जानिए तालिबान से क्यों डरती हैं अफगानी महिलाएं ?

द लीडर हिंदी। इस समय अफगानिस्तान में हाहाकार मचा हुआ है. वो इसलिए क्योंकि वहां तालिबानियों ने कब्जा कर लिया है. जिस तरह से अफगानिस्तान में तालिबान अपना तांडव मचा रहा है. इससे लोगों में खौफ का माहौल है.हजारों की संख्या में लोग देश छोड़ने के लिए काबुल हवाईअड्डे की ओर भाग रहे हैं. इस बीच अब एक बार फिर से अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी से महिलाओं में खौफ बना हुआ है. अफगान में तालिबानियों के कारण मार काट मची हुई है.

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अफगान में हर तरफ से तालिबान, तालिबान की आवाज आ रही है. इस बीच वहां के लोगों की चीख सुनाई दे रही है. आखिर ये तालिबान है क्या. क्यों ये फिर से अफगान पर अपना कब्जा जमा रहा है. क्यों इससे अफगानी लोगों के साथ साथ महिलाओं में एक खौफ बना हुआ है. आइए आपको हम बताते है कि, आखिर क्यों एक बार फिर अफगान में तालिबान कब्जा कर रहा है. और ये तालिबान है क्या ? क्यों लोग जान बचाने के लिए इधर उधर भागने को मजबूर है.

कौन हैं तालिबान?

बता दें कि, अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी नेतृत्व वाली सेना ने तालिबान को साल 2001 में सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था. लेकिन धीरे-धीरे ये समूह खुद को मज़बूत करता गया और अब एक बार फिर से इसने लगभर पूरे अफ़गानिस्तान पर क़ब्ज़ा कर लिया है. क़रीब दो दशक बाद, अमेरिका 11 सितंबर, 2021 तक अफ़ग़ानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को हटाने की तैयारी कर रहा है. तालिबान में अफगान में ऐसा आतंक मचाया है कि, लोग अपनी जान बचाने को इधर उधर भाग रहे है.

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कब हुई थी तालिबान की शुरुआत ?

पश्तो जुबान में छात्रों को तालिबान कहा जाता है. नब्बे के दशक की शुरुआत में जब सोवियत संघ अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला रहा था, उसी दौर में तालिबान का उभार हुआ. माना जाता है कि, पश्तो आंदोलन पहले धार्मिक मदरसों में उभरा और इसके लिए सऊदी अरब ने फंडिंग की. इस आंदोलन में सुन्नी इस्लाम की कट्टर मान्यताओं का प्रचार किया जाता था. जल्दी ही तालिबानी अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच फैले पश्तून इलाक़े में शांति और सुरक्षा की स्थापना के साथ-साथ शरिया क़ानून के कट्टरपंथी संस्करण को लागू करने का वादा करने लगे थे. इसी दौरान दक्षिण पश्चिम अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का प्रभाव तेजी से बढ़ा. सितंबर, 1995 में उहोंने ईरान की सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्ज़ा किया. इसके ठीक एक साल बाद तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी क़ाबुल पर कब्ज़ा जमाया.

तालिबानियों से क्यों डरी हुई हैं अफगानी महिलाएं ?

अफगानिस्तान में तालिबान ने कब्जा कर लिया है. राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर जा चुके हैं. बाकी आम लोग भी अपनी जान बचाने में जुटे हुए हैं. लेकिन इन सबके बीच महिलाओं में एक अजीब सा डर फिर पैदा हो गया है. अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी का खौफ कितना खतरनाक है, इसकी दास्तान भारत में रह रहीं दो अफगान महिलाओं ने सुनाई. तालिबान की ओर से दावा किया जा रहा है कि, उसकी वापसी से लोगों को डरने की जरूरत नहीं है, लेकिन महिलाओं में उसकी वापसी के बाद से ही एक अजीब खौफ पैदा हो गया है. दिल्ली के भोगल में अफगान मूल के कई लोग रहते हैं. यहीं अरफा भी रहती हैं, जो अफगानिस्त के मजार-ए-शरीफ की रहने वालीं हैं.

