प्रोफेसर वसीम बरेलवी की शायरी से जानिए-कोरोनाकाल में पल-पल बदलते हालात का मंजर

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वसीम अख्तर

मुल्क और मुल्क से बाहर भी अगर किसी शायर ने अपने कलम की बदौलत अवामी हालात की नुमाइंदगी बतौर आईना की है तो उनमें प्रोफेसर वसीम बरेलवी का नाम सरे फेहरिस्त है. जब कोरोना वायरस ने विदेशी मुल्कों से होते हुए हमारे मुल्क में दस्तक दी तो हालात की नजाकत पर वसीम साहब का कलम एहतियात पर चला. जब हालात बदतर हुए तो लहजे में तल्खी दिखी. आइए हम आपको कोविड-19 को लेकर किस तरह रिश्तों और माहौल में बदलाव आए वसीम बरेलवी की शायरी की बदौलत बताते हैं.


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जब कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए पहली बार लाकडाउन लगा और सरकार की तरफ से नारा दिया गया-दो गज दूरी, एहतियात जरूरी. इस पर वसीम बरेलवी ने शेर के जरिये नसीहत की-

वह मेरे घर नहीं आाता मैं उसके घर नहीं जाता

मगर इन एहतियात से ताल्लुक मर नहीं जाता

टेस्टिंग में जब केस ज्यादा निकलने लगे तो वसीम बरेलवी का एक और शेर लोगों के बीच पहुंचा-

जहां बुलाते हो खतरे वहां नहीं जाना

घरों को छोड़कर हरगिज कहीं नहीं जाना

बड़े हैं खतरे जरूरी नहीं सफर में रहो

जो सबकी खैरियत चाहो तो अपने घर में रहो


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जब बिहार से लेकर मुंबई के रेलवे स्टेशनों और उत्तर प्रदेश की की सड़कों पर घरों के लिए लौटने वाले मजदूरों की बेपनाह भीड़ दिखाई देने लगी तो वसीम बरेलवी ने इस अंदाज में सभी को नसीहत की-

हजार चाहोगे जिंदगी फिर न बोलेगी

घरों से निकले तो दरवाजा मौत खोलेगी

जब ईद पर खुशियों के बीच चहल-पहल का नजारा सन्नाटे में तब्दील हुआ और मुसलमानों के सबसे पवित्र स्थल काबा में इमाम के अकेले ईद की नमाज अदा करने का फोटो मोबाइल के जरिये फैला तो वसीम बरेलवी की शायरी में अफसोस झलकता दिखाई दिया. इसका इजहार इन चार पंक्तियों से किया-

रहना है साथ-साथ मगर फासले के साथ

ऐसे भी अपने हों न पराए खुदा करे

तन्हा इमाम-ए-काबा को पढ़नी पढ़े नमाज

ऐसी न ईद आई न आए खुदा करे


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कोरोना की दूसरी लहर में जब हद हुई और चारों तरफ से इंसानों की मौत की खबरें आनी शुरू हो गईं तो इस कयामत के मंजर को वसीम बरेलवी ने यूं जाहिर किया-

आंखों को मूंद लेने से खतरा न जाएगा

वह देखना पड़ेगा जो देखा न जाएगा

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