चिश्तिया सिलसिले के खलीफा बाबा फरीद: भाग-1

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बाबा फरीद दो लिहाज से हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। एक तो इस लिहाज से कि वे चिश्तिया सिलसिले के खलीफ़ा हुए। ख़्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी के बाद चिश्तिया सिलसिले में किसी को अपना खलीफ़ा नियुक्त नहीं किया गया था। चिश्तियों में यह था उस समय कि ख़लीफा वही होगा, जिसके पास ज्ञान की, उस विचारधारा की खास समझ होगी। उससे कमतर कोई रहेगा तो गद्दी खाली छोड़ दी जाएगी।

यह देखा जाता है कि ज्ञान व समझदारी में कौन आगे निकलता है और फिर उसे खलीफा की गद्दी मिलेगी। जब बाबा फरीद पढ़ते थे। कुरान की जो पढ़ाई थी, उसको जैसे वे अता करते थे, उसमें गजब की मिठास थी। इसलिए कहा गया कि वह तो शक्कर के, चीनी के या मिठास के खजाने हैं। जब वह पढ़ते थे तो उनकी बातचीत या कुरान की व्याख्या, इस्लाम या सूफीवाद की बातचीत सुनकर लोग अचंभित होते थे।

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बाबा फरीद मुलतान से थे। अरबी इस्लाम की भाषा है, उसमें पारंगत थे। फारसी साहित्य की भाषा थी। यही निजाम की भाषा थी। इन दोनों के वे आलिम थे। जब वे खलीफा बने तो महरौली में ख्वाजा बख्तियार काकी की दरगाह के आसपास चिश्तियों की बस्ती थी, जहां वह मुकीम थे। वहां बाबा फरीद महसूस करते कि हम लोग सुल्तान की बगल में हैं। उनका मानना था कि जब आप दरबारों के नजदीक होते हैं तो आपके अंदर भी वो चीजें शुरू हो जाती हैं, वही साजिशें कि कौन किसके साथ है।

जुगतें और साजिशों से उन्हें लगता था कि उनका जो काम है, उसे ठीक से नहीं कर रहे हैं। नक्शबंदियों का दरबार था, जो सुल्तान के साथ हिल-मिलकर रहते थे। उनका दरबार शहंशाही किस्म का होता था, जिसमें मसनदें लगी हुईं होतीं। जबकि चिश्तिया एकदम सादे। कोई ऐसी चीज नहीं जो इन्हें सादगी, बंदगी व आम लोगों से दूर कर सके।

बाबा फरीद के साथ एक बात और थी कि वह आम लोगों की संगत को बहुत ज्यादा पसंद करते थे। हांसी से उन्हें उनके जानने वाले लोग मिलने गए तो वहां दरबानों ने उन्हें आगे नहीं जाने दिया कि पहले समय लेना पड़ता है। बाबा फरीद जब शाम को बाजार में निकले तो उन्हें वे मिले। उन्होंने कहा कि तुम आए क्यों नहीं? उन लोगों ने कहा कि आपके तो लोगों ने हमें दौड़ा दिया, हम कैसे आएं। इस बात के ऊपर बाबा फरीद ने मलाल महसूस किया कि यह गलत हो रहा है। वे एक दिन चुपचाप सुबह के वक्त अपनी खिलाफत को, अपनी गद्दी, जो चिश्तिया सिलसिले की निजामत थी, जिसके लीडर थे, सौंप दिया तो लोग घबरा गए।

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चिश्तिया सिलसिला ऐसा है, जो हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा फैला। बाकी सिलसिले कम हैं या किसी एक स्थान पर केंद्रित हैं। चिश्तिया सिलसिले की सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि ये लोग जहां रहे, वहीं की बोली को उन्होंने अपनाया। उसी जुबान में, बोली में, उसी लहजे और राग-रागनियों में जो कुछ देखा उस पर लिखा।

चरखा देख रहे हैं तो चरखे के बीच में से सारी तसव्वुफ की बात की जाएगी। हल चलाता देख रहे हैं तो उसके माध्यम से सारी बात की जाएगी। बगुला देख रहे हैं, नदी बह रही है, औरतें काम कर रही हैं, गहना क्या पहना है, काम कैसा है, फसल कैसी हुई है इसी से जोड़ कर ही उन्होंने अपनी बात को कहा।

उसके चलते अरब देशों की, तुर्की या सीरिया की जो सारी की सारी बिम्बावली थी कि बहुत सारी बात उनके संदर्भों में करते थे। उस पृष्ठभूमि का हवाला देकर करते थे, क्योंकि कुरान में उसका हवाला आता है।

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