इतिहास के शिक्षक का वह वाक्य गूंजता है कि यहूदी इंसानों से कुछ कम होते हैं और जर्मन देश के महान बनने की राह में यहूदी सबसे बड़ी बाधा हैं।

लेकिन हमें यह देखकर बहुत सुकून मिलता है कि ब्रूनो की मासूम और हमेशा कुछ तलाशती आंखें बड़ों के विश्वास (belief system) पर भारी पड़ती है और हम एक खूबसूरत दोस्ती का आनंद लेते हैं।

घर में काम करने वाले एक यहूदी पावेल में उसे वो ‘यहूदी’ नहीं दिखता जिसके बारे में उसे बताया या पढ़ाया जाता है।

ब्रूनो का पिता अपने विश्वास (belief system) को दूसरे छोर तक ले जाता है और इसलिए हिटलर के प्रोजेक्ट को अपना प्रोजेक्ट मानकर यहूदियों के कत्लेआम में सक्रिय भागीदारी करता है।

इस विश्वास (belief system) का भयावह रूप उस संवाद में है जिसे सुनकर आपको शायद फ़िल्म को पॉज़ करना पड़े। पास के चिमनी से उठते धुंए में जो बुरी गंध है, उसके बारे में ब्रूनो की मां के पूछने पर एक जूनियर नाज़ी अफसर नफरत से कहता है- ”ये जलते भी हैं तो बुरी गंध मारते हैं।” यह सुनकर दर्शकों की तरह ब्रूनो की मां भी सन्न रह जाती है। हम भी यह सोचने पर बाध्य हो जाते हैं कि लोग इतनी नफरत कहां से लाते हैं?

बहरहाल ब्रूनो की मां अपने विश्वास (belief system) को इस हद तक ले जाने में ‘सक्षम’ नहीं है। इसके बाद वह अपने पति से झगड़कर बच्चों सहित अपने गांव जाने का निर्णय करती है, ताकि बच्चों को इस भयावह माहौल से बचाया जा सके।

इसी बीच भूमिगत तरीके से जब ब्रूनो यातना कैंप की इलेक्ट्रिक बाड़ के पास अपने यहूदी दोस्त से मिलता है तो उसका दोस्त घबराया हुआ होता है। उसका पिता खो गया है। ब्रूनो कहता है कि हम मिलकर खोजते हैं, मुझे अंदर (यातना शिविर में) आने दो। यहूदी दोस्त कहता है कि अंदर आने के लिए तुम्हें हमारी ड्रेस पहननी होगी (धारीदार पायजामा, Striped Pyjamas )।

अब यातना शिविर में यहूदियों की ड्रेस में नाज़ी अफसर का बेटा भी है। अपने यहूदी दोस्त के पिता को यहां वहां खोजता और चुपके से देखी ‘यातना शिविर’ पर दुनिया को दिखाने के लिए बनी ‘साफ सुथरी प्रोपैगैंडा फ़िल्म’ से इस बदसूरत हकीकत की तुलना करता और परेशान होता।

इसी बीच ब्रूनो का पिता उसी यातना शिविर के यहूदियों को गैस चैंबर में भरकर मारने का प्लान कर चुका है। क्योंकि काम करते करते अब सभी कमजोर और बीमार हो चुके हैं। और यातना शिविर में यहूदियों की पहचान उनके कपड़ों से ही तो है।

इसके आगे लिखना मेरे लिए संभव नहीं। मेरे शब्दों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल रही।

अपने झूठे विश्वास (belief system) का शिकार सिर्फ वे ही नहीं होते, जिनके खिलाफ यह विश्वास (belief system) होता है। बल्कि वे भी होते हैं जो इस विश्वास (belief system) में जीते हैं।

यानी एक तरह से इसका शिकार पूरी मानवता होती है।

पाश के शब्दों में कहें तो ‘अगर तुम हमें भेड़ों-बकरियों की तरह कैद में रखते हो तो तुम भी हमारी रखवाली करते हुए कुत्ता होने को अभिशप्त हो।’

यह फ़िल्म इस समय नेटफ्लिक्स पर मौजूद है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और सरोकार से जुड़ी फिल्मों के समीक्षक हैं, यह उनके निजी विचार हैं)


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