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अरफा कहती हैं, तालिबान भले ही कह रहा है कि, महिलाओं को आजादी होगी. उनके साथ अत्याचार नहीं होगा. लेकिन पहले तालिबान राज में सबने देखा है कि क्या हुआ था. उन्होंने बताया, उस वक्त महिलाओं खासतौर से युवा लड़कियों के साथ बहुत अत्याचार हुआ. अरफा बताती है कि, उस समय तालिबान के लड़ाके आते थे, लड़कियों को उठाते थे, जबरन शादी करते थे, गलत काम करते थे और छोड़ देते थे. उसके बाद से किसी भी महिला को इन पर भरोसा नहीं है. अरफा का कहना है कि, उनकी परिवार वालों से बात हुई है. वहां सभी महिलाएं डरी हुई हैं. कोई भी घर से नहीं निकल रहा है. सिर्फ बुजुर्ग महिलाएं निकल रहीं हैं, वो भी किसी के साथ. अरफा कहती हैं कि, तालिबान राज की दोबारा वापसी महिलाओं के लिए किसी गंदे सपने से कम नहीं है. वो इसके लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराती हैं.

महिलाओं के साथ होता है गलत काम  

अरफा अकेली नहीं हैं, जिन्हें अफगानिस्तान में मौजूद अपने परिवार की महिलाओं की चिंता है. उनके जैसे कई और अफगानियों के मन में भी यही डर है. अरफा की तरह ही जवाद बाजून को भी यही चिंता सता रही है. जवाद एक स्टूडेंट हैं और भोगल में रहते हैं. उनका कहना है कि, अशरफ गनी ने उनके देश को बेच दिया है. जवाद काबुल के रहने वाले हैं. वो बताते हैं कि, उन्हें अपने परिवार की, खासतौर से महिलाओं की चिंता है. क्योंकि तालिबान के लड़ाके महिलाओं को उठा कर ले जाते हैं और गलत काम करते हैं. वो बताते हैं कि उनका भाई भारत आ रहा था, लेकिन तालिबानियों ने उनका मोबाइल छीन लिया और काबुल एयरपोर्ट के पास रोक लिया.

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अफगानी महिलाओं को तालिबान पर भरोसा नहीं है?

बता दें कि, अफ़ग़ान महिलाएं तालिबान से किसी अच्छाई की उम्मीद नहीं रखती हैं, हम न तो अपनी यूनिवर्सिटी में जा सकेंगे और ना ही हमें काम पर जाने की इजाज़त होगी. इसलिए अब महिलाएं सामने आई हैं और अपनी अफ़ग़ान नेशनल आर्मी का समर्थन कर रही हैं, ताकि तालिबान की कार्रवाइयों को रोका जा सके. ये शब्द हैं काबुल यूनिवर्सिटी की एक छात्रा और सामाजिक कार्यकर्ता सईद ग़ज़नीवाल के, जो हथियार उठाने वाली महिलाओं का समर्थन कर रही हैं. उनका कहना है कि “हमें तालिबान की नीतियों और सरकार के बारे में अच्छी तरह से अंदाज़ा है.

अफगान में महिलाएं और लड़कियां काफ़ी डरी हुई हैं. उनका कोई अस्तित्व ही नहीं रह जाएगा क्योंकि ना वो नौकरी कर सकती हैं ना लड़कियां अब पढ़ सकेंगी. हम अपना देश खो देंगे. ये काफ़ी दुखी कर देने वाला और ख़तरनाक है. लोगों का कहना है कि, अगर अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति पर दुनिया ध्यान नहीं देगी तो तालिबान सत्ता में आ जाएंगे और फिर स्थिति हाथ से निकल जाएगी. तालिबान मतलब पाकिस्तान जो हमारे देश को चलाएगा और इससे आंतकवाद ही बढ़ेगा.

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indra yadav

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